पाठा का अमूल्य पानी : भौरा तेरा पानी ग़ज़ब करी जाए,गगरी न फूटै, खसम मर जाए !!

चित्रकूट से ज़ियाउल हक़ Twocircles.net के लिए

जैसे जैसे गर्मियां बढ़ती है वैसे वैसे पाठा के जलश्रोत सूखने लगते हैं। आलम यूं हो जाता है कि इंसान से लेकर मवेशी अपनी प्यास को बुझाने के लिए बिलखने लगते हैं। पानी को लेकर यहां की कोल आदिवासी समुदाय की महिलाएं पानी को इतना मूल्यवान मानती हैं कि उनके लिए पानी पति से कही ज़्यादा अहमो खास है। गांव में पानी को लेकर महिलाएं मीलों दूर जाकर आफत से भरी गगरी सिर में रखकर जैसे तैसे घर तक आती है। वहीं मानिकपुर तहसील अंतर्गत गोपीपुर गांव में पानी की किल्लत के चलते लोग अपनी लड़कियां ब्याहना तक पसन्द नही करते ऐसे में इस गांव के कोल समुदाय के अधिकांशतः लड़के आज भी कुंवारे हैं। यहां के युवाओं की माने तो पानी की किल्लत से उनकी ज़िंदगी मे शादीशुदा सुख से वह महरूम हैं। लेकिन अधिकारियों की माने तो पाठा की प्यास को बुझाने के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे है पर आज भी यहां के कोल आदिवासी अपने कण्ठ की प्यास के लिए साफ और सुलभ जल अमृत समझकर नलकूपों को निहारते देखे जाते हैं।


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बुन्देलखण्ड में कई दशकों से पानी की समस्या चली आ रही है। कई सरकारो ने इसके लिए करोड़ो रूपये पानी की तरह बहाए लेकिन पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है। सूरज की तपन बढ़ते ही नदी नाले पोखर और तालाब सूखने लगते है और पानी का जलस्तर भी नीचे गिरने लगता है जिसकी वजह से आम जन मानस के साथ साथ बेजुबान भी बूंद बूंद पानी के लिए तरसने लगते है। जिस समस्या की मुख्यधारा में मुश्किलों का सामना कर रहे पाठा मानिकपुर के कोल आदिवासी बाहुल्य समुदाय के दर्जनों गांव आज भी बूंद बूंद पानी को दर बदर की ठोकरे खाने को मजबूर हैं पर सियासतदारों से लेकर अफसरों तक से कोई राहत इन्हें आज तक नहीं मिल पाई है।

बुन्देलखण्ड के चित्रकूट जिले में मानिकपुर तहसील के आने वाले दर्जनों कोल आदिवासी बाहुल्य गाँव में हमेशा पानी की समस्या बनी रहती है। लेकिन गर्मी की शुरूवात होते ही ग्रामीण बूंद बूंद पानी के लिए तरसने लगते है। करोड़ो रुपये खर्च कर देने के बाद भी पाठा में यह समस्या पहले की तरह ही मुह बाय खड़ी है।

महिला बुधिया ने कहा कि जैसे-जैसे गर्मी की तपन बढ़ती है यहां ज़्यादातर गांव के जलश्रोत सूख जाते हैं और हम कोल बिरादरी की महिलायें मीलों पैदल चलकर मुश्किलों से भरी गगरी सिर में रखकर लाती है। पेयजल का यह संकट एक बार फिर भयावह रुप धारण कर चुका है। गर्मियों में वैसे तो कुंवे, तालाब, हैण्डपम्प इत्यादि जो भी पेयजल श्रोत हैं सभी का जलस्तर नीचे चला जाता है और लोग बूंद बूंद पानी के लिए मोहताज हो जाते है।

पंखी ने व्यथा बताते हुए कहा कि मार्च खत्म होते ही अप्रैल माह में मई-जून जैसी तपन को सहकर पाठा की यह कोल महिलायें मीलों पैदल चलकर अपने सिर में भारी वजन वाले बर्तन रख कर पानी लाती है।

शायद इसीलिये पाठा में कहावत है ‘एक टक सूप – सवा टक मटकी,आग लगे रुखमा ददरी,भौरा तेरा पानी ग़ज़ब करी जाए,गगरी न फूटै, खसम मर जाय। मतलब यह कि यहां की इन महिलाओं के लिए पानी अमृत के समान होता है, इनके द्वारा मीलों दूर तपती चट्टानों से पानी लेकर घर तक आते हुए यह गीत गाया जाता है जिसमे कोल महिलाओं का दर्द गगरी की हर बूंद से कहीं तेज़ छलकता है। इनका मानना है कि पानी खसम अर्थात पति से ज़्यादा मूल्यवान है। पानी की ये मुश्किल गगरी ना फूटे चाहे इनका पति क्यों न मर जाये।

आपको बता दे कि ज़्यादातर जलश्रोत सूख जाने की वजह से गर्मियों में पहाड़ों और जंगलों के किनारे बने चोहड़ों से अशुद्ध जल लाकर पीने की विवशता यहां के कोल समुदाय के ग्रामीण की नियति बन चुकी है। शायद इसीलिए रात होते ही ग्रामीणों को सुबह पानी भरने जाने की चिंता सताने लगती है और देर रात उठकर अपनी लड़ी बैल को सजाकर उसमें पानी भरने वाले बर्तन को लेकर निकल पड़ते है। पानी की तलाश में मीलो दूर जाकर इस दूषित पोखर के पानी से अपने पूरे परिवार की प्यास बुझाते है ।

आजादी मिलें कई दशक से अधिक का समय व्यतीत हो गया है लेकिन पाठा में बसने वाले कोल आदिवासी आज भी मूलभूत सुविधाओ से वंचित है। आखिर कब ऐसा समय आयेगा जब वर्षों से प्यासी यहां की बंजर जमीनों में फिर से फसलें लहलहा उठेंगी। बामुश्किल पीने के पानी की व्यवस्था करने वाले को नहाने के लिये भी पानी की उपलब्धता होगी, यह यक्ष प्रश्न है?

ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें पानी के लिए जान जोखिम में डालनी पड़ती है। जंगलों से होकर पानी लेने जाना पड़ता है उनकी पूरी उम्र बीती जा रही है लेकिन पानी की समस्या खत्म होने का नाम नही ले रही है उन्हें मीलो दूर से सिर में पानी का बर्तन रख कर लाने की वजह से उनके सर में अब दर्द बना ही रहता है और यही वजह है कि उनके गोपीपुर गांव कोई बेटी की शादी नही करना चाहता है और जिनकी शादी हो भी गयी है तो वह लोग इस गांव में शादी करवाकर बेहद पछता रही है। इसीलिए इस गांव में एक सैकड़ा से अधिक कुँवारे लड़के बैठे है जिनकी शादी नही हो रही है यँहा के पानी को समस्या को देखकर वो शादीशुदा जिंदगी को लेकर नाउम्मीद भी हैं।

बहरहाल अभी तो प्रशासनिक अमला आने वाले दिनों में पानी का संकट गहराने से अन्जान है। मार्च का महीना खत्म होने को है लेकिन अभी तक प्रशासन ने पानी की किल्लत से निपटने के लिए कोई ठोस नीति तैयारी नही की है और न ही गांव में बिगड़े पड़े हैण्डपम्पों को दुरस्त कराये और न ही कुआँ पोखरों की सफाई कराई गई है जिससे लोग दूषित पानी पीने के लिए मजबूर है। लेकिन यह तय है कि पूर्व वर्षों की भाॅति इस वर्ष अभी से गर्मी इस बात का स्पष्ट संकेत दे रही है, इस बार यह जल संकट धीरे धीरे विकराल रुप धारण करेगा। वही मानिकपुर विकास खण्ड के बीडीओ सुनील कुमार सिंह का कहना है कि इस विकराल समस्या पर सरकार द्वारा चलाई जा रही हर घर नल, हर घर जल की योजना से जल्द ही नियंत्रण पाने की बात कही है जैसे ही मई जून के महीना में भीषण गर्मी पड़ने लगती है तो उसके लिए गाँव गाँव मे पानी का टैंकर भेजा जाएगा जिसका रोड मैप तैयार कर लिया गया है और जल्द ही सरकार द्वारा चलाई जा रही परियोजना से हर घर तक पानी पहुचेगा ।

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