स्टाफ़ रिपोर्टर। Twocircles.net
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले नाम बदलने की राजनीति फिर से शुरू होने लगी है। सोमवार को अलीगढ़ के नवगठित जिला पंचायत की बैठक में जिले का नाम बदलकर हरिगढ़ किए जाने के प्रस्ताव को पास किया गया। सदस्यों ने दावा किया कि यह काफी समय से एक लंबित मांग थी। यह प्रस्ताव पंचायत की पहली बैठक में बिना किसी विपक्ष के 72 में से 50 सदस्यों की उपस्थिति में पारित किया गया है।
अलीगढ़ के जिला पंचायत अध्यक्ष विजय सिंह ने मीडिया को बताया, ” अलीगढ़ का नाम हरिगढ़ करने की लंबे समय से मांग की जा रही थी। जिला पंचायत ने इस प्रस्ताव को निर्विरोध मंजूरी दे दी है और अब इसे राज्य सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।” मिली जानकारी के अनुसार, साथ ही अलीगढ़ हवाईअड्डे का भी नाम पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता कल्याण सिंह के नाम पर रखने का प्रस्ताव पारित किया गया है। जिला पंचायत की बैठक के सात प्रस्तावों पर मात्र तीन मिनट में ही मुहर लग गई, चूंकि वहां उन प्रस्तावों को लेकर किसी भी सदस्य ने कोई आपत्ति नही जताई।
जिला पंचायत परिसर के गोविंद वल्लभ पंत सभागार के किसान भवन में नवगठित जिला पंचायत की इस दूसरी बैठक का आयोजन किया गया था जिसमें जिला पंचायत अध्यक्ष विजय सिंह ने सभी सदस्यों, ब्लाक प्रमुख, विधायकों से उनके सुझाव मांगे। बिना किसी विपक्ष के सभी सदस्यों की सहमति पर सदन ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
उत्तर प्रदेश राज्य में एक महीने के भीतर ये तीसरा जिला पंचायत है जहां शहरों का नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया गया है। इससे पहले मैनपुरी की जिला पंचायत ने भी मैनपुरी का नाम बदलकर मयन नगर करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। प्रस्तावित नाम संत मयन के नाम के ऊपर आधारित है जिन्हे वर्तमान मैनपुरी के स्थापना का श्रेय दिया जाता हैं। तो वहीं दूसरा मामला फिरोजाबाद जिला पंचायत का हैं, जहां एक प्रस्ताव पारित कर फिरोजाबाद का नाम बदलकर चंद्रनगर करने की मांग की गई है। स्थानीय लोगों का मानना था कि राजा चंद्रसेन फिरोजाबाद में रहते थे और इस वजह से इसे लगभग 1560 ई० तक चंद्रनगर के नाम से ही जाना जाता था।
ज्ञात हो कि ये कोई नया मामले नही हैं जब ऐतिहासिक स्थानों या शहरों के नाम बदलने की कोशिश की गई हो। कुछ ऐसे ही, लेकिन असफल प्रयास भाजपा द्वारा 1992 में भी किया जा चुका है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने फैजाबाद का नाम बदलकर ‘साकेत’, मुगल सराय का नाम ‘दीन दयाल उपाध्याय नगर’, अलीगढ़ से ‘हरिगढ़’, लखनऊ से ‘लक्ष्मणपुरी’, कानपुर से ‘खंकर विद्यार्थी नगर’, इलाहाबाद से तीर्थराज प्रयाग’ और लखनऊ के प्रसिद्ध हजरत महल पार्क का नाम ‘उर्मिला वाटिका’ करने का फैसला किया था।
लेकिन उस समय केंद्र सरकार की वैधानिक अनुमति नहीं मिल पाने के कारण ये मुद्दे लंबे समय तक बंद बस्ते में ही पड़े थे। हालांकि बीते सालों में भाजपा सरकार को मुगल सराय और इलाहाबाद इत्यादि के नाम को बदलने में सफलता मिली है। तो वहीं आज भी जिला अलीगढ़ में कई बोर्ड आसानी से ऐसे देखने को मिल जाते हैं, जिन पर ‘हरिगढ़’ लिखा हुआ हो। यहां तक कि अलीगढ़ जिले के एक स्कूल के नाम में भी हरिगढ़ था।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र नेता ताजिम शेख ने TwoCircles.Net को संबंधित मामले में जानकारी दी के, “ऐसा नहीं है की पूर्व में शहरों अथवा जगहों के नाम नही बदले गए हो लेकिन उसकी वजह शब्दों के उच्चारण हुआ करते थें।” ताजिम बताते हैं कि नाम बदलने की राजनीति के पीछे कुछ विशेष राजनैतिक दलों का अपना लोभ छिपा हुआ है। “लोगों को धर्म और जात के नाम पर बांटा जाता रहा है और वही काम अभी भी हो रहा है जिसके खिलाफ लोगों को अपनी आवाज़ें उठानी चाहिए।”
बता दें कि नाम बदलने की राजनीति सिर्फ उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं है बल्कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी इसका खासा असर देखने को मिल जाया करता है। स्थानीय राजनेता मुस्लिम बहुल इलाकों के नाम को हिंदू नामों से बदलने की कई ज़माने से कोशिश करते आए हैं। जिसमें, न्यू जाफराबाद का नाम ‘सदानंदपुरी एक्सटेंशन’ और बाबरपुर का नाम ‘नई मांगगढ़ी’ करने की योजना है। इस प्रयास के खिलाफ में एक गैर सरकारी संगठन अंजुमन मिल्लत-ए-इस्लामिया अदालत का दरवाज़ा खटखटाते हुए एक याचिका दायर भी कर रखा है।
अधिकांश इतिहासकार इस बात में सहमति रखते हैं कि ये प्रक्रिया “इतिहास और संस्कृति” से अधिक, सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए राजनेताओं को स्थानों और शहरों के नाम बदलने के मुद्दे को उठाने के लिए मौका प्रदान करती है। इतिहासकारों को मानना है कि किसी भी शहर या जगह के नाम का एक ऐतिहासिक महत्व होता है, इसलिए किसी भी शहर या स्थान का नाम बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए। और सरकारों को भारत की सांस्कृतिक विरासत को खंडित करने के इस प्रकार के अनुचित प्रयासों को रोकना चाहिए।