यूजीसी के नियमों की धज्जियां उड़ा रहा भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी प्रशासन

TCN News

हालिया कुछ समय से शिक्षा संस्थानो को लेकर अलग अलग विवाद उठाते रहे हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय का मामला जहाँ दलित छात्रों को हॉस्टल ना एलॉट होने के कारण तंबू लगाकर रहने का मामला सामने आया है। ये मामला कहीं न कहीं यूजीसी के नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है।


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BBMU से एम. ए एजुकेशन कर रहे छात्र रोहित सिंह ने रिहाई मंच प्रतिनिधि मंडल को बताया कि वह पिछले महीने की 22 तारीख से हॉस्टल ना एलॉट होने के कारण तंबू लगाकर खुले में रहने को मजबूर थे। इन्होने मंच को बताया कि यूनिवर्सिटी प्रशासन सब देखने के बाद भी मूकदर्शक बना हुआ है।

विश्वविधालय के दूसरे छात्रों ने बताया कि इन में कोई संदेह नहीं की छात्र जहरीले सांपों के बीच रहने को मजबूर हैं. कैंपस में हास्टलो में रिक्त कमरे होते हुए भी रोहित को विश्वविद्यालय के एक तुगलकी फरमान के कारण हॉस्टल नहीं अलॉट किया जा रहा है।

वही रोहित सिंह ने अपनी हॉस्टल मिलने के मांगों को लेकर ऑक्टूबर 22 तारीख से भूख हड़ताल पर था जिसके बाद 23 तारीख की रात अचानक तबीयत बिगड़ जाने के कारण आनन-फानन में विश्वविद्यालय ने हॉस्पिटल में एडमिट कराकर जबरिया रोहित का अनशन तुड़वा दिया।

हालांकि इस घटना के बाद विश्वविधायल प्रशासन ने रोहित के लिए आरसीए के हॉस्टल में वैकल्पिक रहने की व्यवस्था की गई। छात्रों ने बताया कि आरसीए का हॉस्टल आरसीए में पढ़ने वाले को ही मिल सकता है। सवाल है कि रोहित को पहले से विश्वविद्यालय में उपलब्ध हॉस्टल में कमरा क्यों नहीं अलॉट किया जा रहा है।

वही इस मामले में रिहाई मंच द्वारा रोहित को परमानेंट हॉस्टल मिलने की मांग को विश्वविद्यालय के समक्ष रखा है।

छात्रों से बातचीत के बाद एक और मामला सामने आया है जिसमें बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के छात्रों ने बताया कि जहाँ तमाम केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश फार्म की कीमत दलित छात्रों के लिए ढाई सौ रुपए है वहीँ बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में उसके लिए 500 रुपये लिए जाते है। विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर सेल्फ फाइनेंस कोर्सेज का संचालन किया जा रहा है जो कि बाबासाहब के नाम पर बनी यूनिवर्सिटी की मूलभावना के खिलाफ है।

छात्रों ने बताया कि विश्वविद्यालय के तमाम डिपार्टमेंट में रिजर्वेशन होने के बावजूद अनरिजर्व्ड केटेगरी के एचओडी की नियुक्तियां की गई हैं। फलस्वरुप 2014 के बाद से विश्वविद्यालय में दलित छात्रों के एडमिशन में लागातार कमी आयी है।

सामाजिक कार्यकर्ता बाकेलाल यादव ने कहा कि सोची समझी साजिश के तहत 50% रिज़र्व केटेगरी की सीटों में कमी की जा रही है। दूर दराज़ के गांव-कस्बों से आये हुए उच्च शिक्षा हेतु रिएडमिटेड छात्रों को हॉस्टल ना अलॉट करना दर्शाता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन दलित छात्रों को उच्च शिक्षा से दूर रखने की कोशिश कर रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन की ज़्यादतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने पर छात्रों के घर फ़ोन जाता है, नोटिस जाती है। हर तरीके से अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है। बात बात पर पुलिस बुला ली जाती है। खानपान पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। छात्रों को होस्टल मेस में नॉनवेज खाने की रोक लगा दी गयी है। बीएचयू जैसे विश्वविद्यालय के हॉस्टल मेस में भी 3 दिन नॉनवेज मुहैया कराया जाता है तो बीबीएयू प्रशासन को क्या आपत्ति है।

लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रनेता सचेन्द्र प्रताप यादव ने कहा कि यही हाल प्रदेश के तमाम विश्वविद्यालयों का है। मनुवादी योगी सरकार के इशारे पर विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों का उत्पीड़न कर रहा है। बड़े पैमाने पर छात्रों पर फर्जी मुकदमे लादे जा रहे है। छात्रसंघ की मांग करने पर छात्रों पर लाठियां बरस जाती हैं।

रिहाई मंच नेता रॉबिन वर्मा ने कहा कि विश्वविद्यालय भारत सरकार और यूजीसी से मिलने वाले फण्ड का भी सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर रहा वहीं सेल्फ फाइनेंस कोर्सेज से मोटी कमाई कर रहा है। हॉस्टल मेस में मिलने वाले खाने का भी बाजार रेट से पेमेन्ट लिया जा रहा हैं।

शकील कुरैशी ने कहा कि जैसे हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला को टेन्ट लगा कर रहने को मजबूर किया गया था ठीक उसी तरह बीबीएयू में रोहित सिंह को टेन्ट में रहने पर मजबूर किया जा रहा है।

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