ग्राऊंड रिपोर्ट : मौलाना उमर गौतम के गांव में एक भी मुसलमान नही,पिता ने गांव में बनवाया था मन्दिर

आकिल हुसैन।Twocircles.net

उत्तर प्रदेश का फतेहपुर ज़िला पिछले दो दिनों से चर्चा में हैं। चर्चा में होने की वज़ह है धर्म परिवर्तन करवाने के आरोप में गिरफ्तार हुए मौलाना उमर गौतम। उमर गौतम फतेहपुर जिले के थरियांव थाना क्षेत्र के पंथुवा गांव का रहने वाले थे। फतेहपुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंथुवा गांव ग्राम पंचायत रमवां का मजरा हैं।


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फतेहपुर के अलावा कानपुर भी चर्चा का विषय बना हैं, पुलिस के अनुसार मौलाना उमर गौतम ने कानपुर में भी कई लोगों का धर्म परिवर्तन करवाया हैं। कानपुर से फतेहपुर स्थित मौलाना उमर गौतम के गांव पंथुवा की दूरी लगभग 90 किलोमीटर की हैं। मौलाना उमर गौतम के गांव पंथुवा में क़रीब एक हज़ार की आबादी हैं। पंथुवा हिंदू बाहुल्य गांव हैं, जहां ठाकुर, यादव, मौर्य, दलित और अन्य पिछड़ी जाति के लोग रहते हैं। पंथुवा में मुस्लिम आबादी बिल्कुल भी नहीं है।

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पंथुवा गांव की रास्ता फतेहपुर शहर से सटे अंदौली गांव से होकर गुजरती हैं। मौलाना उमर गौतम के घर के बाहर दो नीम के पेड़ लगें हुए हैं, सड़क के दूसरी ओर मकान के सामने ही एक मंदिर बना हुआ हैं,यह मंदिर मौलाना उमर गौतम के पिता द्वारा बनवाया गया था। उमर गौतम के गांव पंथुवा में अब
परिवार का कोई नहीं रहता हैं, बस उमर गौतम के चचेरे भाई राजू सिंह यहां रहते हैं जो खेती-बाड़ी का काम करते हैं।

उमर गौतम के पिता धनराज सिंह गौतम क्षेत्र के प्रतिष्ठित राजपूत परिवार में से थे। धनराज सिंह गौतम एडीओ पंचायत पद से रिटायर हुए थे, दो साल पहले उनकी मृत्यु हो चुकी हैं। उमर गौतम के चचेरे बड़े भाई राजू सिंह कहते हैं कि उमर अपने पिता की मौत के बाद आख़िरी बार गांव आया, वो भी महज़ 15-20 मिनट के लिए। राजू कहते हैं कि उमर को मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद परिवार ने त्याग दिया था और घर से बेदखल कर दिया था, तबसे परिवार का उमर से कोई वास्ता नहीं हैं।

उमर के चचेरे भाई राजू सिंह कहते हैं कि गांव में उमर का किसी से लेना देना नहीं हैं। राजू के अनुसार उमर ने गांव सन् 1980 में पढ़ाई के लिए छोड़ दिया था,फिर उसने पंतनगर में धर्म-परिवर्तन कर लिया तबसे गांव का उससे कुछ वास्ता नहीं हैं। राजू सिंह कहते हैं कि लगभग 35 साल हो चुके हैं इस बात को, सन् 1984 में उसके धर्म परिवर्तन कर लेने के बाद से परिवार वालों के विरोध के चलते उसने गांव छोड़ दिया था, तबसे अभी तक बहुत ही कम गांव में आना जाना हुआ उसका।

पंथुवा गांव के पुराने और बुजुर्ग लोग भी उमर के धर्म परिवर्तन करने वाली बात को भूल चुके हैं। काफ़ी याद करने पर उन्हें 35 साल पुरानी बात श्याम के धर्म परिवर्तन की ध्यान आतीं हैं। गांव के बुजुर्ग लोग कहते हैं कि जो पुराने लोग गांव में हैं सिर्फ वहीं उमर को जानतें हैं लेकिन नई पीढ़ी के लोग उमर को न ही जानते हैं और न ही उसे कभी देखा। गांव के पुराने लोग बताते हैं कि उमर कभी कभार गांव तो आया लेकिन कोई उससे बातचीत नहीं करता था।

श्याम गौतम के इस्लाम धर्म ग्रहण करने की बात को लगभग 35 साल गुजर चुके हैं। श्याम गौतम ने 20 वर्ष की उम्र ही में अपने दोस्त नासिर ख़ान के सेवाभाव से प्रेरित होकर और इस्लाम,कुरान पर अध्ययन करके इस्लाम कुबूल करके श्याम सिंह गौतम से मोहम्मद उमर बना था। तबसे उमर अपने परिवार से अलग दिल्ली में रह रहा हैं। उमर के चचेरे भाई राजू सिंह कहते हैं कि उनका उससे मुसलमान बनने के बाद न ही कोई संपर्क रहा कभी और न ही कोई वास्ता था। वे कहते हैं कि उन्हें उमर गौतम द्वारा किए जा रहें धर्मांतरण कार्यों की कोई जानकारी नहीं है। राजू कहते हैं कि इस मामले की जांच होनी चाहिए।

उमर के गांव पंथुवा के ज्यादातर नई पीढ़ी के लोगों को उमर की जानकारी नहीं है, गांव के बुजुर्ग लोग कहते हैं कि उमर ने ग़लत किया है उसको सज़ा मिलनी चाहिए। उमर के गांव से क़रीब के गांव के रेहान कहते हैं कि उनको साजिश के तहत फंसाया गया हैं,वे कहते हैं कि मौलाना उमर पर जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन करवाने के आरोप गलत और बेबुनियाद हैं।

गांव के एक व्यक्ति बताते हैं कि उमर ने करीब ही के गांव खेसहन के राजपूत परिवार के में शादी कर ली थी। उसके ससुराल वालों को जब उसके मुस्लिम होने का पता चला तो उसके ससुर छत्रपाल सिंह ने उसे बहुत समझाया था कि वो वापस हिंदू बन जाएं लेकिन वो नहीं माना अगर वो तब मान जाता तो उसे आज यह सब भुगतना नहीं पड़ता।

उमर गौतम अपने 6 भाईयों में चौथे नंबर के हैं। उमर के एक भाई की मृत्यु हो चुकी है बाकि भाई भी बहुत पहले ही गांव छोड़कर फतेहपुर के बाहर रह रहें हैं। मौलाना उमर ने 1984 में मुसलमान होने के बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया से इस्लामिक इस्टडीज में एमए किया और फिर इस्लामिक इस्टडीज मे पीएचडी की,इस दौरान उसने जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी में पढ़ाया भी। पीएचडी के बाद उमर 1994 में आसाम चले गए।

उमर गौतम ने आसाम में 16 साल गुजारे। उमर गौतम आसाम जाकर वर्तमान सांसद और राजनैतिक दल एआईयूडीएफ के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल की संस्था
मरकज़ुल मारिफ़त एजुकेशन एंड रिसर्च में जुड़ गए। जानकारी के अनुसार उमर इस संस्था के माध्यम से इस्लामिक मदरसों के बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा और दीनी तालीम के अलावा उन्हें अलग अलग दुनिया के विषयों की ट्रेनिंग देते थे। उमर गौतम के अनुसार उनके जीवन में मौलाना बदरुद्दीन अजमल का काफ़ी प्रभाव पड़ा। प्रभाव का असर यह हुआ कि वे अपने बीवी बच्चों को इस्लाम धर्म में ले आएं।

2010 में वापस दिल्ली आकर मोहम्मद उमर गौतम ने इस्लामिक दावाह सेंटर की स्थापना की । इस संस्था के माध्यम से उमर कुरान , उर्दू और इस्लामिक शिक्षा देने लगें। उमर इस संस्था के माध्यम से दूसरे तमाम धर्म के लोगों को इस्लाम धर्म के बारे में अवगत कराते और अपनाने के लिए प्रेरित करने का काम करते। उमर गौतम देश और दुनिया तमाम जगहों पर जाकर इस्लाम पर व्याख्यान देने लगे।

यूपी एटीएस ने उमर गौतम पर रुपए, नौकरी और शादी का लालच देकर लगभग एक हज़ार लोगों के जबरन धर्मांतरण करवाने का आरोप लगाया है और साथ ही विदेशी फंडिंग भी होने का दावा करा हैं। एटीएस द्वारा लगाए गए आरोप कहां तक सच है यह तो अदालत फैसला करेंगी। अभी तक उत्तर प्रदेश पुलिस एक भी ऐसे व्यक्ति को सामने लेकर नहीं आईं हैं जिसका उमर गौतम द्वारा जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया गया हो।

पुलिस का कहना है कि उमर गौतम पिछले कई वर्षों से रूपए, नौकरी, शादी का लालच देकर धर्म परिवर्तन करवा रहें थे, हालांकि कुछ स्थानीय लोग कह रहे हैं कि उमर कई वर्षों से यह काम कर रहे थे तो तब उत्तर प्रदेश पुलिस या सरकार क्या कर रही थी। सवाल उठता है कि जब सरकार को पहले ही से जानकारी थी तो पहले ही कार्रवाई क्यों नहीं की गई। लोग दबी ज़बान में कह रहे हैं आने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा धर्मांतरण को मुद्दा बनाएंगी उसी के तहत यह कार्य चल रहा है। फिलहाल उमर गौतम और उनके एक अन्य साथी एटीएस की एक हफ्ते की रिमांड में हैं और प्रदेश सरकार द्वारा दोनों पर गैंगस्टर एक्ट और एनएसए लगाने की तैयारी कर रही हैं।

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