अभी चंद्रशेखर ‘टाइम ‘में आये हैं….उनका टाइम तो आगे आएगा !

भीम आर्मी सुप्रीमो चंद्रशेखर आज़ाद को मशहूर पत्रिका ‘टाइम ‘ में दुनिया मे 100 उदीयमान नेताओं में शामिल किया गया है जिसकी ख़ूब चर्चा हो रही है। उनके संंघर्ष पर यह पढ़ लीजिए

आसमोहम्मद कैफ। Twocircles.net


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20 अप्रैल 2017 की देर शाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक वीडियो रिलीज की गई थी। इस वीडियो में एक नीला गमछा पहने एक युवक चेहरे पर गंभीर भाव के साथ किसी एक विवाद में अपने समाज के युवाओं के लिए निर्देश जारी कर रहा था। सात -आठ युवकों के साथ बीचोबीच बैठा वो युवक कह रहा था कि सड़क दुधली गांव में आज हुए बवाल में उनके समाज के युवक षड्यंत्र को समझे और मुस्लिमों के साथ झगड़ा न करे। वो हमारे भाई हैं। यह विवाद भाजपा के लोगों ने राजनीतिक द्वेष के चलते पैदा किया है। वो यहां दलित और मुसलमानों को आपस मे लड़ाकर अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहते हैं। दोनों ही समाज कमज़ोर और संघर्षशील है वो लड़ेंगे तो बर्बादी तरफ मुड़ जाएंगे !

वीडियो में बोल रहा यह युवक उस दिन दुनिया के लिए अंजान था मगर जिनके लिए उसने यह संदेश जारी किया मगर उनका वो हीरो था। बात व्हाट्सअप हुई और स्मार्ट फोन वाले युवकों से वीडियो के साथ नुक्कड़ ,गलियारों और घरों के अंदर तक पहुंच गई। एक ही रात में मौसम बदल गया। सुबह नफरत की खेती करने वालों के लिए उम्मीद निराशा में बदल गई। दलित और मुस्लिम दंगे की साजिश रचने वाले नाकामयाब हो गए। दोनों पक्षों के नोजवान नही लड़े।

दंगे की साजिश रचने वाले तत्व इतने कॉन्फिडेंट थे कि उन्होंने सहारनपुर के पुलिस कप्तान के आवास तक पर हमला कर दिया था। उनकी नेम प्लेट तक तोड़ दी थी। पुलिस कप्तान की कोठी में घुसकर हंगामा किया था। मगर फिर भी दंगा नही हुआ। जबकि दंगे की सभी संभावित बिसात बिछी हुई थी। माहौल बहुत गर्म था। दोनों समुदायों में यह गर्मी एक शोभायात्रा को लेकर पैदा हुई थी। सहारनपुर से देहरादून मार्ग पर 5 किमी की दूरी वाले गांव सड़क दुधली में रविदास जयंती पर बवाल हो गया था। बहुत तेजी से प्रचार किया जा रहा था कि रविदास जयंती की शोभायात्रा को मुस्लिम बहुल सड़क दुधली में रोक लिया गया है और दलित समाज के लोगो पर हमला हुआ है। अफवाहों का दौर चल पड़ा था। मुस्लिम पक्ष में यह अफवाह फैलाई जा रही थी कि दलित पक्ष ने जानबूझकर तय मार्ग से हटकर यात्रा निकाली और मस्जिदों के बाहर जाकर नारे लगाए। अफवाह पूरे सहारनपुर में फैल गई थी। दलित और मुस्लिम बहुल यह जिला बारूद के ढेर पर आ गया था।

सड़क दुधली के ही अनीस गाड़ा बताते हैं कि फिर वो ‘चंद्रशेखर’ की वीडियो आई। वीडियो में बोल रहे वो युवक भीम आर्मी का संयोजक चंद्रशेखर थे। घड़कौली की घटना के बाद से वो दलितों युवकों के दिलों में बसते थे और सहारनपुर का दलित नोजवान उनके निर्देशो पर अमल करता था। इस वीडियो ने दोहरा असर किया। एक तो मुसलमानों में तमाम ग़लतफ़हमी दूर हो गई दूसरा दलित युवकों को एकदम समझ मे आ गया कि हिंदूवादी संगठनों के लोग उनके कंधों पर बंदूक रखकर षड्यंत्र कर रहे थे। बाद में यह बात साफ हो गई। इस रविदास शोभायात्रा में हिन्दू संगठनों के सैकड़ों युवक शामिल हुए थे। तेजतर्रार चंद्रशेखर ने यह ताड़ लिया था। स्वाभाविक तौर पर चंद्रशेखर इस घटना के बाद एक खास समूह की आंख में खटकने लगें।

इस घटना के 20 दिन बाद 9 मई को शब्बीरपुर में दलितों के प्रति हुए अत्याचार के विरोध में शहर में हुई हिंसा में मुख्य आरोपी बनाए गए चंद्रशेखर आज़ाद के विषय मे स्थानीय जानकर मानते हैं कि उन्हें इस हिंसा में मुख्य आरोपी सड़क दुधली घटना में उनके प्रयासों से चिढ़कर हिंदुत्ववादी संगठनों की नाराजगी पर राजनीतिक कारणों से बनाया गया था। चंद्रशेखर इसके बाद आंख में इतने खटके कि वो गिरफ्तार हुए उनपर रासुका लगाई गई ,हर बार उसकी तारीख बढ़ा दी जाती थी। उनके अलावा भीम आर्मी के 200 से अधिक कार्यकर्ता भी इसके बाद जेल चले गए।

सहारनपुर में 9 मई हुई हिंसा के बाद जब सब कुछ चंद्रशेखर के सर थोपा जाना लगा तो रामनगर गांव में कड़ाके की सर्दी में महिलाएं रविदास मंदिर में धरने पर बैठ गई। उनके पक्ष में प्रदर्शन होने लगे। हालात यह थे कि जेल से भीम आर्मी का कोई कार्यकर्ता जमानत पर बाहर आता था और उसके तुरन्त बाद वो एक सभा करता था। दिल्ली रोड़ पर भीम आर्मी के अध्यक्ष ( पुलिस यहाँ भी उन्हें गिरफ्तार करने की हिम्मत नही जुटा पाई।) विनय रतन सिंह ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि जेल में भाई ( चंद्रशेखर आज़ाद को भीम आर्मी के कार्यकर्ता भाई कहकर बुलाते हैं) की हत्या की साजिश हो रही है और दो मुसलमान लड़के साये की तरह भाई की हिफाज़त कर रहे हैं। 15 महीने बाद जेल से चंद्रशेखर आज़ाद बाहर आये। भीम आर्मी के स्थानीय कार्यकर्ता प्रवीण गौतम बताते हैं कि इसके बाद भी सरकार ने दमन की तमाम कोशिशों को कायम रखा। उनके भाई ,परिवार और साथियों तक पर मुक़दमे दर्ज कर दिए।

सहारनपुर से जेल से बाहर आने के बाद चंद्रशेखर और भी अधिक परिपक्व हो चुके थे। उन्होंने कहा कि मेरी रिहाई के जश्न न मनाए। हम आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग है। ऐसे में हमे पैसे खर्च नही करने चाहिए। इन पैसों को बहनों की शादी में खर्च करें। 2 अप्रैल 2018 की घटना में सैकड़ों बेगुनाहों को जेल भेजा गया है हम उन्हें जेल में से छुड़ाने का प्रयास करे। भीम आर्मी का मिशन अब पूरे भारत मे फैलाया जाएगा। हम हर मजलूम और बेसहारा की साथ खड़े होंगे।

मेरठ के अरविंद गौतम बताते हैं कि चंद्रशेखर की एक खास मीडिया में गुंडे की छवि बनाई जा रही थी। ऐसा बताया जा रहा था कि वो दलित युवकों को बहका रहे हैं। सरकार उन्हें जेल भेजकर खुश हो सकती थी मगर चंद्रशेखर के मजबूत मानसिक निर्माण के लिए यह अच्छा हुआ। जेल में चंद्रशेखर को समय मिला और जेल से बाहर आने के बाद उसका बयान इसी परिपक्व सोच को प्रदर्शित कर रहा था। आज चंद्रशेखर के नेतृत्व को दुनिया ने स्वीकार किया है। यह इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने खुद से किए गए कमज़ोर के साथ खड़े होने के प्रण को हर कीमत पर निभाया है। यही कारण है कि सीएए विरोधी प्रदर्शन और हाथरस कांड में उनकी छवि धूमिल करने के तमाम प्रयासों के बावूजद भी समाज ने उनपर भरोसा कमजोर नही पड़ने दिया।

दुनिया की सबसे लोकप्रिय पत्रिकाओं में से एक टाइम में सबसे उदीयमान नेताओ में चुने जाने के बाद आई तमाम प्रतिक्रिया देखकर ऐसा लगता है कि चंद्रशेखर सहारनपुर के छुटमलपुर के चंद्रशेखर आज़ाद से नफरत करने वालो की तादाद भी कम नही है। सहारनपुर के ही मोहसीन राव कहते हैं कि इसमे बिल्कुल भी आश्चर्य की बात नही हैं। यह एकदम सामान्य बात है। चंद्रशेखर जिस समाज से आये हैं वहां खुलकर अपनी बात कहना भी हिम्मत की बात होती है। इस समाज का सदैव दमन होता आया है।अब टाइम मैगज़ीन  जैसी जगह किसी दलित का बेटा का जिक्र होगा तो वो कुछ कथित ऊंचे लोगों को तक़लीफ़ तो जरूर देगा। मगर उनकी यह कामयाबी अच्छी है। उनमें अभी बहुत संभावनाएं है।

पिछले साल चंद्रशेखर आज़ाद ने राजनीतिक पार्टी का गठन किया, हालांकि लॉकडाऊन के चलते उन्हें इसकी बहुत अधिक चर्चा नही मिल पाई। बिहार चुनाव में उन्हें चर्चा तो बहुत मिली मगर वोट अपेक्षित नही मिला। बिजनौर के दयाचंद भारती कहते हैं कि राजनीतिक रूप से उनका पार्टी बनाना सही फैसला है। यह समाज के लिए बैकअप प्लान है। इसमे बहुत अधिक गहराई है और हर किसी की समझ मे यह नही आएगा। यह बात अलग है कि चंद्रशेखर को आंदोलन सूट करते हैं। वो मजलूमों की लड़ाई दमदार तरीके से लड़ते हैं। दलित युवाओं ने उन्हें नेता स्वीकार कर लिया है। अभी तो वो टाइम में आएं है। थोड़ा इंतेजार कीजिये उनका भी टाइम आएगा।

दयाचंद भारती की इस बात में इसलिए भी दम दिखता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित बहुल गांवों में ‘द ग्रेट चमार ‘ बोर्ड लगे है। यहाँ दलित युवाओं में चंद्रशेखर हीरो है। वो चंद्रशेखर के विरोध में एक शब्द नही सुन सकते। मुजफ्फरनगर के विकास जाटव कहते हैं कि हर तरह के संकट में वो समाज के साथ खड़े रहते हैं। आज वो नए नही है बल्कि परखें जा चुके हैं। वो हमारे है और हम उनके है। हम सब जानते हैं वो हमारी तरह गरीब घर के बेटे है। उन्होंने भी अभाव में जिंदगी जी है। वो चांदी का चम्मच मुंह मे।लेकर पैदा नही हुए।

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