झारखंड में वक्फ की प्रोपर्टी पर बढ़ रहा अवैध कब्जा, नींद में सरकार

देश भर में वक्फ प्रोपर्टी के अतिक्रमण और राज्यों के वक्फ बोर्ड के द्वारा सुचारू रूप से काम नहीं किये जाने की शिकायत मिलती रहती है। झारखंड की स्थिति भी ऐसी ही है। झारखंड की ज़मीनी हकीकत बयां कर रहे है

Twocircles.net के लिए झारखंड से मो.असग़र खान


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राज्य में वक्फ बोर्ड की हालात को समझने के बाद पता चलता है कि झारखंड में जितनी भी सरकारें रही हैं, सभी ने वक्फ बोर्ड की अनदेखी की है। बॉर्ड नियमावली के मुताबिक राज्य के गठन के बाद झारखंड में सुन्नी वक्फ बोर्ड का गठन होना चाहिए था, लेकिन आठ साल बाद यहां बोर्ड का गठन हुआ। पांच साल के कार्यकाल के बाद 2013 में बोर्ड का पुनर्गठन होना था, लेकिन डेढ़ साल के विलंब के बाद 2014 के अंत में विभाग ने बोर्ड के सदस्यों का मनोनयन कर पुनर्गठन तो कर दिया, लेकिन चेयरमैन के चुनाव को लेकर कोई पहल नहीं की गई। नतीजा पांच साल तक बोर्ड बिना चेयरमैन के चलता रहा। फिलहाल 2019 के बाद से वक्फ बोर्ड निष्क्रिय है। नियमावली के मुताबिक झारखंड अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय, वक्फ बोर्ड में सदस्यों का मनोनयन करता है और मनोनित सदस्यों को चेयरमैन का चुनाव करना होता है। लेकिन तीन साल गुजर जाने के बाद भी चेयरमैन तो दूर सदस्यों का मनोनयन तक भी नहीं हो पाया है। अभी यही कारण है कि यहां बोर्ड का काम पिछड़ गया है और अव्यवस्था हावी हो गई है। अल्पसंख्यक मामलों के जानकार एस अली कहते हैं कि झारखंड में समुचित वक्फ पॉपर्टी की देखभाल, अंशदान, आय-व्यय से प्राप्त अंशदान, अतिक्रमण संपत्ति का निष्पादन, डेवलपमेंट, सब काम ठप है, वो इसके लिए राज्य की मौजूदा सरकार को कटघरे में खड़ा करते हैं, वो कहते हैं, “राज्य की महागठबंधन सरकार (कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राजद) ने चुनाव से पूर्व घोषणा पत्र जारी करके अल्पसंख्यकों के शैक्षानिक, आर्थिक, सामाजिक और संवैधानिक मामलों पर कार्य करने की बात कही थी। लेकिन दो वर्ष में उपरोक्त मामलों पर कोई काम नहीं हो पाया। इसे लेकर अल्पसंख्यक लोगों में काफी आक्रोश है। सरकार बाकि बचे तीन सालों में यह काम करना चाहिए।”

दरअसल यहां यह भी चौंकाता है कि झारखंड राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास सालाना राजस्व से प्राप्त निर्धारित राशि का कोई आंकड़ा ही नहीं है। बोर्ड की माने तो राज्य की 152 वक्फ संपत्तियों में से महज 20-22 ही पॉपर्टी का साल में राजस्व प्राप्त होता है, वो भी नियमित तौर पर नहीं है। आश्चर्यजनक यह है कि बोर्ड के पास कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।

गौरतलब है कि सेंट्रल वक्फ कौंसिल के मुताबिक, राज्य की हर वक्फ संपत्ति को अपनी आय में से सात प्रतिशत वक्फ बोर्ड को राजस्व देना होता है।झारखंड में 2008 वक्फ बोर्ड का गठन हुआ। झारखंड वक्फ बोर्ड प्रशासन के मुताबिक, राज्य की सभी वक्फ संपत्तियों से हर साल 7 प्रतिशत राजस्व नियमित तौर प्राप्त होता तो अनुमानित राशि कम से कम प्रतिवर्ष 25 लाख होती। इसके मुताबिक 14 सालों में लगभग 3.5 करोड़ बोर्ड को राजस्व मिल जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा हो नही पाया।

झारखंड राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड राज्य की वक्फ संपत्तियों से राजस्व प्राप्त क्यों नहीं कर पा रहा, इसे समझने के लिए बोर्ड के बाहर और भीतर के समस्याओं की लंबी फेहरिस्त को जानना पड़ेगा, जो बोर्ड के निष्क्रिय होने की वजहों को इंगित करता है।

झारखंड राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी (सीईओ) मोहम्मद जियाउल अंसारी इस बारे में बात करते हुए बोर्ड की कई समस्याओं को गिनाते हैं। वो कहते हैं, “देखिए बोर्ड में चेयरमैन का अलग रोल होता है और सीईओ का अलग। कई कामों में बोर्ड का रहना अनिवार्य है। बोर्ड के अप्रूवल के बिना कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता है, इसलिए बोर्ड का काम बाधित हो रहा है, बोर्ड के नहीं रह पाने के कारण, वक्फ की संपत्तियों का सही से ना ही देखभाल हो पा रहा और विकास का काम ”वो आगे कहते हैं “वक्फ की 152 पॉपर्टी में से अधिकतर वक्फ पॉपर्टी का राज्स्व नहीं आ रहा है। ये बहुत बड़ी समस्या है। बोर्ड होता तो निर्णय लेता और निर्णय से ही सब चीजों को क्रियान्वयन होता है. फिलहाल बोर्ड को मुश्किल से 20-25 पॉपर्टी से राजस्व आ पाता है और यह समस्या से शुरू से ही चली आ रही है।”

Pic credit – असग़र खान

यहां बता देते हैं कि 1954 के एक्ट के तहत सेंट्रल वक्फ कौंसिल का गठन हुआ, जो राज्य के सभी वक्फ बोर्ड की निगरानी करता है । 1995 में वक्फ एक्ट में संशोधन कर एक नियम जोड़ा गया और वर्तमान में इसी नियमावली के तहत राज्यों का वक्फ बोर्ड संचालित होता है।धर्म के नाम पर दान की गई गई संपत्ति वक्फ बोर्ड में पंजीकृत होती है और बोर्ड इसका संरक्षण और संवर्धन करता है। बोर्ड के अधीन हर प्रोपर्टी की देख-भाल के लिए कमेटी का होती है और उसके मुतवल्ली (वक्फ की संपत्ति की देखभाल करने वाला) नियुक्त होते हैं और यह पुरी प्रक्रिया का पालन एक्ट के तहत स्टेट के द्वारा बनाई गई बोर्ड नियमावली के मद्देनजर होता है। इसी नियमावली के तहत हर पांच साल पर बोर्ड का पुनर्गठन होता है।

बोर्ड प्रशासन की माने तो 2000 में बिहार से कटकर झारखंड राज्य का गठन हुआ। वक्फ की संपत्तियों का बंटवारा हुआ। जब 2008 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ तो बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड से कागजात आएं। बोर्ड प्रशासन का कहना है कि अभी भी सारे कागजात बिहार से नहीं आ पाए हैं।बंटवारे के टाइम जो 152 वक्फ पॉपर्टी झारखंड के हिस्से में आई उसमें आज तक कोई इजाफा नहीं हो पाया है जबकि पॉपर्टी के लिए नये आवेदन व प्रस्ताव आ रहे हैं, लेकिन बोर्ड के नहीं हो पाने के कारण उसका रजिस्ट्रेशन नहीं हो पा रहा है।

सीईओ मोहम्मद जिलाउल अंसारी, वक्फ बोर्ड के सही से काम नहीं कर पाना की एक बड़ी वजह कर्मियों की भारी किल्लत को भी मानते हैं उनके मुताबिक बोर्ड में 13 स्वीकृत पद हैं। इसकी भर्ती को लेकर बोर्ड के गठन के बाद से अबतक 5-6 बार विभाग को पत्राचार किया गया है, लेकिन उसका कोई हल अबतक नहीं निकल पाया है। वहीं स्थाई तौर पर कभी बोर्ड को प्रशासन सीईओ भी नहीं मिला। फिलहाल कार्मिक विभाग में अवर सचिव रहते हुए जियाउल अंसारी, हज समिति में कार्यपालक पदाधिकारी और वक्फ बोर्ड में मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी के अतिरिक्त प्रभार में हैं।

वर्तमान में वक्फ बोर्ड का, अपनी संपत्तियों की देखभाल कर रहे है समिति या प्रबंधन समिति से भी सही से संपर्क में नहीं है। बोर्ड प्रशासन का कहना है बोर्ड के नहीं रह पाने के कारण राज्य में वक्फ संपत्ति का कुल मूल्यांकन भी नहीं निकल पा रहा है। प्रशासन कहना है कि नियम के मुताबिक हर वक्फ पॉपर्टी की प्रबंधन समिति संपत्ति को ऑडिट रिपोर्ट भेजना रहता है. जो समिति ये रिपोर्ट भेजती है भी है तो वो फॉर्म में वैल्यूएशन वाला कॉलम खाली छोड़ देती है। वहीं वक्फ बोर्ड संपत्ति पर अतिक्रमण को लेकर आई शिकायतों का भी निष्पादन नहीं कर पा रहा है।

वक्फ संख्या 1701 अंजुमन इस्लामिया रांची, झारखंड वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। जिन 20-25 संपत्ति का बोर्ड का राजस्व मिल पा रहा उसमें अंजुमन इस्लामिया भी शामिल है। लेकिन बोर्ड प्रशासन के पास इसे लेकर भी शिकायत है, सीईओ का कहन है, “अंजुमन को लेकर लेकर शिकायते आईं, बोर्ड ने अंजुमन कमेटी को पत्र लिखा तो उन्होंने 2021 में चार साल ऑडिट रिपोर्ट एक मुश्त भेजा। उसमें भी कमियां हैं। रिपोर्ट में वर्षवार खर्च का अंशदान होना चाहिए था, जिसे स्पष्ठ नहीं किया गया है. एक मुश्त बताया गया है. इसको लेकर उन्हें नोटिस किया गया है। ”

झारखंड अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन अंसारी ने वक्फ बोर्ड की समस्याओं स्वीकार करते हैं। वो इस पूरे मामले पर कहते हैं, “बोर्ड में जंग लगा हुआ है, उसको जल्द हटाया जाएगा। एक से दो महीने में बोर्ड का गठन हो जाएगा।इसको लेकर फाइल बढ़ा दी गई है। पहले बोर्ड का हो जाने दीजिए, उसके बाद सभी समस्याओं को भी दूर किया जाएगा।जितनी भी वक्फ पॉपर्टी है उसका ऑडिट होगा। जो लोग या कमेटी वक्फ संपत्ति पर काबिज हैं, कब्जा करके बैठे हुए हैं, सब मामले को देखना है। कोविड के कारण ये सब नहीं हो पा रहा था। सरकार काफी गंभीर है इन मामलों पर. इसे अब जल्द ही देखा जाएगा।”

हालात बताते हैं कि वक्फ प्रोपर्टी पर के अतिक्रमण और राज्यों के वक्फ बोर्ड के द्वारा सुचारू ढंग से काम नहीं किये जाने की शिकायत सिर्फ झारखंड में ही नहीं है. भारत भर में शिकायत आम है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की 70 फीसदी वक्फ संपत्ति पर अवैध कब्जा है. भारत सरकार इससे निपटने के लिए जीपीएस से वक्फ की संपत्तियों की निगरानी करने की तैयारी में है।

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