ग्राऊंड रिपोर्ट : किसानों के बैंक खातों से गायब होती जा रही किसान सम्मान निधि

खेत में यूरिया के छिड़काव के वक़्त कुछ देर राहत की सांस लेता किसान

सिमरा अंसारी | Twocircles.net


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रात को उठ के अपनी औलाद को पानी न पिलावे काश्तकार लेकिन अध्धि रात को भी उठके फसल को पानी देना पड़ेगा। चाहे कित्ता भी जाड्डा पड़ रा?” – रिहान
(किसान को अपनी औलाद से पहले फ़सल की फिक्र होती है। किसान अपनी औलाद को पानी न पिलाए लेकिन रात को उठकर फ़सल को पानी देना पड़ता है। भले ही कितनी ही ठंड हो।)

खेतों के बीच कच्चे रास्तों पर चलते हुए रिहान किसान सम्मान निधि के बारे में बता रहे हैं- “हमें तो इस योजना के बारे में कुछ नहीं पता था। यो तो पटवारी ने बुलाया था। आधार कार्ड और बैंक की कॉपी की फोटोस्टेट ले ली थी। फिर इलेक्शन से पहले जनमंच में प्रोग्राम हुआ, पटवारी ने उसमें भी आने को कहा था। उसमें जिन किसानों पे कर्ज़ा था वो माफ करा था। हमें वैसे ही बुला लिया था। फिर दो हज़ार रुपए आने शुरू हो गए थे। हमारे परिवार में तो सब खेती करें। सब ताया, चाच्चा, भाई के कागज़ लिए थे पटवारी ने। पैसे लेकिन हमारे दो तीन के ही आए। अबकी बार तो मेरी भी किश्त नहीं आई।”

रिहान को काश्तकारी विरासत में मिली है। उन्होंने 12 साल की उम्र से ही खेत की ज़िम्मेदारियों को संभाला हुआ है। खेती के अलावा रिहान के पास एक झोटा बुग्गी है। उससे दिनभर में कभी तीन सौ तो कभी चार सौ की दिहाड़ी हो जाती है। उसी से घर का खर्च चलता है। आगे अपनी परेशानियों के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं – “यो तो जी बस हम अपने पुरखों से मिली ज़मीन का चौकीदारा कर रहे। अगर इसको यूं ही छोड़ देंगे तो कुछ भी नहीं। कुछ सालों में सरकारी अधिकारी बंजर लिख देंगे। सरकार कब्ज़ा कर लेगी। इससे गुज़ारा नहीं होत्ता लेकिन इसे छोड़ भी नी सकते। अब पिछली धान की फ़सल में कुछ भी हाथ नहीं लगा। कुछ कीड़ा खा गया, कुछ बारिशों ने खराब कर दी। अब बुआई करनी है लेकिन रबजाहे में पानी नहीं है। सुनने में आ रा के दो महीने बाद पानी देंगे। फसल अब बो देंगे तभी तो मार्च-अप्रैल में कटेगी। यूँ तो फसल को पूरा टेम नहीं मिलेगा। न वो अच्छी होगी।”

देखो जी इन पैसों से पूरा तो किसी का नी पटता लेकिन यो है कि कभी ज़मीन में, कभी अपनी दवा में, भुड़ाप्पे में काम आ ही जावें।” – चौहारी सिंह

(योजना में मिले पैसों से किसी का भला तो नहीं होता। लेकिन इस उम्र में किसी न किसी काम आ ही जाते हैं।)

गारे की चिनी दीवारों से बने कमरे के बाहर, बरामदे में चारपाई पर चौहारी सिंह अपने मुस्लिम पड़ोसियों के साथ बैठे हुए हैं। अपने मुस्लिम पड़ोसियों को वे अपने सबसे करीब और हमदर्द लोगों में शुमार करते हैं। मूलरूप से शामली के रहने वाले चौहारी सिंह जातीय भेदभाव से परेशान होकर लगभग 35 साल पहले परिवार समेत सहारनपुर में आकर बस गए थे। शामली में जातीय भेदभाव पर उनका कहना है – “उधर जाट बिरादरी का दबदबा है। छोटी बिरादरी के आदमी को वो बिरान करें। इसलिए वहां से ज़मीन बेच दी। एक रिश्तेदार से यहां का पता मिला। यहां आके इन भाइयों ने साथ दिया। जमीन दुआदी, घर बनाने के लिए प्लॉट हमें प्लाट दुआदिया बस फिर हम यहीं रह गए।”

चौहारी सिंह अब खेतों पर कम ही जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ शरीर साथ नहीं देता। इसलिए खेतों की ज़िम्मेदारी तीनों बेटों को सौंप दी है। फसल बेचकर भी परिवार का गुज़ारा सही से नहीं हो पाता। चौहारी सिंह और उनकी पत्नी दोनों बीमार हैं। खेती की ज़मीन भी दोनों के नाम है। ज़मीन से जुड़े सभी कामों के लिए दोनों को जाना पड़ता है। चौहारी सिंह के बेटे प्रमोद कहना है कि पिछले लगभग एक साल से उनके पिता को किसान सम्मान निधि की किश्त नहीं मिली है। इसके बारे में शिकायत करने पर खाते को चेक करने की बात कही गई। प्रमोद अपने पिता को लेकर बैंक गए। केवाईसी कराने के लिए कहा गया। लेकिन एक साल हो गया है कोई पैसा नहीं आया। प्रमोद का कहना है कि इस बीच जांच के लिए उनके पास पटवारी और किसी अधिकारी की कॉल भी आई। परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी के होने का सवाल किया गया। प्रमोद कुमार खेती के अलावा घर पर ही सिलाई का काम करते हैं। उनकी एक टांग पैदाइशी कमज़ोर है। अपने काम के बारे में बात करते हुए कहते हैं – “मुझे तो अगर खाद का एक कट्टा भी खेत में डालना है तो मज़दूर को बुलाना पड़ता है। खेती के बाद जो वक्त मिलता है उसमें सिलाई करता हूं। हफ़्ते के हिसाब से पैसे मिल जाते हैं। बड़े भाई के पास ट्रैक्टर है। वो इसी तरह सामान ढोने का काम करते हैं और छोटा भाई भी मज़दूरी करता है।”

इस पर प्रमोद के पिता कहते हैं – “बस जी लोगों से सुन के जी राजी होवे। लोग कहवें इनके पास जमीन है। ये जमींदार हैं। हमें पता मजदूरी इधर उधर करें। उसमें लगावें, वो मिले न मिले राम भरोसे।”

गुज़ारे में भी दिक्कत हो। ना जाकतों की पढ़ाई हो पा री। खेतों के वास्ते पानी भी उधार करवा लें। फिर दूध के पैसों में कटवालें।” – शमीम

(परिवार का गुज़ारा मुश्किल से ही होता है। बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं। खेत की सिंचाई के लिए भी पानी उधार लेना पड़ता है।)

सहारनपुर देहात के गाँव घाना खंडी के रहने वाले शमीम, पिता से मिली ज़मीन में ही खेती करते हैं। किसान सम्मान निधि के बारे में बताते हैं– “लगभग डेढ़ साल हो गया। कोई किश्त नहीं आई। एक किश्त लॉकडाउन लगने के बाद कटी थी। अब फिर नी आ री। जनसेवा केंद्र वाले ने कहा कि ये पैसे लोन में कट रहे हैं।”
शमीम ने 6 साल पहले अपनी ज़मीन पर 80 हज़ार रुपए का कर्ज़ लिया था। सरकार द्वारा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले किसानों के कर्ज़ माफ किए गए। इसी कड़ी में ज़िला सहारनपुर में भी एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। और किसानों में कर्ज़ माफी के चेक वितरित किए गए थे। शमीम का कहना है कि उनका कर्ज़ माफ नहीं किया गया। और न ही किसान सम्मान निधि की किश्त मिल रही है। खेती से परिवार के सब खर्चे पूरे नहीं हो पाते हैं। बच्चे भी पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। कम उम्र में बच्चों को काम पर जाना पड़ता है। शमीम खुद खेती के अलावा पेंट का काम करते हैं, तब कहीं घर का खर्च चलता है। इस बार शमीम और उनके भाइयों ने गेहूं की बुआई की है। अब कुछ वक्त बाद खेत को पानी चाहिए। लेकिन नहर का पानी उनके खेतों तक नहीं पहुंच पाता है। सिंचाई के लिए भी बड़े जमींदारों से किराए पर पानी लेना पड़ता है।

किसानी से तो पूरा नी पड़ता। जमीन पे रहवें तो कुछ नहीं होत्ता जी। यो तो हम और काम करें, मजदूरी करें तो गुजारा हो रा।” – नथलीराम

(हम अगर सिर्फ खेती के भरोसे रहें तो काम नहीं चलता। घर चलाने के लिए तो इसके अलावा मज़दूरी करनी पड़ती है।)

65 साल के नथली राम गांव धुन्ना के रहने वाले हैं। नथली राम का शुमार भी यूपी के उन किसानों में होता है, जिनको अब ‘‘किसान सम्मान निधि’ की किश्त नहीं मिलती। उनका कहना है कि उन्हें केवल 3-4 किश्त ही मिली हैं। अब उनके पास सरकार की तरफ से कोई पैसा नहीं आता। अपनी समस्याओं पर बात करते हुए वे कहते हैं – “खेती का तो बहुत मामला खराब है जी। डीजल का नी पूरा पड़ता। डीजल इत्ता महंगा हो रा। खेतों में डालने वाली दवाइयां इत्ती मंहगी हो रही। पहले जमीन में कीड़ा नहीं था। इब कीड़ा इतना के फसल को निकड़ते साथ खा रा। गाँवों में कोई डाक्टर भी नहीं बताने वाला। मैंने पिछली फसल जवें और धान की बोई थी। 3-4 बार दवाई डाल ली।”

नथली राम के पास 20 बीघा ज़मीन है। फसल से हुई कमाई से परिवार का गुज़ारा नहीं हो पाता है। इसलिए नथली राम और उनका बड़ा बेटा चिनाई का काम करते हैं। छोटे बेटे ने भी अब पीवीसी पैनल का काम करना शुरू किया है।

पढ़े-लिखे हम नी। कहीं नौकरी लग रही माहरी। यूँ सोचें इबके नी इबके बारी फसल अच्छी हो जावेगी। और क्या करें?” – ताहिर हसन

(हम पढ़े-लिखे तो नहीं हैं कि कोई नौकरी लग जाए इसलिए इसी में मेहनत करते रहते हैं, इसी उम्मीद में कि इस बार नहीं तो अगली बार फायदा होगा।)

गाँव घाना खंडी के ही रहने वाले एक और किसान ताहिर हसन को मोबाइल पर मैसेज मिला। बेटे ने पढ़ा तो पता चला कि बैंक खाते में पीएम किसान योजना के 2000 रुपए आए हैं। कुछ दिन बाद ताहिर ने बैंक जाकर पैसे निकाल लिए। इसी तरह एक किश्त और मिली फिर किसी योजना के नाम से कोई पैसा नहीं आया। शिकायत न करने पर बात करते हुए ताहिर कहते हैं –“हमें तो यूं था आवेंगें ही। शिकायत क्या करें? लेकिन फिर हमें कोई पैसा नी मिला। इब गेहूं बो रे। नहर में पानी नी है। लोग बता रहे अगले महीने की बीस तारिख के बाद आवेगा। देखो जी, आवे या नहीं? बस ऊपर वाले के भरोसे।”

ताहिर हसन खेती के साथ ही जानवर पालने का काम भी करते हैं। उनके पास छह भैंस और दो गाय हैं, जिनका दूध बेचते हैं। पूरा परिवार खेती और दूध बेचकर हुई कमाई पर निर्भर है। बेटे ट्रैक्टर चलाने का काम भी करते हैं। उससे भी घर का खर्च चलाने में मदद मिलती है।

ये सभी किसान सरकार के वादे के भरोसे किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) की रकम का इंतेज़ार कर रहे हैं। ये दशा केवल सहारनपुर या पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों की नहीं बल्कि देशभर के करोड़ों किसानों की यही कहानी है।
प्रतिष्ठित अख़बार ‘द हिंदू’ की खबर के मुताबिक़, पिछले तीन सालों में किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) के लाभार्थियों की संख्या में 67% की भारी गिरावट हुई है।

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय से मिले आंकड़ों के मुताबिक, मई-जून 2022 में योजना की 11वी किश्त प्राप्त करने वाले किसानों की संख्या 3 करोड़ 87 लाख है, जबकि फरवरी 2019 में 11 करोड़ 84 लाख किसानों को पहली किश्त दी गई थी। उत्तर प्रदेश में ये संख्या 2 करोड़ 60 लाख से घटकर 1 करोड़ 26 लाख रह गई है।
‘किसान सम्मान निधि’ की शुरुआत मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के आखिरी साल में की थी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले किसानों के कर्ज़ माफ किए गए और किसान सम्मान निधि देने की घोषणा की गई। इस योजना के तहत 2 हेक्टेयर से कम ज़मीन वाले किसानों को सालाना 6000 रुपए मिलने थे, जिसे साल में 2000 की तीन किश्तों में देना था, जो कि 2019 के लोकसभा चुनाव हो जाने के बाद से ही किसानों के बैंक खातों से गायब होती जा रही है।

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