हैदराबाद की ऐतिहासिक बावलियों को यूनेस्को द्वारा नोटिस किए जाने के बाद से अचानक से यहां न् केवल पर्यटकों की संख्या बढ़ गई है बल्कि स्थानीय लोगों की रुचि भी बढ़ गई है। Twocircles.net के लिए जमीर हसन की रिपोर्ट
सदियों पहले बनी “बावलियों” (Stepwells) को एक बार फिर से ठीक किया जा रहा है। इन बावलियों को सैकड़ो साल पहले हमारे पूर्वजों ने सूखे से पार पाने के लिए निर्माण किया था। यह बावली पुराने ज़माने की शानदार कलाकृतियों के नमूनों में से एक हैं। इन बावलियों को बनाने का आज से चार सौ साल पहले जो मक़सद था, उन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए कुतुब शाही मकबरे में स्थित बावलियों को राज्य सरकार और आगा़ खान ट्रस्ट फॉर कल्चर वर्तमान में सुखाड़ और अन्य कामों के इस्तेमाल के लिए टूट रही बावलियों को नया रूप दे रहे हैं। इस प्रयास के लिए यूनेस्को द्वारा कुतुब शाही मकबरे के अंदर मौजूद बावलियों (Stepwells) को यूनेस्को एशिया-पैसिफिक अवार्ड्स फॉर कल्चरल अवार्ड्स में ‘अवॉर्ड ऑफ डिस्टिंक्शन’ से सम्मानित किया गया है। इस पुरस्कार की घोषणा 26 नवंबर को बैंकॉक में की गईं है।
कुतुब शाही मकबरे में स्थित बावलियों को यूनेस्को ‘अवॉर्ड ऑफ डिस्टिंक्शन’ मिलने के बाद तेलंगाना डिप्टी डायरेक्टर “हैरिटेज” बी नारायण ने Twocircles.net से बात करते हुए कहा, “यह भारत और तेलंगाना के लिए गर्व का क्षण है कि कुतुब शाही मकबरे में स्थित बावलियों को यूनेस्को अवार्ड से सम्मानित किया गया है। यह तेलंगाना सरकार और आगा़ खान ट्रस्ट फॉर कल्चर की तरफ़ से लगातार कोशिशों का नतीजा है। इस तरह का अवार्ड मिलने से पर्यटकों की रुचि बढ़ेगी। ज़्यादा से ज़्यादा लोग इन जगहों को जानेंगे।
बता दें हैदराबाद में गोलकोंडा किले के पास स्थित कुतुब शाही मकबरा, आमतौर पर (Seven Tombs) के नाम से जाना जाता है। कुतुब शाही मकबरा कुतुब शाह राजवंश की निशानी है। पहला मकबरा 1500 ईसवी में पहले सुल्तान ने अपनी मृत्यु से पहले बनवाया था। इस क्षेत्र में अब 20 से अधिक मकबरे हैं, जिनमें सात सुल्तानों के साथ-साथ उनकी पत्नियों और बच्चों के लिए भी कुछ मकबरे बनवाएं गए थे, लेकिन इनमें से सात मकबरे ऐसे हैं जो कुतुब राजवंश के शासकों के लिए विशेष तौर पर बनवाएं गए थे। जिनमें से कुतुब शाही राजवंश के पहले शासक कुली कुतुब मुल्क, जमशेद कुली कुतुब शाह, इब्राहिम कुली कुतुब शाह, मोहम्मद कुली कुतुब शाह, सुल्तान मोहम्मद कुतुब शाह, अब्दुल्ला कुतुब शाह और मोहम्मद कुली कुतुब शाह की एकलौती बेटी हयात बख़्शी बेग़म का मक़बरा मौजूद है। इन मकबरों के साथ -साथ बावलियों का भी निर्माण किया गया था।
कुतुब शाही मकबरे के अंदर छह बावली मौजूद हैं। यह बावली लगभग 400 साल पुरानी हैं। बावलियों का इस्तेमाल अलग -अलग मक़सद के लिए हिंदू और मुस्लिम राजा अपने- अपने शासनकाल में बनवाते रहे हैं। भारत के ज़्यादा तर पुरानी मंदिरों में भी बावली मौजूद है। इसके अलावा दिल्ली में स्थित निजामुद्दीन औलिया की मजा़र में भी बावली मौजूद है। हालांकि, इस मज़ार के अंदर स्थित बावली के पानी को लोग पीते थे क्योंकि एक जन भावना थी कि यहां का पानी पीने से शिफा (बीमारियों से निजात) हासिल होती है। इसके अलावा, उस वक्त बावलियों का इस्तेमाल अलग -अलग मक़सद के लिए किया जाता था। जैसे कि बावली का इस्तेमाल सिंचाई और बागवानी के लिए किया जाता था। वर्षा का पानी इकट्ठा करने के लिए किया जाता था। हालांकि, इतिहासकारों का मानना है कि इन बावलियों से महिलाओं का जुड़ाव सबसे ज्यादा था। क्योंकि महिलाएं यहां पर पूजा किया करती थी और घर के कामों के लिए पानी भरा करती थी।
हाल ही में, तेलंगाना विशेष मुख्य सचिव अरविंद कुमार मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के एक सेमिनार में कहा कि शहर में बावलियों के पुर्णद्धार ( फिर से ठीक करने ) के लिए राज्य सरकार काम कर रही है।“हैदराबाद में 140 से अधिक बावलियां थीं। उनमें से अधिकांश गायब हो गए हैं। हम फिर से खोज रहे हैं। हमने 12 बावलियों को ढूंढा है और नए सिरे से ठीक किया है। कॉर्पोरेट इन बावलियों की मरम्मत करने के लिए उत्सुक हैं। एक बार मरम्मत होने के बाद, वे शहर के इतिहास और विरासत का हिस्सा बन जाएंगे और हम सुनिश्चित करेंगे कि उन क्षेत्रों में कुछ सार्थक गतिविधियां हों।” इस दौरान यहां पहुंची एक छात्रा सुरेखा ने बताया कि वो 20 साल के एक लंबे अरसे के बाद फिर से यहां आई है यह हम सभी दोस्तों के लिए ख़ुशी की बात है कि इस ख़ास मौक़े पर कुतुब शाही मकबरे के बावलियों को यूनेस्को द्वारा सम्मानित किया गया है। इससे हम सभी की यादें और गहरी हो जाएगी। कुतुब शाही मकबरे को साल 2014 में यूनेस्को ने अपनी विशेष हैरिटेज साइट में शामिल किया था। इस साल कुतुब शाही मकबरे के अंदर स्थित बावलियों को यूनेस्को ने ‘अवार्ड ऑफ डिस्टिंक्शन’ से सम्मानित किया है।
पर्यटक मोहम्मद आरिज़ twocircles.net से बात करते हुए कहते है कि “हमारा जो इतिहास हैं उसे बरक़रार रखना हम सभी की ज़िम्मेदारी है। इस तरह का अवार्ड मिलने से हम जैसे पर्यटकों के अंदर नई उर्जा मिलती है।” इससे पहले मुझे इन बावलियों के बारे में कुछ भी पता नहीं था। लेकिन अब जानना चाहता हूं कि यह बावली क्यों बनाया गया था। इसका इस्तेमाल किस काम के लिए किया जाता था।