बाढ़ की आशंका से पूरी सिहर गया है सीमांचल

Pic credits -Rihan akhtar

किशनगंज से Twocircles.net के लिए नेहाल अहमद की रिपोर्ट 

बिहार और बाढ़ के बीच का रिश्ता कोई नया नहीं है । हर साल बिहार के कई इलाक़े बाढ़ की चपेट में आते हैं । यूँ तो कई इलाके ऐसे हैं जहाँ बाढ़ की वजह से भारी तबाही होती है लेकिन बिहार के सीमांचल क्षेत्र का इलाका ख़ास तौर पर बुरी तरह प्रभावित दिखता है । वर्ष 2017 में 12-13 अगस्त की मध्य रात्रि को सीमांचल में आये बाढ़ ने काफ़ी तबाही मचाई थी । कई मामलों में पिछड़े इस इलाके में पिछले वर्षों में जिस तरह से बाढ़ ने तबाही मचाई है उससे आर्थिक तौर पर निचले तबके के लोग काफ़ी प्रभावित हुए हैं । कई बार विस्थापन की कहानियां बाढ़ से शुरू तो होती होती है लेकिन अगली बार जब बाढ़ आने की आशंका होती है तब तक शायद कई कहानियाँ हमारे सामने मर चुकी होती है । उसे न तो अखबारों का कोई कोना मयस्सर होता है और न ही कोई उसकी सुध लेने में दिलचस्पी रखता है । कुछ लोगों का तो मानना है कि इस बार बाढ़ से ज़्यादा तबाही मच सकती है ।


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बिहार में बाढ़ की भयावह स्थिति का अंदाज़ा इस बात से भी थोड़ा लगाया जा सकता है कि पिछले साल उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के घर में पानी घुस आया तो उन्हें अपना सामान लेकर सड़क पर आना पड़ा । जनता पर इसका मनोवैज्ञानिक तौर पर बुरा असर भी पड़ा कि उपमुख्यमंत्री भी बाढ़ से ‘पीड़ित’ हैं तो फिर हमारी क्या बात । गंगा, कोसी, गंडक, बागमती, महानंदा जैसी बड़ी नदियों में जलस्तर बढ़ रहा था जिससे कई जगहों पर बांध टूटने का खतरा पैदा हो गया था ।

इस वर्ष जहाँ एक तरफ कोरोना महामारी अपने चरम पर है वहीं दूसरी ओर हो रहे भारी बारिश से बाढ़ की आशंका ने लोगों को और डरा दिया है ।  उत्तर बिहार का इलाका बाढ़ से काफ़ी प्रभावित दिख रहा है । भारत-नेपाल सीमा स्थित भीमनगर कोसी बराज से शुक्रवार की शाम 5 बजे 2 लाख 49 हजार 110 क्यूसेक पानी का डिस्चार्ज किया गया । वही बराह क्षेत्र में कोसी का डिस्चार्ज 2 लाख 32 हजार 250 क्यूसेक था । पिछले 24 घंटे के अंदर कोसी के जलस्तर में 1 लाख क्यूसेक की वृद्धि हुई है । कोसी ख़तरे के निशान से ऊपर बह रहा है ।

Pic credits -Rihan akhtar

बागमती, कमला, गंडक के अलावा अन्य नदियों का जलस्तर काफ़ी बढ़ गया है जिससे मुज़फ्फरनगर, सीतामढ़ी, मोतिहारी, मधुबनी, बेतिया ज़िले में बाढ़ की सम्भावना बढ़ गई है ।

सीमांचल के किशनगंज में नेपाल के रास्ते से दिघलबैंक प्रखण्ड में बाढ़ ने दस्तक दे दी है । आज रविवार की सुबह कनकई नदी के पानी फैलने से इलाके के पश्चिमी हिस्से में हाहाकार मचना शुरू हो गया है । लोग घरों से निकल कर सुरक्षित जगह को पलायन करना शुरू कर चुके हैं । उधर पोठिया प्रखण्ड के तौयबपुर इलाके में आधी रात को महानंदा नदी का पानी घुसने से कई इलाके जलमग्न हो चुके हैं । बहादुरगंज प्रखण्ड के महेशबथना इलाके प्रभावित हैं । किशनगंज के 7 में 4 प्रखण्ड  में ख़तरा बढ़ चुका है जिसमें गाँव-घर जलमग्न नज़र आये हैं ।

कृषि बुरी तरह प्रभावित हो रही है । बिहार के कई इलाकों में मकई की खेती बुरी तरह प्रभावित है । कटिहार के किसानों का कहना है कि रोपने के वक़्त में हो रही भारी वर्षा से किसानों को बुरे दौर का सामना करना पड़ रहा है । भारी वर्षा के कारण मकई को लेकर घाटे का सौदा सीमांचल के किसान कर रहे हैं ।

बाढ़ पीड़ित की व्यथा देखिए । अभी मुश्किल से हफ़्ते-दस दिन पहले की बात है कि कटिहार ज़िले के बारसोई प्रखण्ड भवानीपुर पंचायत पुरिया के बाढ़ से पीड़ित कुल 9 सदस्यों के दो परिवार को अपना घर छोड़, सामान लेकर बाहर जाना पड़ा । परिवार के मुखिया घर छोड़ते वक़्त  कह रहे थे कि ” रात को घर में बाढ़ की पानी की वजह से करीब तीन फुट लम्बा साँप घुस आया था । रात में ही घर के बाहर बच्चियों को लेकर घर से बाहर आना पड़ा ।  कई तरह की समस्याओं से हमें गुज़रना पड़ रहा है । स्वास्थ्य समस्याओं की भी बहुत दिक्कत है ।”

दरअसल इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने इसकी सुध नहीं ली है और कुछ बुद्धिजीवी एवं आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग मदद को आगे आ रहा है । पीड़ित परिवार की उपर्युक्त जानकारी कटिहार निवासी टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान के छात्र सोहेल अख़्तर ने दी । सोहेल अख़्तर पिछले करीब दस दिनों से इस क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाकर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का मुआयना कर कई पीड़ित परिवारों को राहत पहुंचाने का काम कर रहे हैं ।

कटिहार के आजमनगर से भी नजमुस साकिब ने बारखाल बांध के पास जलस्तर के बढ़े होने की बात की । उपर्युक्त बाढ़ प्रभावित स्थानों के नाम के अलावा ऐसे कई ऐसे स्थान व ज़िले हैं जो बाढ़ से प्रभावित होते हैं और हो रहे हैं । विशेष रूप से सीमांचल के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया व अन्य इलाकों में ध्यान देने की ज़रूरत है ।  बिहार के चुनाव और कोरोना काल के बीच बाढ़ की आशंका सीमांचल ही नहीं बल्कि पुरे बिहारवासियों के लिए चिंता का विषय है । जो नेतागण कोरोना में कहीं ज़मीनी स्तर पर नज़र नहीं आए वो बाढ़ के वक़्त चुनाव की ख़ातिर बाढ़ को लेकर क्या करेंगे यह देखना दिलचस्प है । वैसे यह बताते चलें कि राजनेताओं से लगी मायूसी जनता के लिए कोई नई नहीं है ।

ज्ञातव्य हो कि 2017 बिहार बाढ़ ने उत्तर बिहार के 19 जिलों को प्रभावित किया, जिससे सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 514 लोगों की मौत हो गई। इस बाढ़ से 1 करोड़ 71 लाख लोग प्रभावित हुए। इस बाढ़ ने मरने वालों की संख्या में पिछले नौ वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया था। बाढ़ से 8.5 लाख लोगों के घर टूट गए थे और करीब 8 लाख एकड़ फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई थी ।  उत्तर बिहार में 700 किलोमीटर स्टेट हाईवे और डेढ़ दर्जन नेशनल हाईवे बाढ़ से क्षतिग्रस्त हो गए थे । रोड बर्बाद होने से करीब 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था । इसके साथ ही कई नुकसानों से जनता को गुज़रना पड़ा था ।

बाढ़ की रौद्र रूप ने इलाके को एकबार फ़िर से दहशत में डाल दिया है। खतरा सर पर है और सरकारी तंत्र सक्रिय नही है। हालात इस बार भी साज़गार नही लगते।

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