यूपी में पत्रकार जुबैर के विरुद्ध आईजी स्तर के अधिकारी करेंगे जांच, मुश्किल है अभी रिहाई

File photo of Mohammad Zubair. | Photo: Twitter

आकिल हुसैन्। Two circles.net

उत्तर प्रदेश सरकार ने मंगलवार को ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ दर्ज मामलों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया हैं। ज़ुबैर के यूपी में छह मामले दर्ज हैं जिसमें से दो मामले हाथरस जिले में, जबकि एक-एक मामला सीतापुर, लखीमपुर खीरी, गाजियाबाद और मुजफ्फरनगर में दर्ज हैं। सरकार के एसआईटी गठन का आदेश ऐसे वक्त में आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने सीतापुर वाले केस में ज़ुबैर की अंतरिम जमानत को अगले आदेश तक बढ़ा दिया है।


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दिल्ली पुलिस ने 27 जून को गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारी उनके द्वारा 2018 में किए गए एक ट्वीट के जरिए धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में की गई थी। इसके बाद सीतापुर पुलिस ने जुबैर को सीतापुर में दर्ज़ एक मामले में 3 जुलाई को हिरासत में लिया था, हालांकि 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट से उन्हें इसी मामले में पांच दिन की अंतरिम जमानत दे दी है। सीतापुर मामले में अंतरिम जमानत मिलने के एक दिन बाद ही लखीमपुर पुलिस ने 2021 के एक मामले में वारंट जारी किया। सीतापुर जेल में बंद जुबैर की बीते कल सोमवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए लखीमपुर कोर्ट में पेशी हुई। लखीमपुर कोर्ट ने जुबैर को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। अब 14 जुलाई को जुबैर की दिल्ली में दर्ज मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई होनी है।

मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस ने आईपीसी की धारा 295, धारा 153 के तहत 27 जून को गिरफ्तार किया था।जुबैर की गिरफ्तारी 2018 के एक ट्वीट को लेकर हुई थी जिसमें उन्होंने 1983 में बनी फिल्म ‘किसी से न कहना’ का एक स्क्रीनशॉट शेयर किया गया था। ट्वीट में जुबैर ने एक फ़ोटो ट्वीट की थी, जिसमें होटल के साइन बोर्ड में होटल का नाम ‘हनीमून होटल’ से बदलकर ‘हनुमान होटल’ दिखाया गया था, तस्वीर के साथ जुबैर ने ‘2014 से पहले हनीमून होटल…  2014 के बाद हनुमान होटल…’ लिखा था।एक ट्विटर हैंडल ने जुबैर के इस ट्वीट को लेकर दिल्ली पुलिस के ट्विटर हैंडल पर शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि मोहम्मद जुबैर ने एक ऐसी आपत्तिजनक तस्वीर ट्वीट करने के साथ एक धर्म के देवी-देवताओं का जानबूझकर अपमान किया था।‌ हालांकि यह ट्विटर अकाउंट डिलीट हो चुका है।

दिल्ली पुलिस ने उन्हें धार्मिक भावनाओं का अपमान करने और आहत करने और विभिन्न समूहों के बीच विद्वेष फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद जुबैर को बुराड़ी इलाके में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया था। जहां से उन्हें पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया था। जुबैर की गिरफ्तारी के बाद आल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने कहा था कि मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस ने अन्य मामले में पूछताछ के लिए बुलाया था, लेकिन गिरफ्तारी दूसरे मामले में हुई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि जुबैर को गिरफ्तारी से पहले अनिवार्य नोटिस नहीं दिया गया।दिल्ली के इस मामले में जुबैर की जमानत याचिका पर 14 जुलाई को पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई होनी हैं।

मोहम्मद जुबैर ने एक ट्वीट में कथित हिंदू संत बजरंग मुनि , यति नरसिंहानंद सरस्वती, स्वामी आनंद स्वरूप को ‘हेट मोंगर्स यानी नफरत फैलाने वाले’ कहने वाला कहा था, जिसे लेकर यूपी पुलिस ने जुबैर के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था। यह एफआईआर हिंदू शेर सेना के सीतापुर जिलाध्यक्ष अध्यक्ष भगवान शरण ने दर्ज कराईं थी। शिकायतकर्ता भगवान शरण की ओर से कहा गया था कि,जुबैर द्वारा सार्वजनिक रूप से संतों को ‘घृणा फैलाने वाले’ कहने से एक विशेष समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत होने से हिंसा भड़क सकती हैं, क्योंकि उन्होंने जिस व्यक्ति के खिलाफ ट्वीट किया है, वह ‘सम्मानित’ हैं और उसके बड़ी संख्या में अनुयायी हैं।

हिंदू शेर सेना के सीतापुर जिलाध्यक्ष भगवान शरण की तहरीर पर 1 जून को खैराबाद थाने में जुबैर के खिलाफ आईपीसी की धारा 295ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य) और आईटी अधिनियम की धारा 67 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

जुबैर ने सीतापुर में दर्ज एफआईआर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन 14 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए जुबैर की जमानत याचिका को खारिज़ कर दिया था। जुबैर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और साथ ही एफआईआर रद्द करने की भी मांग की थी।
इधर चार जुलाई को सीतापुर पुलिस ने जुबैर को सीतापुर तलब किया था। सीतापुर कोर्ट ने रिमांड पर जुबैर को जेल भेज दिया था। इसी बीच बीते शुक्रवार सुप्रीम कोर्ट ने सीतापुर एफआईआर से संबंधित इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते जुबैर को पांच दिन की अंतरिम जमानत दी थी, सुप्रीम कोर्ट ने पांच दिन की ज़मानत को आज अंतरिम आदेश तक बढ़ा दिया है।

सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी की पीठ ने जुबैर को अंतरिम जमानत देने के अलावा यूपी सरकार को नोटिस भी जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट की ओर से जुबैर को हिदायत दी गई थी कि जुबैर इस मामले को लेकर कुछ भी ट्वीट नहीं करेंगे और किसी सबूत, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण या सामग्रियों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे।‌ जुबैर के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा था कि यह विडंबना है कि जो घृणा फैलाने वाले भाषण देते हैं, वे जमानत पर हैं, जबकि उनके ऐसे भाषणों का खुलासा करने वाला याचिकाकर्ता हिरासत में है। गोंजाल्वेस ने कहा कि उनके मुवक्किल ने ट्वीट करने की बात स्वीकार की है, लेकिन इन ट्वीट से कोई अपराध नहीं हुआ है और उन्होंने घृणा पैदा करने वाले भाषण देने के अपराधों का केवल जिक्र किया था और पुलिस ने बाद में अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की। बेंच ने इस मामले की अगली तारीख 12 जुलाई दी थी। आज 12 जुलाई को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर की अंतरिम जमानत को अगले आदेश तक बढ़ा दिया है।‌

जुबैर ने जिन तीन हिंदुत्ववादी को नफ़रत फैलाने वाला कहा था उन तीनो हिंदुत्ववादी नेताओं यति नरसिंहानंद, महंत बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप के विरुद्ध हेट स्पीच के मामले दर्ज हैं।‌ हिंदू नववर्ष पर 2 अप्रैल को महंत बजरंग मुनि ने पुलिस की मौजूदगी में मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ भीड़ को उकसाया था और मुस्लिम महिलाओं को बालात्कार की भी धमकी दी थी। इस मामले में बजरंग मुनि को गिरफ्तार भी किया गया था, हालांकि बाद में उसको ज़मानत भी मिल गई थी। इसके अलावा यति नरसिंहानंद भी अपने भड़काऊ और मुस्लिम विरोधी भाषण को लेकर चर्चा में रहता हैं। यति नरसिंहानंद ने धर्म संसद में मुसलमानों के नरसंहार करने की धमकी भी दी थी। नरसिंहानंद के विरुद्ध कई मामले दर्ज हैं।

सीतापुर मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के अगले ही दिन शनिवार को लखीमपुर कोर्ट ने मोहम्मद जुबैर के विरुद्ध साल भर पुराने मामले में वारंट जारी कर दिया। जुबैर सीतापुर जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए लखीमपुर खीरी की इस स्थानीय कोर्ट में पेश हुए थे।‌ कोर्ट ने सुनवाई करते हुए जुबैर को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।‌ जुबैर के वकील हरजीत सिंह, सुरेंद्र कुमार की ओर से पुलिस हिरासत का विरोध भी किया गया था। अब इस मामले में जुबैर की जमानत याचिका पर 13 जुलाई को सुनवाई होगी।‌

25 जून 2021 को मोहम्मद जुबैर के खिलाफ सुदर्शन न्यूज़ चैनल के स्थानीय पत्रकार आशीष कटियार ने मोहम्मदी थाने में मुकदमा दर्ज करवाया था। यह मुकदमा स्थानीय अदालत के आदेश पर दर्ज हुआ था। शिकायतकर्ता ने जुबैर पर एक ट्वीट के जरिए चैनल के बारे में लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया था। पुलिस ने जुबैर के विरुद्ध आईपीसी की धारा 153ए के तहत मुकदमा दर्ज किया था। जिस ट्वीट को लेकर जुबैर के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया था, वो ट्वीट 16 मई 2021 का था। जुबैर ने सुदर्शन टीवी के ट्विटर हैंडल से साझा की गई मदीना मस्जिद की छेड़छाड़ की गई तस्वीर पर सवाल उठाया था। गाजा में इजरायली मिसाइल हमलों के दौरान मस्जिद पर बमबारी की फोटोशॉप की गई तस्वीरों को फैक्ट-चेक करते हुए जुबैर ने उत्तर प्रदेश पुलिस, नोएडा पुलिस और यूपी के डीजीपी से भी आग्रह किया कि वह हिंसा भड़काने के इस जान-बूझकर किए गए प्रयास के खिलाफ कार्रवाई करें। इस एफआईआर में 153A के अलावा धारा 153B, 505 (1) (B) और 505 (2) भी जोड़े गए है।

इस मामले में लखनऊ हाईकोर्ट के वकील अकरम आज़ाद Two Circles.net से बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिलने के बाद भी मोहम्मद जुबैर को अभी जेल ही में रहना होगा क्योंकि दिल्ली और लखीमपुर वाले मामले में अभी उन्हें जमानत नहीं मिल पाईं हैं। अकरम कहते हैं कि जुबैर कहीं न कहीं सरकार की साज़िश का शिकार हैं, एक मामले में उन्हें राहत मिलती है तो वैसे ही दूसरे मामले को खोल दिया जाता है कभी उनके चार साल पुराने ट्वीट पर कार्रवाई की जा रही है तो कभी साल भर पुराने ट्वीट पर।

सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतिशाम हाशमी TwoCircles.net से कहते हैं कि मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी असंवैधानिक है। आज जुबैर इसलिए सलाखों के पीछे हैं क्योंकि उसने झूठ का पर्दाफाश किया था। एहतिशाम सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि जिस फिल्म के स्क्रीनशॉट पोस्ट करने के चलते जुबैर को गिरफ्तार किया गया है वो लगभग चार दशक पुरानी फिल्म हैं, अगर उसमें कुछ आपत्तिजनक हैं या अपमानजनक है तो फिल्म को बैन क्यों नहीं किया गया। एहतिशाम ने कहा कि जुबैर की गिरफ्तारी सरकार के आलोचकों को चुप कराने का एक प्रयास है।

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