जिब्रानउद्दीन। twocircles.net
स्कूली छात्रों के पाठ्यक्रम में होने वाले परिवर्तन को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के पाठ्यक्रम में नौवीं से बारहवीं कक्षा तक के विषयों में कई बदलाव किए हैं। जिसके बाद इस नए परिवर्तन से कई स्कूल टीचरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गंभीर चिंता जताई है, उनके अनुसार ज्यादतार परिवर्तन खास राजनीतिक पार्टी के खास एजेंडे को बढ़ावा देती दिख रही है।
सीबीएसई द्वारा निर्धारित प्रारूप के अनुसार, ग्यारहवीं कक्षा के इतिहास की पुस्तक से ‘इस्लाम का उदय’ पाठ हटा दिया गया है और बारहवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक से ‘मुगल साम्राज्य’ पाठ भी हटा दिया गया है। यह पाठ्यक्रम पूरे देश में लागू किया जाएगा।
साथ ही, फैज अहमद फैज की कविताओं को भी पुस्तक से हटा दिया गया है। आगे, अध्याय “सेंट्रल इस्लामिक लैंड” को भी “सब्जेक्ट ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री” के शीर्षक वाली ग्यारहवीं कक्षा की पुस्तक से हटा दिया गया है, नए शैक्षणिक सत्र से ये अध्याय नहीं पढ़ाए जाएंगे।
इसके अलावा, पाषाण युग के दौरान मनुष्य के विकास पर एक पाठ, और बारहवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक से औद्योगिक क्रांति पर पाठ, जिसमें इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के कारणों, इसके प्रभाव और साम्राज्यवाद को कैसे प्रोत्साहित किया गया था, को भी हटा दिया गया है। बारहवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक से ‘नमक’ शीर्षक वाला एक पाठ को भी हटा दिया गया है, जिसमें भारत के विभाजन के बाद दोनों ओर की सीमाओं पर विस्थापित नागरिकों की पुन: स्थापना पर एक कहानी थी।
अलीगढ़ पब्लिक स्कूल, दरभंगा के डायरेक्टर फहीम फैसल ने TwoCircles.Net से बात करते हुए इस संबंध में अपनी राय रखी, कहते हैं, “पाठ्यक्रम में इस तरह का बदलाव का सीधा बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।” उन्होंने बोर्ड के इस कदम से खास राजनीतिक पार्टी के किसी एजेंडे को बढ़ावा देने की बात बताई, जिसमें “एक समुदाय विशेष के लिए नफरतों का बीज बोया जा रहा, आज जिन बच्चों को इतिहास के कई पहलुओं से दूर रखा जाएगा उनकी सोच में आगे चलकर कई तरह के बदलाव आ सकते हैं।”
फैसल ने अपनी बात जारी रखीं, “झूठ को बार बार दोहराते हुए उसे सच में बदलने की साजिश हो रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले वर्षों में उस झूट की जांच पड़ताल करने के लिए हमारे पास कोई तथ्य बचेगा ही नही।”
TwoCircles से बात करते हुए एक्टिविस्ट राहत हुसैन ने अपनी राय रखी, “मुगल बादशाहों ने भारत को दिलों जान से अपना मानते हुए, यहां के लिए बहुत कुछ किया था। जिसके सबूत आज भी कुतुब मीनार, ताज महल, लाल क़िला इत्यादि के रूप में मौजूद है।” राहत हुसैन ने खास विचारधारा से संबंध रखने वाले लोगों पर मुगल बादशाहों को बदनाम करने की साजिश करने की बात बताई।
“जिस तरह से मुगल शब्द को यहां, कुछ हिंदू कट्टरपंथी, मुसलमान शब्द का पर्यावाची बताते आए हैं, उससे मुगलों को बदनाम करने के पीछे उनका सीधा निशाना मुस्लिमों को बदनाम करने का रहता है। हुसैन ने आगे बताया, “अगर किताबों से मुगलों के बारे में पाठों को हटा दिया जाएगा, तो इससे कुछ नफरती लोगों के इरादों में बहुत मजबूती आएगी जो मुगलों को बदनाम करने के लिए अक्सर कई तरह के प्रोपेगेंडा किया करते हैं।”
एक समाचार रिपोर्ट की जांच के अनुसार स्कूलों के लिए राष्ट्रीय करिकुलम की रूपरेखा के तय करने वाले व्यक्तियों का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध बताया गया है। इसमें कम से कम 24 सदस्य आरएसएस से जुड़े हैं और कुछ आरएसएस के विभिन्न निकायों में पदाधिकारियों के रूप में काम कर चुके हैं।
राष्ट्र शिक्षा नीति 2020 में शुरू की गई थी और इसका उद्देश्य चार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ) तैयार करना है। 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद पहली बार और आजादी के बाद कुल मिलाकर पांचवीं बार स्कूलों के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) का पुनर्गठन किया जा रहा है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने पाठ्यक्रम संशोधन के लिए 12 सदस्यीय समिति बनाई थी। जिसके अध्यक्ष इसरो के पूर्व अध्यक्ष के० कस्तूरीरंगन हैं। प्रत्येक एनसीएफ फोकस समूह में सात से दस लोग होते हैं और इसे शिक्षा से संबंधित विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है। एनसीईआरटी का ढांचा फोकस समूह के काम पर आधारित होगा जो स्पष्ट रूप से हिंदू राष्ट्रवाद का पक्ष लेने जा रहा है क्योंकि इसके कई सदस्यों ने आरएसएस के साथ संबंध की पुष्टि हुई है। एनसीईआरटी ने पहले ही कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम से गुजरात नरसंहार, नक्सली आंदोलन और आपातकाल के बारे में विवाद के ऊपर सामग्री को हटा रखा है।