आस एम कैफ़ ।Twocircles.net
उत्तर प्रदेश में हुए तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में खतौली विधानसभा सीट की सबसे अधिक चर्चा है। खतौली में गठबंधन के रालोद प्रत्याशी के तौर पर मदन भैया ने भाजपा प्रत्याशी राजकुमारी सैनी को 22 हजार वोटों के भारी अंतर से हराया है। इस चुनाव ने पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल मचा दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहली बार जाट गुर्जर मुस्लिम और दलित एक प्लेटफॉर्म पर दिखाई दिए है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। इस खतौली चुनाव में भाजपा की चुनावी रणनीति हर एक मोर्चे पर नाकामयाब हो गई है। क्षेत्र की जनता ने हर प्रकार के धुर्वीकरण की रणनीति को दरकिनार कर दिया और साइलेंट मतदान से भाजपा को जोरदार पटखनी दे दी। यहां उत्तर प्रदेश में सत्तासीन भाजपा के लिए एक सीट की हार से अधिक चिंताजनक बात वो पैटर्न है जिसके चलते भाजपा की प्रत्याशी राजकुमारी सैनी को जबरदस्त हार मिली है। यह जीत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव में एक नई संभावनाओं को जन्म दे रही है।
भाजपा को मिला सबक, दंगे के ज़ख्म कुरेद अब नही मिलेगी वोट
खतौली उपचुनाव से अब भाजपा को यह सबक मिल गया है कि दंगे की जमीन पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब फसल काटने के दिन लद गए हैं। यहां जनता भावनाओं के बवंडर में अब बहने के लिए तैयार नही है। खतौली में 2022 के विधानसभा चुनाव में विधायक बने विक्रम सैनी को दंगे भड़काने के एक आरोप में 2 साल की सज़ा हुई थी। इसके बाद उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई थी। उपचुनाव की घोषणा के बाद विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को भाजपा ने प्रत्याशी घोषित कर दिया। राजकुमारी सैनी को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद भाजपा ने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि विक्रम सैनी हिंदुत्व के नायक है। कवाल कांड में उन्होंने हिंदुओ की लड़ाई लड़ी। आज उनकी सदस्यता भी इसी कारण से गई है। यह उनका राजनीतिक बलिदान है। भाजपा के मुजफ्फरनगर सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने विक्रम सैनी को लेकर कहा कि वो हिंदुओं की बहू बेटियों की सम्मान की लड़ाई लड़ रहे थे। भाजपा ने आक्रामक चुनाव प्रचार में जनता के मुद्दों पर कोई बात नही की और चुनाव को धुर्वीकरण और मुजफ्फरनगर दंगे की पुरानी यादों पर केंद्रित रखा। एक अनुमान के मुताबिक 32 फीसद वोटर ने इस पर चुप्पी साधी रखी और उसने सिर्फ ईवीएम से जवाब दिया।
पश्चिमी यूपी में एक हुए जाट गुर्जर दलित और मुसलमान
भाजपा के लिए सबसे बडी चिंता यह तो है कि खतौली विधानसभा में वो मुजफ्फरनगर दंगे और हिंदुत्व के नाम पर धुर्वीकरण नही पाई मगर इससे भी बड़ी चिंता यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग 19 लोकसभा सीटों को सीधे प्रभावित करने वाली सबसे बड़ी संख्या वाले समाज जाट ,गुर्जर दलित और मुसलमान एक प्लेटफार्म पर आ गए। खतौली उपचुनाव में जाटों ने 60 फीसद, गुर्जरों ने 90 फीसद ,दलितों ने 80 फीसद और मुसलमानों ने 93 फीसद गठबंधन के प्रत्याशी मदन भैया को वोट किया। ऐसा तब हुआ जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद, ए के शर्मा समेत भाजपा सरकार के 100 से अधिक बड़े नेताओं ने यहां चुनाव प्रचार किया, मगर रालोद प्रत्याशी के पक्ष में कमेरा वर्गों का जो गठजोड़ बना वो असरदार रहा। खतौली विधानसभा के कस्बे खतौली और जानसठ ने एकतरफ़ा गठबंधन को वोट दी तो ग्रामीण इलाकों में भाजपा का असर धुंधला हो गया।
जयंत चौधरी ने घर-घर बांटी थी पर्ची,इज्जत पर आ गई थी बात
खतौली उपचुनाव ने रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी की छवि को अधिक ज़मीनी बनाया है। यहां जयंत चौधरी ने गांवों में जाकर नुक्कड़ सभाएं की और पर्चे बांटे। खासकर जाटों में यह बड़ी असरदार बात रही। जाटों की चौपाल पर चर्चा हो रही थी कि ”अब तो म्हारा चौधरी (जयंत) घर-घर पर्चे बांट रहा है अब भी उसे न् जितावे”। खतौली उपचुनाव जयंत चौधरी की प्रतिष्ठा का चुनाव बन गया था। यह जयंत ही थे जिन्होंने विक्रम सैनी को सज़ा होने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता को लेकर मुद्दा बनाया था। जिसके बाद खतौली विधानसभा में उपचुनाव की घोषणा हुई। एक और गंभीर बात यह थी कि बदजुबानी के लिए आलोचना झेलने वाले विक्रम सैनी ने जयंत चौधरी को अपने सामने आकर चुनाव लड़ने और जमानत जब्त कराने की बात कही थी। जयंत चौधरी इस चुनाव में जीत सुनिश्चित करना चाहते थे इसलिए मदन भैया को लोनी से यहां लाकर चुनाव लड़वाया और चंद्रशेखर आज़ाद से गठजोड़ किया।
चंद्रशेखर आज़ाद गठबंधन में आए तो बदल गए समीकरण,दलितों के युवाओं ने एकतरफा किया समर्थन
खतौली उपचुनाव में भीम आर्मी चीफ और आज़ाद समाज पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद का सबसे महत्वपूर्ण किरदार रहा। 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सपा रालोद गठबंधन में नही लिया गया था,मगर खतौली उपचुनाव में उन्होंने यह बता दिया कि उन्हें 2022 में गठबंधन में शामिल न् करना एक बड़ी गलती थी। खतौली विधानसभा पर दलित निर्णायक भूमिका में था। उसकी संख्या भी 55 हजार थी। मायावती के उपचुनाव न् लड़ने के कारण दलितों को अपने तरफ मोड़ने की हर एक कवायद जारी थी। खतौली उपचुनाव में चंद्रशेखर आज़ाद को तमाम मंचो पर अत्यधिक सम्मान दिया गया। उनकी पार्टी के झंडे पूरी विधानसभा में लगे हुए थे। ऐसा लग रहा था कि चुनाव में प्रत्याशी ही आज़ाद समाज पार्टी का लड़ रहा है। चंद्रशेखर दलितों को पूरी तरह गठबंधन प्रत्याशी की तरफ मोड़ने में कामयाब हो गए। दलितों के युवा और महिलाएं उनके पक्ष में पूरी तरह दिखाई दी।
त्यागी और ब्राह्मण भी थे नाराज, भाजपा को हराने के लिए की चोट
खतौली विधानसभा पर त्यागी ब्राह्मण समाज की लगभग 12 हजार वोट है। नोयडा प्रकरण में चर्चित हुए श्रीकांत त्यागी इन जातियों के बहुल गांवों में लगातार सभा कर रहे थे और भाजपा के विरोध में मतदान करने की अपील कर रहे थे। त्यागी बिरादरी के सबसे बड़े गांव नावला में इसका सबसे अधिक असर दिखाई दिया और भाजपा का वोटर समझे जाने वाला त्यागी ब्राह्मण समाज ने भी अपनी नाराजगी को जाहिर कर दिया। त्यागी ब्राह्मण समाज के युवाओं में भाजपा को लेकर खासी नाराजग़ी दिखाई दी। इनका कहना था कि वो सिर्फ साम्प्रदायिक धुर्वीकरण के आधार पर मतदान नही करेंगे।
परिणाम के बाद अब यह कह रही खतौली की जनता
खतौली के कवि साहित्यकार अजय जन्मेजय कहते हैं कि भाजपा नेताओं के हर एक मुद्दे में सांप्रदायिक एंगल तलाशने से जनता ऊब गई है। वो मुद्दों पर बात नही करते हैं। महंगाई, बेरोजगारी ,गन्ना मूल्य निर्धारित करना सब मुद्दे है मगर इनकी चर्चा होने पर भाजपा कार्यकर्ता भी विषय बदल देते हैं। यह भी बदलाव हो रहा है। जानसठ के दानिश अली कहते हैं कि यह सब जानते थे कि इस एक सरकार नही बदलेगी मगर विक्रम सैनी का खराब व्यवहार के चलते सभी उन्हें हराना चाहते थे। मंसूरपुर के सुधीर बलियान कहते हैं जयंत चौधरी के सम्मान का सवाल था, वो जाटों के मसीहा का खून है। सिखेड़ा के रवि जाटव का कहना है कि वो सरकार के काम करने के तरीके से दुखी है। बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। चंद्रशेखर आज़ाद ने हमे आवाज़ दी है। नावला के अमरीश त्यागी कहते हैं कि भाजपा की राजनीति का लॉलीपॉप अब समझ मे आ गया है अब जो हमारा उसके हम।