गर्मी की शिद्दत में बच्चों में रोज़े की अज़ीम चाहत की दास्तां

सना 7 साल

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net

रमज़ान की रहमत का असर बच्चों पर पड़ रहा है उनमें रोज़े रखने को लेकर दिली चाहत दिखती है यह पढिये
मेरठ-
1-
7 साल की सना के पहले रोज़े की कहानी 
सना 7 साल की हो चुकी है.अगले महीने आठ साल की हो जाएगी.उसकी अम्मी वसीला के लिए यह हैरत में डालने वाला था रमज़ान के दुसरे ही दिन रोज़े को सना जिद करने लगी कि उसे भी रोज़ा रखना है.अमूमन किसी भी मां के लिए यह बात खुशी से भर देने वाली होती है मगर वसीला को अपने गरीब होने पर तक़लीफ़ हुई.वो इस पहले रोज़े पर अपने अज़ीज़ों की दावत करना चाहती थी.सना के अब्बू भैंसा बुग्गी चलाते है और आजकल बीमार है.पड़ोस की दुकान से आधा किलो गोश्त मंगवाया गया.मां ने उस दिन बच्ची के लिए बेहतर इफ्तारी का इंतिजाम किया.मेहमान के तौर पर सना के नाना मंगता की मौजदूगी रही.सना ने हमें बताया कि अम्मी कह रही थी.इस बार जब रोज़ा रखोगी तो तुम्हारे दोस्तों को भी बुला लेंगे.
रिहान, 11 साल
अम्मी कह रही थी तुम रोज़ा नही रख पाओगे मैं नही माना”
11 साल के रिहान ने अपनी अम्मी से बगावत करके रोज़ा रखा है.रिहान के बड़े भाई शावेज़ के मुताबिक रिहान रोज़ सहरी में उठकर बैठ जाता था.वो अभी छोटा है और गर्मी बहुत ज्यादा हो रही है इसलिए अम्मी उसका रोज़ा नही रखवा रही थी मगर वो नही माना.रिहान की बहन अनम ने रिहान का साथ दिया.उसने जुमा को सहरी खाई और रोज़ा रख लिया.वो स्कूल भी गया.खेलने गया और नमाज़ पढ़ने मस्जिद भी गया.रिहान ने बताया कि उसे रोज़ा रखकर बहुत मज़ा आया.जब सब रख रहे तो मैंने भी रख लिया.
भूख तो ज्यादा नही लगी बस प्यास बहुत लग रही थी.
मोहम्मद समीर,12 साल
स्कूल में दोस्त पूछ रहे थे रोज़ा क्या होता है !”
12 साल के मोहम्मद समीर ने पिछले साल पहली बार रोज़ा रखा था तब स्कूल की छुट्टियां थी.वो शहर के सबसे बड़े स्कूल में पढ़ता है.समीर के अब्बू रियाद में रहते हैं. इफ़्तार के वक़्त से पहले वो अपने रोज़े रखने की खुशी में मौहल्ले में इफ्तारी बांट रहा था.समीर कान्वेंट स्कूल में पढ़ता है उसने बताया कि वो आज स्कूल गया था.सभी बच्चे लंच कर रहे थे उसने नही किया.ना ही वो लेकर गया था.उसके दोस्त ने उसे ऑफर किया मगर उसने बताया कि उसका रोज़ा है.वो यह नही जानते थे कि रोज़ा क्या होता है! पूरी क्लास में सिर्फ मेरा रोज़ा था.मैंने बताया कि हमें कुछ भी नही खाना है और शाम को पहले खजूर खाकर नमाज़ पढ़ने जाना है.पिछली बार जब मैंने रोज़ा रखा था अब्बू यहीं थे.इस बार वो ईद पर आएंगे.
10 साल की निशा की पूरे रमज़ान रोज़े रखने की चाहत 
निशा के अब्बू अल्ताफ अहमद एक प्राइवेट बस में कडंक्टर है.निशा सात भाई बहनों में सबसे छोटी है.निशा हमें बताती है कि उसने सिर्फ एक रोज़ा छोड़ा है और वो पूरे रमज़ान रोजे रखना चाहती है क्योंकि उसके घर मे कोई भी ऐसा नही है वो रोज़ा नही रख रहा हो.निशा कहती है”जब सब रख रहे हैं तो मैं क्यों ना रखूं”.निशा के चाचा सनी खान के मुताबिक आधा दिन तक ठीक रहती है उसके बाद सो जाती है और इफ़्तार के वक़्त से पहले ही सोकर उठती है.हर दिन कहती है बस अब नही रखूंगी और फिर सहरी में ज़िद करने लगती है.अपनी अम्मी और बहनों के साथ क़ुरान पढ़ना सीख रही है.रमज़ान के माहौल का असर है.
निशा,10 साल
मेरा दोस्त शिवांश कह रहा था कि अच्छा पानी नही पी सकते तो दूध पी लो”
13 साल के मोहम्मद शारिब
मोहम्मद शारिब सातवीं क्लास में पढ़ते है और अब तक उन्होंने सभी रोज़े रखे हैं.शारिब बताते हैं की वो स्कूल जा रहे हैं,जहां अभी मंथली टेस्ट चल रहे हैं.मेरी क्लास के कुछ बच्चे रोज़े रख रहे हैं.मेरा दोस्त ने मैडम से पूछ रहा था क्या रोज़ा भी व्रत की तरह होता है.मैडम ने कहा हां वैसा ही होता है तो शिवांश ने मुझसे कहा तब तुम दूध पी लिया करो.मैंने शिवांश को बताया.हम कुछ भी खा पी नही सकते.कुछ भी नही तो वो हैरत में पड़ गया.ईद पर शिवांश मेरे घर आया था.इस बार मैं उसे इफ्तारी पर भी बुलाना चाहता हूँ.शिवांश कह रहा था इतनी ताक़त कहाँ से आती है मैंने कहा “अल्लाह से”.
मोहम्मद शारिब , 13 साल


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