“हरियाणा में महादलित महिला होने के बजाय गाय होना ज़्यादा अच्छा है”: महादलित महिला आंदोलन

मनीषा मशाल
 
भारत में यह एक कठिन समय चल रहा है, जिसमें देश में रह रहे हाशिए के समुदाय से जुड़े लोग ब्राह्मणवाद और प्रताड़ना के बढ़ाव से परेशानी महसूस कर रहे हैं. एक महादलित स्त्री की हैसियत और हिंसा झेल रहे इन लोगों की ओर से मैं यह कहना चाह रही हूं कि महिलाएं इस क़िस्म की हिंसा का सबसे ज़्यादा बोझ उठा रही हैं, और यही समय है कि हमें लोगों को इस पूरे हिंसक अध्याय से दूर ले जाना होगा. नेतृत्व पूरी तरह से असफल साबित हो चुका है, और हममें से अग्रिम पंक्ति में खड़े लोग कह रहे हैं कि “बस! बहुत हुआ.” हम ‘महादलित महिला आंदोलन’ की नुमाइंदगी कर रहे हैं और हम सबकुछ बदलने आए हैं.
 
हरियाणा से – जहां से मैं ताल्लुक़ रखती हूं – इस आंदोलन में शिक्षित लड़कियां, छोटी लड़कियां, और लगभग हर उम्र के लोग शामिल हैं, जो कि अब किसी न किसी मोर्चे पर इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं. इस आंदोलन को जन्म देने का मक़सद साफ़ था कि हमारी मुश्किलों को कोई भी बीच बहस में लाने के लिए तैयार नहीं था. इस आंदोलन का नेतृत्व महादलित महिलाएं कर रही हैं, और हम हाशिए के समुदायों की महिलाओं के साथ लगातार काम कर रहे हैं, ये बताने के लिए कि हमें मिटाया नहीं जा सकता! चाहे वो कोई सरकारी संस्थान हो या कोई ब्राह्मणवादी पितृसत्ता, हम सभी से अपना वक़्त छीन रहे हैं और यह बता रहे हैं कि हमें दरकीनार नहीं किया जा सकता है. 
 
इस महीने एक हरियाणा यात्रा के दौरान हम अपने आंदोलन की घोषणा करेंगे, जिसके माध्यम से हम  जाति, सम्प्रदाय, हिंसा, बलात्कार, भेदभाव, महादलित, समलैंगिक, आदिवासी और मुस्लिम समुदायों की समस्याओं पर बात फैलाएंगे. और ज़्यादा ज़रूरी बात तो ये कि हम नेतृत्व के लिए महिलाओं और लड़कियों को एक नया मंच मुहैया करा रहे हैं. एक महादलित बाहुल्य मार्च होने के बावजूद हमारे मार्च में हर वर्ग की महिलाओं का स्वागत है, उन महिलाओं का भी, जो दलित तो हैं लेकिन उनकी रिहाईश दलित मोहल्लों के बाहर है. 
 
हम इस बात का इसरार कर रहे हैं कि हम उन ग़रीब लोगों की संतानें हैं जिनकी झोपड़ियाँ चमकते हुए भारत के कूड़ों से बनी हुई है. और तब भी हमारी जातियों का नाम जानने वाले बेहद कम हैं, और जो जानते भी हैं, वे हमारी जातियों को किसी बदनुमा दाग़ की तरह समझते हैं. लेकिन हम ये बताना चाहते हैं कि हम वाल्मीकी हैं, बंघसी हैं, पक्की, मुसहर और सिक्कलियार हैं, और हम अपनी जातियों के काम से आगे की सत्ता हैं. हम सभी दलित आंदोलनों का दिल हैं, केंद्र हैं. 
 
और यही कारण है कि हमें हमारी आवाज़ की सख़्त ज़रूरत है.
 
अपनी जाति के भीतर और बाहर की दीवारों को तोड़कर अपनी कहानियों और अपनी आवाज़ों को हम हरेक गली, मोहल्ले, सड़क, क़सबे, गाँव, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, और हरेक घर तक ले जाने की कोशिश करेंगे, जिसकी सहायता से हम सभी को एक बराबरी का मंच देने की इच्छा रखते हैं. 
 
हमारा आशा है कि महादलित महिलाओं के नेतृत्व में दलित आंदोलन हरियाणा के हरेक हिस्से में पहुंचेगा जिससे प्रदेश में जातियों की बराबरी और प्रतिरोध की संस्कृति का नया अध्याय लिखा जा सकेगा. 
 
महिलाओं के प्रति हिंसा के नज़रिए से देखें तो मौजूदा समय में हरियाणा पहले स्थान पर आता है. मैं इन हिंसाओं से उकता चुकी हूं. और इसी समय ये कल्पना करने में अच्छा लगता है कि एक ऐसे हरियाणा का भी निर्माण सम्भव है जिसका आधार महिलाओं के प्रति बदलाव, सम्मान और इज़्ज़त में टिका हुआ है. उस समाज का निर्माण अब हमारी लड़ाई है. 
 
हम हरियाणा में अमुक बदलाव की कैसे सोच भी सकते हैं, जब इस प्रदेश की एक भी महादलित महिला से यह नहीं पूछा गया कि वह हरियाणा के लिए चाहती क्या है? इस विकास के क्या मानी हैं? क्या महादलित महिलाओं के लिए भविष्य के हाशिए पर ही कोई जगह है?
 
नहीं. हम ऐसा किसी हाल में नहीं होने देंगे. 
 
हमारा मानना है कि हमारी कहानियाँ हमारे प्रतिरोध की चाभियाँ हैं. जब हम अपनी तमाम समस्याओं, परेशानियों और दुखों को किसी ख़ास जगह केंद्रित करने के बाद सोचेंगे तब उस केंद्र से एक भविष्य का रास्ता खुलेगा. और ऐसा करना अभी इसलिए ज़रूरी है क्योंकि फ़िलहाल भविष्य में हमें संभ्रांत परिवारों के लिए किया गया सरकारी वादा ही दिखता है.
 
हमारी सबसे प्राथमिक समस्या जाति पर आधारित यौन अत्याचार हैं, जिसमें हम महिलाओं को लम्बे समय से सबसे अधिक निशाने पर लिया गया है. और न्याय के नाम पर खाप पंचायतों ने तो हम महादलित महिलाओं पर सबसे अधिक यातनाएं की हैं. ऊँची जाति से ताल्लुक़ रखने वाले मर्दों ने तो अपनी ज़ुबान से ही हम पर सबसे अधिक अत्याचार किए हैं. और भयावह स्थिति में, कोई लड़की यदि अकेली गुज़र रही है, तो खाप पंचायत सदस्यों की सहमति से – जिसमें कई बार तो पंचायत के सदस्य भी शामिल होते हैं – ऊँची जाति के पुरुष लड़की के साथ शारीरिक रूप से अत्याचार करते हैं, कई दफ़ा जिसकी परिणति सामूहिक बलात्कार के रूप में होती है. 
 
इन समस्या को ध्यान में रखते हुए हम खाप पंचायत के ख़ात्मे का बीड़ा उठाते हैं, जो न सिर्फ़ किसी ख़ास समुदाय के प्रभुत्व का प्रतीक है, बल्कि महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा में हर दृष्टि से मौजूद है. 
 
हमारी अगली प्राथमिकता उन राजनीतिक दलों को निशाने पर लेना है, जो ब्राह्मणवाद को बढ़ाने के लिए समाज में कई तरीक़ों से ज़हर घोल रही हैं. दरअसल, इन दलों का ये सोचना है कि यदि वे सत्ता में हैं, तो लोगों से किसी भी रूप में मनमाफ़िक बर्ताव कर सकते हैं. उनका ये सोचना है कि समाज का हर रूप में नियंत्रण कर सकते हैं, वे अपनी कार्रवाईयों में हिंसक हो सकते हैं, जबकि उन्हें कोई छू भी नहीं सकता है. और ग़ौर से देखें तो इन राजनीतिक दलों का ये भगवा एजेंडा अब हर ओर दिखाई दे रहा है.
 
इस साल जनवरी से ही हम देख रहे हैं कि हरियाणा में लड़कियों के साथ बलात्कार और हत्याओं की घटना में कई गुना इज़ाफ़ा हुआ है. और अपराधी अक्सर एक ख़ास राजनीतिक दल से जुड़े हुए होते हैं. इसमें आश्चर्यजनक तथ्य है कि ये ही लोग पीड़ित को न्याय और समर्थन दिलाने के लिए तमाम कमेटियों और समूहों का निर्माण करते हैं, लेकिन असल में ये एक बड़े रूप में बलात्कार की संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं. 
 
महिलाओं की इन समस्याओं के साथ हम लगातार देख रहे हैं महादलित महिलाएँ और लड़कियां ब्राह्मणवादी संस्थानों में लगातार यातनाओं और अत्याचारों का शिकार हो रही हैं, और रोचक रूप से ये संस्थान अक्सर मंदिर से जैसे स्थान होते हैं जिनके बारे में ऊँची जातियाँ सोचती हैं कि यहां सभी ‘पाप धुल जाते होंगे’.
 
ये पाप धुलने वाली सोच हमारे लिए किसी मज़ाक से कम नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि लोगों के खिलाफ़ हो रही हिंसा का सबसे बड़ा केंद्र अमूमन मंदिर ही होते हैं. बाबासाहब ने कहा था, “हमारे मंदिर जाने से हमारे जीवन में कोई बदलाव नहीं होना है. मंदिर एक ऐसी जगह है जहां बस ब्राह्मण कमाई करते हैं. वे एक ऐसी जगह हैं, जहां हम अपनी कमाई के पैसे देकर आते हैं.” इन पीड़ितों के साथ खड़े होते वक़्त मालूम होता है कि बाबासाहब का ऐसा कहना सचाई के कितना क़रीब है. इसी वजह से हम महादलित युवा वर्ग आस्था के इस फ़र्ज़ी खेल के ख़ात्मे का भी ज़िम्मा उठाते हैं, जिस खेल में ब्राह्मणवादी वर्चस्व और हमारे प्रति हिंसा दोनों ही भरे हुए हैं.
हरियाणा में यह अन्दाज़ लगाना मुश्किल है कि मुसीबत कब और किधर से आएगी और इसी वजह से हमारी कोशिश यह है कि हमारे आंदोलन और हमारी लड़ाई का कार्यक्षेत्र स्कूल, कॉलेज, शहर, गाँव, बसें, ट्रेन और खेत सभी होंगे. मिर्चपुर से लेकर रोहतक तक सभी गांव हमारे ख़ून और हमारी औरतों की चीख़ों से रंगे हुए हैं. और ये चीख़ी हुई महिलाएँ पुलिस-प्रशासन के दबाव में किसी समझौते के लिए राज़ी होती हैं तो उनसे कहा जाता है, “कोर्ट-कचहरी से आपकी इज़्ज़त ख़राब हो जाएगी.” और इसी के साथ एक माफ़ीनामे और क़रार के साथ ही सारा मामला ख़त्म हो जाता है. 
 
हरियाणा में गायें ज़्यादा सुरक्षित हैं. उनके लिए तमाम जगहों पर शेल्टर बने हुए हैं, यहां तक उनके लिए हो रही हिंसाओं को रोकने के लिए हेल्पलाइन नम्बर भी बने हुए हैं. यह सोचा जाए तो शायद ग़लत कहना नहीं होगा कि हरियाणा में महादलित महिला होने से अच्छा है कि गाय हो जाया जाए. 
 
लेकिन हरियाणा में महादलित महिलाओं के लिए कुछ नहीं है. इसलिए हम महादलित महिलाएं और लड़कियां संविधान में दिए गए अपने अधिकारों के साथ खड़ी हो रही हैं, और हमारे इस आंदोलन को किसी अन्य रूप में न देखा जाए, हम सिर्फ़ संविधान की रक्षा के लिए खड़े हो रहे हैं. 
 
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हम हरियाणा में महादलित महिला आंदोलन के शुरुआत की घोषणा करते हैं. हमें आप सभी की इस आंदोलन में दरकार है, और हमारा भरोसा है कि हमें आपका सहयोग मिलता रहेगा. यही समय है जब हमें एक साथ आना होगा ताकि हम मासूम जानों की रक्षा कर सकें. ये आंदोलन हमारे लिए न्याय के लिए लड़ाई सरीखा है, जिसकी घोषणा के साथ सभी क़िस्म के आंदोलनों के सामने ये माँग रखते हैं कि वे जाति की अवधारणा ख़त्म करें और हमारे साथ जुड़ें. 
 
और आख़िर में, हम आपसे समर्थन और साथ की आशा रखते हैं. अभी ये हमारी सीखने की ही उम्र है और हमारा सोचना है कि हम आपके साथ ही सीखें. साथ मिलकर हम अपनी ताक़त से भरा हुआ एक भविष्य के निर्माण का माद्दा रखते हैं, जिसमें सिर्फ़ महादलित महिलाओं की ही आवाज़ें नहीं होंगी, बल्कि भारत के सभी दबे-कुचले वर्गों की आवाज़ें उस भविष्य में समान रूप से शामिल होंगी.
 
जय भीम! जय सावित्री!

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