जिब्रानउद्दीन।Twocircles.net
रविवार को बीपीएससी की 64वीं परीक्षा का परिणाम घोषित कर दिया गया। इस बार परीक्षा में 1454 अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए हैं। जिनमें से रिकॉर्ड स्तर पर उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय से जुड़े हुए हैं। इस बार के परीक्षा में जो सबसे दिलचस्प देखने को मिला वो मुस्लिम समुदाय की महिलाओं का प्रदर्शन था। भारतीय समाज में अक्सर मुस्लिम महिलाओं को पिछड़ा और उत्पीड़ित समझा जाता है, वहीं इस परीक्षा के माध्यम से 28 उत्तीर्ण मुस्लिम महिलाओं ने पूरे समाज के लिए एक अलग उदाहरण पेश किया है। इन महिलाओं में कोई दो बच्चे की मां शामिल हैं,तो किसी ने अपने पिता के जीवित न होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी।
मुस्लिम समुदाय से पहली महिला डीएसपी बनने वाली रजिया सुल्ताना के पास बधाइयों के लड़ी लगी हैं। सोशल मीडिया पर भी उनके बारे में खूब चर्चा हो रही हैं। और हो भी क्यों न आखिर वो बिहार की पहली मुस्लिम महिला हैं जो सीधा बीपीएससी क्लियर करके डीएसपी बनेंगी। सुल्ताना बताती हैं कि उन्होंने बीपीएससी की तैयारी घर पर ही पुरी की है। “पटना में बीपीएससी की कोचिंग हिंदी में होती थी जिसमे मुझे काफी दिक्कतें आ रही थीं,” इसी वजह से खुद से ही तैयारी कर के उन्होंने इंग्लिश भाषा से बीपीएससी की परीक्षा पास किया। रजिया बिहार के हथुआ गोपालगंज की निवासी हैं।
पढ़ाई लिखाई में हमेशा से होशियार सुल्ताना ने बोकारो से अपनी 10वीं और 12वीं कक्षा को पास किया। फिर राजस्थान के जोधपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। सुल्ताना पेशे से इंजीनियर थीं और 2017 से बिजली विभाग में असिस्टेंट इंजीनियर के तौर पर काम कर रही थीं। सुल्ताना ने बताया कि डीएसपी के पद पर आने के बाद उनका सबसे पहला काम अपराधों पर लगाम लगाने का होगा। “महिलाओं की हिफाज़त पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है।” उनका मकसद घरेलू हिंसा जैसी वारदातों को भी रोकने का होगा। रजिया सुल्ताना को 64वीं यूपीएससी परीक्षा में 1465वां स्थान हासिल हुआ है।
इसी तरह 229वां स्थान प्राप्त करने वाली रूशदा रहमान भी खुद को काफी भाग्यशाली बताती हैं। गया के मोरया घाट निवासी रूशदा ने अपने परिवार के साथ साथ पूरे इलाके और साथ ही मुस्लिम समुदाय का भी नाम रोशन किया है। रूशदा बताती हैं की उनके दोनो भाईयों ने उनकी खूब मदद की है, “आज मैं जो भी हूं अपने भाइयों की वजह से।” रूशदा के पिता इस दुनिया में नहीं हैं, इसके बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और मुस्लिम महिलाओं के लिए एक मिसाल बनकर सामने आई हैं। “सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता।” कड़ी मेहनत करके रूशदा ने ये साबित कर दिया है। रूशदा जल्दी ही सेक्शन ऑफिसर, बिहार लेजिस्लेटिव असेंबली के पद पर नियुक्त होंगी।
कहते हैं परीक्षाओं में बच्चों का हौसला मां बढ़ाया करती हैं लेकिन गोपालगंज में इस बीपीएससी के 64वीं परीक्षा के परिणाम के बाद कुछ अलग ही बात सामने आई। जहां दो बच्चे अपनी मां के लिए लगातार हौसले का स्रोत बने हुए थे। तब्बू खातून ने दो बच्चों की मां होने के बावजूद इस परीक्षा में सफल होकर समाज के सभी तबकों, खासकर मुस्लिम समुदाय को एक संदेश दिया है। तब्बू खातून को 2129वां रैंक प्राप्त हुआ। और वो जल्द ही सप्लाई इंस्पेक्टर बनने वाली हैं। गोपालगंज जिले के धोबवलिया गांव की रहने वाली तब्बू अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार को देती हैं।
ब्लॉक माइनॉरिटी वेलफेयर के लिए चयनित मासूमा खानम ने अपना अनुभव साझा करते हुए मीडिया को बताया, “ये 3 स्तरीय परीक्षा है तो इसके लिए सब्र रखने की जरूरत हैं क्योंकि थोड़ा समय तो लगता ही है, लेकिन एक दिन मेहनत रंग भी जरूर लाती है ” खानम ने खुद का उदाहरण देते हुए आगे कहा कि, “ऐसा नही है की जिन लड़कियों की शादी हो जाए उन्हें सब छोड़ देना चाहिए बल्कि कोशिश में लगे रहना चाहिए। वो मेरी तरह ही अच्छे से घर रहकर भी तैयारी कर सकती हैं।”
खानम कहती हैं, उन्होंने घर पर रहकर प्रीलिम्स की तैयारी थी, फिर मुख्य परीक्षा के लिए 3 से 4 महीने हज हाउस में जाकर वहां रहकर तैयारी की थी। खानम खुद को किरण बेदी से प्रेरित बताती हैं जिनकी वजह से उन्हें भी सिविल लाइन में जाने की चाह जगी थी। लेकिन बीच में उन्हें कुछ जरूरी वजह से उन्होंने अपने सपने पर विराम लगाना पड़ा था। उनको जब सरकारी अध्यापक की जॉब लगी तो उन्हे कुछ अंतराल के लिए लगा की उनकी इतनी ही सीमा है। लेकिन उनके दोस्त रिश्तेदारों ने उस समय काफी हौसला दिया के वो आगे भी बहुत कुछ कर सकती हैं और सपनों का इस तरह गला घोंटना सही नहीं।
मासूमा खानम ने अपने पहले ही प्रयास में कामयाबी पा लिया और अपने जानने वालों की उम्मीद पर पूरी खड़ी उतरी। बीएन मंडल यूनिवर्सिटी से अपनी स्नातक और नालंदा यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने वाली मासुमा काफी समय से अध्यापक के तौर पर कार्यरत थीं। उन्होंने आगे के इरादे के बारे में बताया कि अभी बहुत मेहनत बाकी है और यहीं तक हार नही मानना है। मासूमा ने अपने ससुराल वालों का भी धन्यवाद किया कि वो सब हर मोड़ पर उनके साथ खड़े थें। उन्होंने आखिर में देश और कौम की लड़कियों को संदेश देते हो कहा की हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और डटे रहना, “ऐसा जरूरी नहीं कि बड़ी कोचिंग में जायेंगे तभी सफलता मिलेगी,” सफलता के लिए बस मेहनत शर्त है।
इसी तरह शहला बारी ने सारी रुकावटों के बावजूद भी खुद के और परिवार के सपनों को टूटने नहीं दिया। वो रेवेन्यू अफसर बनी हैं। उनके भाई शारिक बारी कहते है वो अपनी बहन के साथ – साथ सभी बिहार की सभी बेटियो के प्रदर्शन से काफी खुश है। इन्होंने समाज में अपना और अपने समुदाय का नाम रोशन किया है। उन्होंने समाज के लोगों को ये भी बताया कि रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रह की सोच रखकर मुस्लिम महिलाओं को पिछड़ा और दबा हुआ समझना गलत है, आज वो भी कदम कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं।