आस मोहम्मद कैफ, सहारनपुर-
छूटमलपुर से 90 किमी दूर बिजनोर बाईपास के पास मीरापुर में कुछ लड़के क्रिकेट खेल रहे है,गेंद को अपनी रेंज में पाकर एक युवक पूरी से ताक़त से बल्ला घुमाता है,बल्ले के साथ ही उसके मूहँ से आवाज़ निकलती है’जय भीम’.
गेंद कहाँ जाती है यह महत्वपूर्ण नही है महत्वपूर्ण आवाज़ है.यह आवाज़ वैसी ही है जैसी कुश्ती में ‘जोर’करते हुए जय हुनमान की लगाई जाती है, या किसी गाडी के रास्ते में फंस जाते समय धक्का लगाते हुए ‘अल्लाह हु अकबर’की सुनाई देती है।
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30 साल के विकास जाटव यहाँ खेल रहे है वो हमसे कहते है”दलितों में संकोच की दीवारें टूट रही है,दलितों की मौजूदा पीढ़ी हर अत्याचार का मुंहतोड़ जवाब देगी,चन्द्रशेखर भाई ने एक आदर्श स्थापित किया है,दलित नोजवानों का उत्साह चरम पर है वो आत्मसम्मान से समझौता नही कर सकता, छोटे-छोटे बच्चे भी भीम आर्मी के बारे में जानते है”.
विकास जिस बदलाव की बात कर रहे हैं वो हर जगह दिखाई देता है,जैसे इसी साल फरवरी के प्रारंभ में मुजफ़्फ़रनगर के एक गाँव पचेंडा में दलित युवती ज्योति की दबंग जाति की चार लड़कियों से लाठी डंडो से पिटाई कर दी थी, ज्योति का अपराध यह था कि वो लगातार इन लड़कियों से अच्छे नंबर ला रही थी.उसकी तारीफ से इन कथित ऊँची जात वाली लड़कियों को तक़लीफ़ होती थी.
इसके बाद मामला बहुत बिगड़ गया,आसपास के दलितों ने बेहद कड़ी प्रतिक्रिया दी, प्रशासनिक दबाव के बाद हमलावर लड़कियों के विरुद्ध मुक़दमा दर्ज हुआ,गाँव में पंचायत हुई और इन लड़कियों को ज्योति जाटव से माफ़ी मांगनी पड़ी.ज्योति की बहन पिंकी मेरठ से एमबीए की पढ़ाई कर रही है वो कहती है”पिछले कुछ सालों में दलितों के विरुद्ध अत्याचार बढ़ गया इसकी कुछ वजह है या तो इसमें सरकार का दोष है,अत्यचारी सरकार से डर नही रहे,या फिर अब सोशल मीडिया के सक्रीय होने की वजह से अब सब सामने आ जाता है,मगर अपनी बहन के साथ हुए अत्याचार के बाद हमने कथित ऊँची नाक वालो को सबक सीखा दिया.”
दलितों के अधिकतर नोजवान मानते हैं कि दलितों में इस सोच की शुरुवात चन्द्रशेखर की भीम आर्मी ने की है,खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित अब दबंग जातियों से झुककर बात नही करता.सामाजिक कार्यकर्ता गौरव जाटव कहते हैं”दलित युवाओं को ऐसा लग रहा है कि चन्द्रशेखर आज़ाद(उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने नाम के आगे से रावण हटाने की अपील की है)उनके मुक्ति मानव है वो उन्हें सामाजिक गुलामी से आज़ाद करा देंगे, आज चन्द्रशेखर की लोकप्रियता चरम पर है,खासतौर पर 18 साल से कम आयु वाले किशोर तो उन्हें ही अपना भविष्य मान रहे हैं”.
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गौरव की बात में इसलिए भी दम दिखाई देता है क्योंकि चन्द्रशेखर के जेल से बाहर आने के बाद से अब तक उनके छूटमलपुर स्थित आवास पर दलित नोजवानों की भीड़ लगी हुई है,चन्द्रशेखर की राजनितिक लोकप्रियता से इतर यह भीड़ उन्हें दीवानगी की हद तक चाहती है, इस युवाओं में चन्द्रशेखर को पसंद करने वाले मुसलमान युवा भी है चन्द्रशेखर बार-बार अपने समाज के लड़कों से मुसलमानों से नजदीकी बढ़ाने का निर्देश देते रहते हैं. मौलाना अरशद मदनी और कांग्रेस नेता इमरान मसूद से गर्मजोशी से मिलना इसका संकेत भी देता है.चन्द्रशेखर आज़ाद का घर जिस विधानसभा में आता है उसे सहारनपुर देहात कहते हैं,यहाँ से कांग्रेस के मसूद अख्तर विद्यायक है,इसी चुनाव में यह विधानसभा सामान्य हुई है इससे पहले इसका नाम हरोड़ा विधानसभा था यहाँ से बसपा सुप्रीमो मायावती भी चुनाव लड़ चुकी है.यहाँ के सबसे बड़े दलित नेता जगपाल सिंह है जो तीन बार विद्यायक रह चुके है मगर फ़िज़ा के बदलने का काम चन्द्रशेखर ने किया है.
इस बदलाव एक बानगी मुजफ़्फ़रनगर में दिखाई देती है यहाँ के भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष उपकार बावरा की जेल से होने वाली अदालत की हर पेशी चर्चा बन जाती है वो नीला पटका गले में डाले मूंछो पर ताव देते हुए अदालत में आते हैं,उपकार 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान हुई हिंसा के आरोपी है,सहारनपुर के भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष कमल वालिया कहते है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग 200 लोगों के विरुद्ध रासुका की कार्रवाई की है,इनमें ज्यादातर दलित और मुस्लिम ही है,हजारों दलित लड़को के विरुद्ध भारत बंद के प्रदर्शन के दौरान मुक़दमे दर्ज हुए सैकड़ो जेल चले गए,भीम आर्मी के साथी न तो इससे विचलित हुए और न भविष्य में संघर्ष करने की उनकी संभावना कमजोर हुई,यह हमने अपने नेता चन्द्रशेखर भाई से ही सीखा है.