‘आपके दिल व दिमाग़ में जितने ग़लत ख़्यालात हैं, सबको निकाल दीजिए…’

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net के लिए

अपनी परवाज़ को मैं सिम्त भी खुद ही दूंगा


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तू मुझे अपनी रिवायात का पाबंद न कर…

महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के नूह सिद्दीक़ी को ये नहीं मालूम कि ये शेर किस शायर का है, लेकिन इसने हमेशा से इन्हें प्रेरणा देने का काम किया है. उनके मुताबिक़ ये शेर स्कूल के दिनों से ही उनके दिमाग़ पर चस्पा रहा है.

नूह ने इस बार मुल्क के सबसे बड़े इम्तेहान यानी यूपीएससी के सिविल सर्विस में 326वीं रैंक हासिल की है.

हालांकि नूर की सिविल सर्विस में जाने की ख़्वाहिश कोई बचपन से नहीं रही है, बल्कि अचानक ऐसे हालात आए कि नूह ने अपने पिता के मशवरे पर इस तरफ़ आने के बारे में सोचा.

नूह पूरी ईमानदारी के साथ अपनी बात को रखते हुए कहते हैं कि, 2011 में मैंने औरंगाबाद के ‘क्वीन्स कॉलेज ऑफ़ फूड टेक्नोलॉजी’ से फूड टेक्नोलॉजी में बी.टेक की डिग्री हासिल की. इसके बाद मेरा इरादा कनाडा जाने का था. बल्कि मैंने वहां जाने की अपनी तैयारी मुकम्मल भी कर ली थी, क्योंकि मैंने सोच लिया था कि वहीं से मुझे मास्टर्स करना है. लेकिन अचानक से मीडिया के ज़रिए वहां भारतीय छात्रों पर हमले की ख़बरें आने लगीं. घर वालों ने मुझे वहां भेजने से बिल्कुल मना कर दिया. मैं बहुत मायूस हुआ. सारे सपने एक झटके में टूट गए. तभी इसी दौरान मेरे अब्बू ने कहा कि, आप यहीं रहकर सिविल सर्विस में जाने की क्यों नहीं सोचते. फिर अब्बू ही मुझे अपने साथ पुणे ले गए, मुंबई ले गए. कई लोगों से मुलाक़ात करवाई. मुंबई में मुबारक कापड़ी साहब से मिला, वो उन दिनों उर्दू अख़बार इंक़लाब में करियर को लेकर कॉलम लिखा करते थे. उन्होंने मुझे गाईड किया. तैयारी के बारे में तफ़्सील से बताया. फिर मैं पुणे आकर तैयारी करने लगा.

नूह के पिता शोएब सिद्दीक़ी औरंगाबाद शहर में बेकरी का बिजनेस करते हैं. साथ ही यूपीएससी के सिविल सर्विस की तैयारी के लिए काविश फाउंडेशन के बैनर तले एक कोचिंग सेन्टर भी चलाते हैं.

इस कोचिंग की शुरूआत के पीछे की कहानी में भी नूह का ही रोल सबसे अहम है. जब नूह औरंगाबाद शहर से दिल्ली को चले गए तो इनके पिता शोएब सिद्दीक़ी के मन में एक सवाल हमेशा उठता रहा कि पता नहीं, मेरा बेटा वहां किस हाल में होगा. फिर वो ये भी सोचने लगे कि नूह तो वहां चला गया, लेकिन यहां के और बच्चे क्या दिल्ली तैयारी के लिए जा सकते हैं. क्या उनके गार्जियन उन्हें इतनी दूर जाने देंगे, बस इन्हीं सवालों से परेशान होकर उन्होंने कोचिंग की शुरूआत की ताकि मराठवाड़ा क्षेत्र के बाक़ी बच्चे भी सिविल सर्विस की तैयारी कर सकें.

27 साल के नूह ने यह कामयाबी पांचवी कोशिश में हासिल की है. नूह की दसवीं तक की पढ़ाई औरंगाबाद के बुरहानी नेशनल उर्दू स्कूल से हुई है. बारहवीं इन्होंने औरंगाबाद के ही मौलाना आज़ाद कॉलेज से की.

नूह बताते हैं कि, पुणे के बाद ज़कात फाउंडेशन का टेस्ट देकर मैं दिल्ली आ गया. कुछ कम खर्च पर इनके हॉस्टल में रहा. फिर 2015 में मैंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया का रूख किया. यहां तैयारी का एक अच्छा माहौल है.

नूह के मुताबिक़ आज़ादी के बाद औरंगाबाद शहर से कोई मुसलमान नौजवान सिविल सर्विस के लिए सेलेक्ट हुआ है. वो भी एक साथ दो मुस्लिम नौजवान. सलमान शेख़ भी इसी शहर के देहाती इलाक़े से हैं और सलमान व नूह दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में एक ही कमरे में रहकर तैयारी कर रहे थे.

वो कहते हैं कि, हमारी इस कोशिश में काविश फाउंडेशन का बहुत अहम रोल रहा है. शुरू के दिनों में ज़्यादातर गाईडेंस यहीं से मिली. यहां के लोग बराबर हमें गाईड करते रहें. 

नूह बताते हैं कि, मेरी दसवीं तक की पढ़ाई उर्दू मीडियम में हुई. उर्दू लिखने-पढ़ने में मैं बहुत अच्छा था. ऐसे में यहां भी मुझे उर्दू बतौर सब्जेक्ट लेना ज़्यादा अच्छा लगा.

वो कहते हैं कि अगर आप उर्दू अच्छे से लिख लेते हैं तो फिर ये सिविल सर्विस में आपके लिए बहुत फ़ायदेमंद हो सकता है. हालांकि मैंने ये परीक्षा अंग्रेज़ी मीडियम में ही दिया था, लेकिन हां, उर्दू मीडियम से भी एग्ज़ाम दिया जा सकता है. और अब उर्दू मीडियम में मैटेरियल उपलब्ध है. बुक्स व नोट्स भी आसानी से मिल जाते हैं. इसका सिलेबस भी लिमिटेड है. मेरे एक दोस्त इस बार उर्दू मीडियम से लिखकर इंटरव्यू तक पहुंचे थे. मुझे उम्मीद है कि अगली बार वो भी इंशा अल्लाह ज़रूर कामयाब हो जाएंगे.

वो बताते हैं कि, आईएएस मेरी पहली च्वाईस है. लेकिन इस रैंक पर शायद आईआरएस मिले, क्योंकि मैं जेनरल कैटेगरी से हूं. इंशा अल्लाह अगली बार फिर कोशिश करूंगा, अपने पहले च्वाईस को पाने के लिए.

नूह कहते हैं कि, हमारी सरकार के पास काफ़ी योजनाएं हैं. लेकिन आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रही हैं. मेरी पहली कोशिश रहेगी कि इस मामले में मैं कुछ सुधार कर सकूं. सिस्टम में ट्रांसपैरेंसी बढ़ा सकूं. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके प्रोसेस को आसान बनाया जा सकता है. इसका भी प्रयास मैं ज़रूर करने की कोशिश करूंगा.

सिविल सर्विसेज़ की तैयारी के बारे में पूछने पर वो कहते हैं कि, आपको अपनी ग़लतियों पर थोड़ा काम करने की ज़रूरत है. जो भी ग़लती हो रही है, उसमें सुधार लाईए. अपने सीनियर्स से ज़रूर सम्पर्क में रहिए. उनके साथ मिलकर तैयारी करने की कोशिश कीजिए, बहुत फ़ायदा मिलेगा. 

वो कहते हैं कि, कोचिंग तो हर कोई लेता है. आपको कोचिंग से अलग अपनी तैयारी खुद के तरीक़े खुद बनाने होंगे. पढ़ने का सही रूटीन बनाना बहुत ज़रूरी है. अनुशासित अंदाज़ में हर रोज़ तय वक़्त में तैयारी कीजिए. दूसरों के नोट्स से पढ़ने के बजाए अपना नोट्स बनाईए. आपके फ्रेंड सर्किल का अच्छा होना भी बहुत ज़रूरी है. और हां, अख़बार पढ़ना मत भूलिए.

अपने क़ौम के नौजवानों को संदेश देते हुए कहते हैं कि, आपको टारगेट थोड़ा बड़ा रखना चाहिए. उसके पाने के रास्ते अल्लाह खुद बना देगा. उससे ज़रूरी बात यह कि आपके दिल व दिमाग़ में जितने गलत ख़्यालात हैं, उसे निकाल दीजिए. ये सब बेबुनियाद की बातें हैं. आप अच्छी नियत से अपने काम में लग जाईए और रिजल्ट अल्लाह पर छोड़ दीजिए.

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