By आस मोहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
शामली- हिन्दू धार्मिक परंपरा के अनुसार भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा को राजा भगीरथ स्वर्ग से धरती पर लेकर आएं। पौराणिक कथाओं में पढ़ाया जाता है कि राजा भगीरथ जिधर से भी जाते गंगा उनके पीछे चलती।
भारत मे आज भी बेहद संघर्षशील और लंबी जुस्तुज वाले प्रयास को भगीरथ प्रयास कहा जाता है। अब शामली के एक जुझारू इंसान मुस्तकीम मल्लाह को ऐसे ही एक भगीरथ प्रयास के लिए रिवर्स डे पर भगीरथ सम्मान 2019 से नवाजा गया है।
38 साल के मुस्तक़ीम मल्लाह को यह सम्मान उनके काठा नदी के जीवित करने के प्रयासों के चलते मिला है। मुस्तक़ीम मल्लाह शामली जनपद के कैराना तहसील के रामडा गांव के रहने वाले हैं और इलाके में ‘पानी का दोस्त’के नाम से जाने जाते हैं। मुस्तक़ीम मल्लाह विलुप्त हो चुकी काठा नदी को जिंदा करने के लिए जुनून को हद जुटे हैं। इलाके में उनकी ‘एक लौटा जल’मुहिम बहुत लोकप्रियता पा चुकी है।
इंडिया रिवर्स डे पर दिल्ली में मिले ‘भगीरथ सम्मान’के बाद से मुस्तक़ीम मल्लाह अभिभूत है। मुस्तक़ीम को यह सम्मान विलुप्त हो चुकी काठा नदी को जीवित करने के लिए प्रयासों के लिए मिला है हालांकि जल संरक्षण,कालन्दी की सफाई और यमुना में उनके द्वारा स्वच्छता अभियान जैसे उनके प्रयास भी सराहे जाते हैं।
मुस्तक़ीम बताते हैं कि “शिवालिक पहाड़ियों से निकलने वाली काठा नदी झरनों के स्रोत से पैदा होती थी और कैराना से होकर गुजरती थी।हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि इस नदी में घड़ियाल होते थे और कई बार लोग उनसे भिड़ जाते थे। आज़ादी से पहले अंग्रेजो ने नहरों के चलाने और नदियों को बंद करने का काम किया और गंगनहर शुरू की गई।इससे काठा नदी का अस्तित्व खतरे में आ गया इसे बंद कर दिया गया।अब नहर चूंकि ऊंचाई पर होती है और नदी गहराई में इसलिए नदी के बंद होने भूजल स्तर प्रभावित हुआ और इससे पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।जब नदी का पानी सूख गया तो लोगो ने इसकी जमीन पर अवैध कब्जे शुरू कर दिए।मैं मल्लाह हूँ मेरी रोजी रोटी नदी किनारे होने वाले तरबूज़,ख़रबूज़े पर निर्भर करती है। जब नदी सुख गई तो मेरे लोगो को रोजगार के लिए भटकना पड़ा।
मुस्तक़ीम कहते है,”मैं मल्लाह का बेटा हूँ नदी मेरे लिए मां है,पानी मेरा भाई है,वो मुझे रोटी देती है नदी सुख जाती है तो मेरी जिंदगी भी सूखने लगती है। मेरा समाज संकट में आ जाता है,आज मेरे लोग तरबूज़ और ख़रबूज़े की खेती करने के लिए दूर-दूर नदी किनारे जाते हैं और यहां जिस नदी की गोद में हमारे पूर्वज बड़े हुए हैं वो खत्म हो चुकी है।मेरे दिल के अंदर से आवाज़ आई कि काठा को जिंदा होना चाहिए।हमने एक लौटा जल मुहिम चलाई। मैं लोगो के पास जाता था और उनसे एक लौटा जल काठा में दान करने का अनुरोध करता था। मैं ज्यादा पढ़ा लिखा नही था और अफसरों में इधर उधर घूमता रहता था।मेरी हालात यह थी मुझे तहसीलदार और एसडीएम में बड़ा अफसर कौन होता है यह भी नही समझता था! मगर मैं एक बात अच्छी तरह जानता था कि किसी भी तरह काठा नदी में पानी फिर से आना चाहिए।इसके लिए टेक्निकली मुझे वैज्ञानिक उमर सैफ ने बहुत मदद की।प्रयास तो हम एक दशक से कर रहे थे मगर जब 2017 में आईआईटी रुड़की से जल विद्वान प्रोफेसर गुप्ता आएं उन्होंने हमें सराहा और कहा कि उनके 600 वैज्ञानिक इस पर काम करेंगे तब हमें पता चला सिर्फ हम ही नही चाहते है कि काठा जिंदा हो”।
काठा नदी के अलावा मुस्तक़ीम मल्लाह मामूर झील का अस्तिव बचाने में कामयाब हुए है। इसके अलावा उनके प्रयासों से कालन्दी नदी और यमुना की सफाई पर भी काम हुआ है इसके लिए भी स्थानीय स्तर पर वो काफी सराहे जाते हैं शामली के अनुज सैनी बताते हैं कि”मुस्तक़ीम मल्लाह को क्षेत्र के पानी का दोस्त कहने लगे हैं वो जल संरक्षण और नदी शुद्धिकरण की दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं पिछले दिनों यमुना में काला पानी आने के कारण बहुत से जीव जंतुओं को मौत हो गई थी जिसके बाद मुस्तक़ीम में यमुना की गंदगी दूर करने के लिए भरसक प्रयास किये।”
मुस्तक़ीम बताते हैं कि “तमाम मखलूक खुदा की बनाई हुई है नदियों की गंदगी उनकी जान ले रही है,इस तरह नदी का सूख जाना तो और भी अधिक तक़लीफ़देह है नदियों के जल का साफ करोडों जिंदगी बचा सकता है।
अपने प्रयासों से मुस्तक़ीम लाखों लीटर जल संरक्षण करने में कामयाब हो चुके है वो कहते है काठा नदी को यमुना के ‘ओवरफ्लो’से आसानी से जीवित किया जा सकता है।बाढ़ के पानी से होने होने वाली तबाही से भी इस प्रकार मुक्ति मिल जाएगी और काठा के जीवित होने तमाम फायदे भी होंगे।
2010 से मुस्तक़ीम मल्लाह पूरी तरह इस मुहिम के हो गए।इस दौरान उन्होंने कई लघु बाँध बनाए और जल संरक्षण किया। 2014 से भारतीय नदी फोरम ने देश भर नदियों को पुनर्जीवित करने के अच्छे प्रयासों वाले व्यक्तियों को भगिरथ सम्मान देने का निर्णय लिया तो मुस्तक़ीम सबसे कम उम्र में यह सम्मान पा गए।
मुस्तक़ीम की माने तो यहां पीने का पानी भी अशुद्ध हो चुका है हालात यह है कि उनके एक बार उनके गांव में काला पीलीया नाम की बीमारी फैल गई जिससे पूरा गांव प्रभावित हुआ और कोई घर नही बचा। भूजल स्तर यहां पूरी तरह गिर चुका है अक्सर काठा नदी जीवित अभियान के संयोजक मुस्तक़ीम के गांव के लोग इसके बाद फावड़ा उठाकर खुद काठा की सफाई में जुट गए।
मुस्तक़ीम कहते है “सरकारी स्तर पर उन्होंने अत्यधिक प्रयास किए हैं कोई दरवाजा छोड़ा है मगर अब तक सरकार से ज्यादा सहयोग आम लोगो का मिला है।मुस्तक़ीम काठा में बारिश लघु बाँध के जरिये बारिश का करोडों लीटर पानी संचित करने में भी कामयाब हुए हैं।