फ़हमीना हुसैन, TwoCircles.net
चुनाव आयोग द्वारा लोक सभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद से रमजान के दौरान मतदान पर मुफ़्ती और सियासतदां दोनों एतराज जता रहे हैं. इस मामले को लेकर लखनऊ ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, कोलकाता के महापौर फरहाद हक़ीम, दिल्ली विधानसभा के सदस्य अमानततुल्लाह खान, दिल्ली निगम बोर्ड के पार्षद आले मोहम्मद इक़बाल ने रमज़ान में पड़ने वाली मतदान की तारीखों को लेकर एतराज़ जाहिर किया है. इनका कहना है कि रमज़ान में मतदान की इस तारीख से खास राजनीतिक दल को फायदा पहुंचेगा.
हालांकि इस मुद्दे को देखते हुए चुनाव आयोग ने साफ़ तौर पर कहा है कि किसी भी शुक्रवार या त्यौहार के दिन मतदान नहीं है. इलेक्शन कमीशन ने इस बारे में कहा है कि उनके पास इस तारीखों को बदलने का या चुनाव के समय को आगे-पीछे करने का विकल्प ही नहीं था.
इस साल यानी 2019 में रमजान 5 मई से शुरू हो रहा है. यानी 6, 12 और 19 मई को होने वाली आखिरी तीन चरणों की वोटिंग रमजान के दौरान होगी. चूंकि रमजान के दौरान मुस्लिम समाज के लोग सुबह से शाम तक बिना कुछ खाए-पिए रोजा रखते हैं, ऐसे में ये सवाल उठाए जाने लगे हैं कि रोजे और भीषण गर्मी के दौरान मुस्लिम मतदाता घंटों तक लाइन में लगकर कैसे वोटिंग में हिस्सा ले पाएंगे?
वहीँ रमज़ान में मुस्लिम महिलाओं के वोटिंग भागीदारी को लेकर भी सवाल उठायें जा रहे हैं.
पटना की महिला कॉलेज में बतौर शिक्षिका नसरीन फातिमा का कहना है कि “रमज़ान में सबसे ज्यादा काम और ज़िम्मेदारी औरतों पर होती है. वक़्त पर सेहरी देने से लेकर वक़्त पर इफ्तार बनाने तक किचन में लगी रहती हैं. उसके बाद वर्किंग मुस्लिम महिलाओं को ऑफिस और घर भी देखना पड़ता है. चुकी रोज़ा और इबादत दोनों ही का पालन करना इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है इसलिए नमाज़ की पाबन्दी भी ज़रूरी है.”
उन्होंने लोकसभा के लिए तय की गई तारीख को बदलने पर अपनी सहमति ज़ाहिर करते हुए कहा कि आम या वर्किंग, मुस्लिम महिला के लिए तारीख में गुंजाईश को ध्यान में रखा जा सकता था.
वही इस मामले में बिहार की रहने वाली और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भूगोल विभाग की छात्रा नौशीन का मामना है कि रमज़ान में इलेक्शन की तारीख से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. मुस्लिम लड़कियां इस चुनाव में हर काम के साथ और वोट करने के अधिकार को भी बड़ी संख्या पूरा करेंगी.
हालांकि इस मामले में मुस्लिम औरतों का नजरिया बिलकुल भी विपरीत है. ज्यादा तरह मुस्लिम गृहणियों का ये कहना है कि समाज में हर वर्ग के लोगों को सवाल उठाने का अधिकार मिला है चाहे वो नौजवान युवा वर्ग हो या वर्किंग वीमेन। लेकिन अगर घर चलाने वाली गृहणी की बात करें तो उन्हें अभी भी चूल्हा-चौका तक सीमित समझा जाता है.
उत्तर प्रदेश और बिहार का बॉडर क्षेत्र कर्मनासा की ज़किया का कहना है कि “बात सिर्फ इलेक्शन या रमज़ान को लेकर नहीं है. अक्सर ही औरतों के सहूलतों को नज़रअंदाज़ कर के फैसले लिए जाते हैं.” उन्होंन चुनाव आयोग द्वारा तयशुदा तारीख का स्वागत करते हुए कहा कि एक आम मुस्लिम महिला पुरे एक महीने रोजे में घर के ऐतमाम और बाकी इंतज़ामात के फ़र्ज़ को पूरा करने में लगी रहती है ऐसे में तारीखों को ऐसे वक़्त में मुकर्रर कर एक और ज़िम्मेदारी का बोझ बढ़ाया गया है.
बिहार में 17 फीसदी मुसलमान, यूपी में 20 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 27 फीसदी के लगभग मुस्लिम आबादी है। 2018 में पश्चिम यूपी की कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मुसलमानों ने ईवीएम में खराबी के बावजूद पोलिंग बूथ पर डटे नजर आए थे, यहां तक कि रोजा-इफ्तार भी बूथ पर ही किया था। लेकिन उन में महिलाओं की संख्या कम थी.
बताते चलें कि देश में मुसलमानों की आबादी 14.23 फीसदी है. इसमें 218 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां करीब 10 फीसदी से अधिक और इसमें 70 सीटें ऐसी हैं जिन पर 20 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोट हैं. केरल, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है.