मिसाल: औरंगाबाद ‘मजलिस’ का पार्षद बन गया हजारों मज़दूरों का मसीहा

आस मुहम्मद कैफ ,Twocircles.net

औरंगाबाद


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मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे
कि दाना खाक़ में मिलकर गुल-ओ-गुलज़ार होता है”
                                             -अल्लामा इकबाल

रफ़त यार ख़ान (40) औरंगाबाद में नगर सेवक है महाराष्ट्र में नगर सेवक वही होता है जो उत्तर प्रदेश में पार्षद होता है। तकनीकी रूप से किसी एक बड़े शहर में 50 के आसपास पार्षद होते हैं। वो महत्वपूर्ण तो है मगर इतना बड़ा पद नही होता है जो पूरे नगर को प्रभावित कर सके। रफ़त यार ख़ान ने पूरे नगर को प्रभावित तो नहीं किया है मगर पूरे नगर का सिर फ़ख्र से ऊंचा ज़रूर कर दिया है। दस हज़ार मज़दूरों को वो अपनी ज़िम्मेदारी, ख़र्चे पर पेशेवर तरीक़े से मॉनिटरिंग कर उनके घर पहुंचा चुके रफ़त यार ख़ान देशभर में ऐसा करने वाले संभवत अकेले नेता है। रफ़त यार ख़ान के मैनजमेंट की स्थानीय सांसद इम्तियाज ज़लील और ओरंगाबाद कमिश्नर चिरंजीव प्रसाद ने भी सराहना की है।

महाराष्ट्र का मुस्लिम बहुल इलाक़े औरंगाबाद शहर विदर्भ का लिंक मार्ग है। मुम्बई और पुणे सहित महाराष्ट्र के कई महत्वपूर्ण शहरों में मज़दूर विदर्भ के इलाक़े से यहां से होकर गुज़रते हैं। देशभर में मज़दूरों की दर्दनाक त्रासदी के बीच ओरांगाबाद में मज़दूरों की मालगाड़ी से कुचल कर मौत हो चुकी है। कोरोना महामारी के बीच लाखों मज़दूर शहरों से अपने घर गांवो में लौट रहे हैं। यहां से हज़ारों की संख्या में मज़दूर बेहद व्यवस्थित तरीके से सुरक्षित, मध्यप्रदेश, बंसा, पर्वणी, इंद्रपुर, नासिक, नागपुर, अमरावती, बुरहानपुर जैसे इलाक़ों में पहुंचाए गए।

ऐसा औरंगाबाद के ‘यार ख़ान’ समूह ने किया। इसे औरंगाबाद में महमूद यार ख़ान ख़ानदान के तौर पर जाना जाता है। इस परिवार के 10 साल के बच्चे से लेकर महिलाएं और पुरुष समेत 70 लोगों ने पिछले एक सप्ताह से शुरू किया था। अब इनको शहर के दूसरे लोगों से ज़बरदस्त सहयोग मिल रहा है। खास बात यह है कि पेशे से ट्रांसपोर्टर रफ़त यार ख़ान आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन से पार्षद हैं और इस राजनीतिक दल को एक ख़ास पहचान तक सीमित रखा जाता है। मगर जिन मज़दूरों को इन्होंने उनके घर तक पहुंचाया वो अधिकतर बहुसंख्यक समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं।

रफ़त यार ख़ान कहते हैं, “हमनें किसी से उसकी बिरादरी,धर्म नही पूछा, क्योंकि औरंगाबाद की शान है कि यहां भूखा आता तो है तो मगर यहां से कोई भूखा जाता नही है,हम इंसानो में भेदभाव नही कर सकते क्योंकि यही हमें हमारे इस्लाम ने सिखाया है। हमारे इस काम को देखकर स्थानीय हिन्दू भाइयों ने भी हमारा सहयोग किया है। हमनें इनमे सिर्फ़ इंसान देंखे है। मैं आपको बताता हूँ कि हमनें इनको भूखे प्यासे पैदल तड़पते हुए जाते हुआ देखा है।”

रफ़त यार ख़ान के बेहद व्यस्थित इस काम को औरंगाबाद मॉडल कहकर सराहा जा रहा है। लोग हैरत में है कि कैसे बिना सरकारी मदद के 15 हजार मजदूर सुरक्षित उनके घर पहुंचाए गए! रफ़त पूरी कहानी बताते हैं कि “हमनें लॉकडाऊन के बाद ज़रुरतमंद लोगो की राशन किट से मदद करने की कोशिश की। वो स्थानीय ग़रीब लोगों की मदद थी। हमनें पिछले एक पखवाड़े से इन मज़दूरों को भूखे प्यासे सड़कों पर पैदल चलते देखा तो दिल रोने लगा।

हमें जो फ़ोटो मिल रहे वो बेहद तकलीफदेह थे। नंगे पैर चलते लोग, पानी के लिए भी तरस थे। हमनें कुछ ऐसी महिलाएं भी देखी जो गर्भवती दिख रही थी। हमने इन्हें पानी और खाना देना शुरू किया। हम इनके फ़ोटो अपने घर दिखाते थे तो हमारी औरतें रोने लगती थी। इसके बाद औरंगाबाद रेल दुर्घटना हो गई। हमारी समझ मे आ गया कि इनकी सिर्फ एक ही तरह मदद हो सकती है और वो है इन्हें सुरक्षित इनके घर पहुंचाया जाएं। हम पैसा ख़र्च कर सकते थे। आदमी लगा सकते थे। मगर हमें प्रशासनिक अनुमति की आवश्यकता थी। इसके लिए हमने पुलिस कमिश्नर चिरंजीव प्रसाद से मुलाक़ात की और उनसे अपनी नियत साझा की। वो अच्छे इंसान है उन्होंने मानवीय दृष्टिकोण अपनाया। वो उन्होंने बताया हमें तमाम स्वास्थ सावधानियां बरतनी होगी। हम तैयार हो गए। वो निरीक्षण करने भी आएं। इसके लिए हमें एक बड़ी टीम की ज़रूरत थी। हमने परिवार के 10 साल के बच्चें को भी बुला लिया। महिलाओं को काम बांट दिए और क़रीबी दोस्तों से मदद मांग ली।

इसके बाद हमने बाबा पेट्रोल पंप पर कैम्प लगा दिया। हमारा ट्रांसपोर्ट का ही बिजेनस है। हमारे पास गाड़ियों की कोई कमी नही थी। मेडिकल परीक्षण, सेनिटाइजेशन, सोशल डिस्टेन्स और एम्बुलेंस तक की व्यवस्था की गई। पहले हमने महिलाओं और बच्चे वाले परिवारों को तरजीह दी। इन्हें ऑटो रिक्शा से कलेक्ट कर कैम्प में लाया जाता था। यहां इन्हें नाश्ता, खाना, दूध और पानी के अलावा फूड पैकेट दिए ताकि इन्हें रास्ते मे भुख लगे तो ये खा सके। हमनें जिन बड़े ट्रक और बसों का इस्तेमाल किया उनमे 20 से ज्यादा मजदूरों को नहीं बैठाया। एम्बुलेंस साथ चलती रही। मेडिकल एक्सपर्ट को भी साथ भेजा गया। हमने एक दिन में इस पर 400-500 मजदूरों को उनके घर भेजा। इसके लिए हमने सैकड़ों वाहन इस्तेमाल किए।

रफ़त बताते हैं कि यह ख़र्च बहुत बढ़ गया लेकिन  सभी लोग ख़िदमत कर रहे थे। किसी ने कोई पैसा नही लिया। जैसे वो बताते हैं कि ज़ाकिर क़ुरेशी नाम वाला ऑटो चालक तक जो मजदूरों को अपने ऑटो में बैठाकर कैम्प में लेकर आता है उसने भी एक रुपया नही लिया। इस अभियान में हमारा पूरा परिवार शामिल था। यार ख़ान परिवार की बहू ज़ाइना यार ख़ान कहती है, ‘ख़र्च की बात सही है। हमारा पूरा परिवार इसमे जुटा था। हमारा कारोबार बंद था। यह कब शुरू होगा इसकी कोई निश्चिता नही थी! हमने तय किया कि हम किसी भी हद तक जाने तक इन मजदूरों की मदद करेंगे। हमने अपने परिवार के मर्दो से कह दिया कि चाहे उन्हें इसके लिए उधार ही क्यों न लेना पड़े मगर वो यह सब करते रहे क्योंकि मज़दूरों की तक़लीफ़ हम भी सोशल मीडिया में देख रहे थे। यह रमज़ान का महीना है और हम इस महीने ज़कात निकालते हैं, ज़कात के इनसे बडे मुस्तहिक़ फ़िलहाल हमें कोई नहीं दिख रहा था।’

रफ़त यार ख़ान के भाई इम्तियाज़ यार खान कलंदर यार खान बताते है कि हम सब भाई है, ‘पैसे की कमी का तो सवाल ही नही था।हम रफ़त की साथ कंधा लगाकर खड़े हो गए। यह नेक काम था। हमारे बहुत सारे दोस्त भी जुट गए।स्कूल बंद होने की वजह से बच्चे भी लिखा पढ़ी के काम मे लग गए। वो हर एक मज़दूर का रिकॉर्ड रखते थे।’ रफ़त यार बताते हैं कि पूरी टीम रोज़ा रखती है। इफ़्तार के वक़्त मज़दूर हमें देखते है। हम उनसे कहते है  थोड़ा इंतेजार कर लो, ‘हम इफ़्तार कर लेते हैं। वो हमारे पास आते हैं और कहते है,”भैया हमारे लिए भी प्रार्थना करना, तब एकदम आंख में आंसू आ जाते हैं। यह मुश्किल वक़्त है। हमें सब को एकजुट रहना चाहिए। जो हम कर सकते हैं कर रहे हैं।’

रफ़त यार खान बताते हैं कि यह सब अब्दुल वासे पटनी, कमाल फारूक उर्फ़ बाबा सेठ,फ़िरोज यार खान,यूसुफ खान,अज़हर सय्यद, अकील और मुस्तक़ीम के बिना मुमकिन नही था।इसके अलावा भी बहुत से लोगो ने मदद की।

 

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