अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
मुसलमानों के गुर्जर बकरवाल आदिवासी समाज से ये अब तक की सबसे बेहतरीन कहानी है. इस बकरवाल समाज के अतुल चौधरी ने इस बार यूपीएससी की परीक्षा में 896 रैंक लाकर एक शानदार मिसाल पेश की है. उनकी मानें तो वो अपने समाज से शायद पहले उम्मीदवार हैं, जो सिविल सर्विस में कामयाब हुए हैं.
जम्मू-कश्मीर के सांबा ज़िले के विजयपुर इलाक़े में योद्धाओं के गांव के रूप में मशहूर गुढ़ा सलाथिया गांव के क़रीब रहने वाले अतुल चौधरी के पिता अल्लाह रहीम इंडियन आर्मी से रिटायर हुए हैं. मां परवीन अख़्तर यहां के एक सरकारी अस्पताल में नर्स हैं. परिवार में अतुल के अलावा इनकी बहन शबीना अख्तर हैं. वो अभी पढ़ाई कर रही हैं.
अतुल ने दसवीं व बारहवीं की पढ़ाई सांबा के केन्द्रीय विद्यालय से की है. फिर उसके बाद जम्मू के गवर्मेन्ट कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी. टेक की डिग्री हासिल की.
अतुल के नाम रखे जाने की कहानी भी काफ़ी दिलचस्प है. अतुल के पिता की हमेशा से ये ख़्वाहिश थी कि अगर अल्लाह ने मुझे बेटा दिया तो मैं उसे पढ़ा-लिखाकर अपने बॉस जैसा ऑफ़िसर बनाउंगा. अतुल जब पैदा हुए तो उनके पिता कानपुर में थे और उनके बॉस का नाम अतुल चौधरी था. बस उन्होंने अपने बेटे का नाम भी अतुल चौधरी रख दिया.
अतुल को हमेशा ये बात कचोटती है कि आख़िर कब तक हमारा बकरवाल समाज यूं ही पिछड़ा रहेगा. ये समाज शिक्षा की अहमियत को क्यों नहीं समझता है. वो कहते हैं कि, गुर्जर बकरवाल समाज में जागरूकता की बहुत कमी है. इनकी नज़र में शिक्षा की कोई ख़ास अहमियत नहीं है. आज भी बड़ी संख्या में इस समाज के बच्चे शिक्षा से महरूम हैं. जबकि किसी भी समाज के ओवर ऑल डेवलपमेंट के लिए एजुकेशन सबसे अहम फैक्टर है.
वो यह भी बताते हैं कि, हालांकि सरकार इस समाज तक एजुकेशन पहुंचाने के लिए कई कोशिशें कर रही है. इनके लिए मोबाइल स्कूल का भी इंतजाम किया गया है. फिर भी शिक्षा से महरूम रह जाना कई सवाल खड़े करता है.
हालांकि वो कहते हैं कि, दरअसल इस समाज में ज़्यादातर लोगों की ज़िन्दगी अभी तक जानवरों के पालने पर टिकी हुई है. इनके अपने घर नहीं हैं. कहीं एक जगह महज़ तीन-चार महीने ही रह पाते हैं. वहां से उन्हें उजाड़ दिया जाता है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई का छूट जाना स्वाभाविक है. सरकार को इस दिशा में सोचने की ज़रूरत है.
इसके बाद भी अतुल कहते हैं कि, तमाम परेशानियों के बावजूद मैं यही कहना चाहूंगा कि शिक्षा को अहमियत देना सबसे ज़रूरी है. इसलिए आप शिक्षा को अहमियत दें. अपने इलाक़ों से बाहर निकलें और देखें कि दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है.
अतुल यह भी बताते हैं कि, शायद इन्हें पता ही नहीं है कि ये एसटी कैटेगरी में हैं. और सरकार ने इनके लिए कई स्कीमें चला रखी हैं. लेकिन इन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि इन स्कीमों से क्या फ़ायदा मिल सकता है. इससे ये क्या फ़ायदा हासिल कर सकते हैं. इस बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जागरूकता की ज़रूरत है.
शाह फैसल और डॉ. शाहिद इक़बाल को अतुल अपना रोल मॉडल बताते हैं. अतुल कहते हैं कि, जब शाह फैसल सिविल सर्विस में सेलेक्ट हुए तब मैं बारहवीं क्लास में था. तब ही मुझे लगा कि मुझे भी आईएएस बनना है. क्योंकि मुझे अपने समाज के लोगों की मदद करने का यही सबसे बेहतर रास्ता लगा. हालांकि उस समय मुझे इसकी ख़ास जानकारी नहीं थी. कॉलेज में एक सीनियर से इसकी जानकारी हासिल की. बाद में मेरे रोल मॉडल शाह फैसल से भी मुझे गाईडेंस मिली. उन्होंने इंटरव्यू के वक़्त मेरा मॉक इंटरव्यू भी लिया.
अतुल बताते हैं, ‘मैंने अपनी तैयारी अक्टूबर, 2015 में दिल्ली के हमदर्द स्टडी सर्किल से शुरू की. पहली कोशिश में मैं मेन्स में पहुंचकर कुछ नम्बरों से रह गया. लेकिन दूसरी कोशिश में अब कामयाब हो चुका हूं. मेरी इस रैंक पर शायद आईआरएस मिलेगा. इसलिए मैं इस बार दुबारा एग्ज़ाम दे रहा हूं. बनना तो आईएएस ही है.’
अतुल ने बतौर सब्जेक्ट पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन लिया था. उनका कहना है कि इस विषय को पढ़ने से एडमिनिस्ट्रेशन के कार्य करने के तरीक़ों की समझ बनती है. इससे मुझे सिस्टम को समझने में काफ़ी मदद मिली. उम्मीद है कि ये आगे भी मेरे काम आएगा.
सिविल सर्विस की तैयारी की चाहत रखने वालों से अतुल कहते हैं कि, अगर आप इस परीक्षा से एवेयर नहीं हैं, मतलब ज़ीरो से तैयारी करने जा रहे हैं तो फिर आप कोचिंग ले सकते हैं. लेकिन पहले से ही इस परीक्षा के बारे में सारी जानकारी है तो फिर कोचिंग की ख़ास ज़रूरत नहीं है. वैसे भी इन्टरनेट पर सब कुछ मौजूद है. आप किसी के भी सही गाईडेंस की मदद से तैयारी कर सकते हैं. सेल्फ़ स्टडी बेस्ट ऑप्शन है. सही टाईम मैनेजमेंट के साथ अपना फोकस क्लियर रखकर व टारगेट बनाकर आप अगर इसकी तैयारी करेंगे तो कामयाबी ज़रूर मिलेगी.
वो यह भी बताते हैं कि, तैयारी के लिए ये भी ज़रूरी है कि आप दिमाग़ी तौर पर मज़बूत रहें. क्योंकि ये एक लंबा प्रोसेस है. इसमें कई साल भी लग सकते हैं. ऐसे में आपका साईक्लॉजिकली व मेंटली मज़बूत रहना ज़रूरी है.
अपने मुस्लिम क़ौम के बच्चों से अतुल का कहना है कि, आज भी सिविल सर्विस में आपका रिप्रेजेन्टेशन काफ़ी कम है. ऐसे में ज़रूरत है कि आप आगे आएं. क्योंकि जब आपका यहां रिप्रेजेन्टेशन बढ़ेगा तभी क़ौम डेवलप कर पाएगी. आपको सिविल सर्विस में आने के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा सोचना चाहिए.