नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी से TCN की बातचीत
By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,
अभी हाल ही में भारत के समाजसेवी एक्टिविस्ट कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की बेटी मलाला युसुफजई को शांति के क्षेत्र में योगदान के लिए नोबल पुरस्कार से नवाज़ा गया है. कैलाश सत्यार्थी को यह पुरस्कार उनके ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के कार्यों के तहत दिया गया है, और मिल रही खबरें यह कह रही हैं कि कैलाश सत्यार्थी ने बाल मजदूरी के खिलाफ़ काम करते हुए लगभग 83,000 बच्चों की ज़िंदगी सुधारने का काम किया है. पूर्वी उत्तर प्रदेश वह इलाका है, जहां कैलाश सत्यार्थी ने अपने काम का एक बड़ा हिस्सा समर्पित किया है. यहां के मुख्य कालीन निर्माण के क्षेत्र मिर्ज़ापुर में कैलाश सत्यार्थी ने बाल मजदूरी उन्मूलन के लिए काफी काम किया है.
मिर्ज़ापुर में ही उन्होंने ‘रगमार्क कैम्पेन’ की शुरुआत की, जिसके तहत वे उन कालीन निर्माताओं को रगमार्क की सीलें देते थे, जिनके यहां बतौर मजदूर बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था. सत्यार्थी का यह ‘रगमार्क’ कैम्पेन पहले दक्षिण एशिया, फ़िर बाद में विश्व के कई देशों में ‘गुडवीव इंटरनेशनल’ के नाम से प्रचलित हुआ. कुल मिलकर बाल-मजदूरी के खिलाफ़ जो माहौल कैलाश सत्यार्थी ने खड़ा किया, पूर्वी उत्तर प्रदेश के निर्माता वर्ग पर उसका पूरा प्रभाव देखने को मिला. नोबल पुरस्कारों की घोषणा के बाद हमने कैलाश सत्यार्थी से बातचीत की.
कैलाश सत्यार्थी (साभार – इण्डियन एक्सप्रेस)
TCN: कैलाशजी, आपको नोबल पुरस्कार पर बारहा मुबारकबाद.
कैलाश सत्यार्थी: केवल मुझे मुबारकबाद मत दीजिए. यह पुरस्कार समूचे भारत के निवासियों और बालश्रम उन्मूलन के लिए लगे हुए लोगों के लिए मुबारक है. इसलिए आपको भी मेरी ओर से ढेर सारी बधाईयां.
TCN: आप बालश्रम उन्मूलन के लिए इतने दिनों से लगे रहे हैं. इस पूरे कार्य क्षेत्र में आपका अनुभव क्या रहा?
कैलाश सत्यार्थी: देखिए, बालश्रम के लिए लड़ाई के लिए कोई ज़मीन थी नहीं. बालश्रम भारत में कोई मुद्दा भी नहीं था, जिस पर विचार किया जाए. लोग सोचते थे कि गरीब बच्चे हैं, काम कर रहे हैं, दो पैसे कमा रहे हैं, कोई बात नहीं. वैसा तो लोग अभी भी सोचते हैं. बालश्रम एक सामाजिक बुराई है, यह लोगों के ज़ेहन में था ही नहीं. इसके लिए कोई कानून नहीं था. कानून क्या, एक लेख तक नहीं लिखा गया था. चूंकि कानून नहीं था, तो कोई जागरूकता भी नहीं थी कि बालश्रम एक कुकर्म है. तो, जिन मुद्दों की समझ होती है उनके समाधान के लिए आदमी रास्ते ढूँढता है. लेकिन जिन मुद्दों की समझ नहीं होती, उनके समाधान के लिए नए रास्ते बनाने पड़ते हैं. नया रास्ता बनाना कठिन काम है, बजाय पुराने रास्तों पर चलने के. हमने प्रयास किया इस दिशा में, हमने नए तरीके ढूंढे, हम सब लगे रहे तो इसका परिणाम यह है कि आज की तारीख में बालश्रम दुनिया के कुछ सबसे बड़े मुद्दों में से एक है. हम लोग पूरी एकाग्रता से इस ओर लगे रहे और काम को आगे बढ़ाया.
TCN: हमारा यह प्रश्न इसलिए ज़रूरी है कि समाज के सामने एक नोबेल विजेता के जीवन को भी रख सकें. अपने बैकग्राउंड के बारे में कुछ बताइये.
कैलाश सत्यार्थी: मेरा जन्म मध्यप्रदेश के नगर विदिशा के बहुत ही साधारण से परिवार में हुआ है. पिताजी हेड कॉन्स्टेबल थे. शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मध्यप्रदेश में हुई. हम चार भाई और एक बहन हैं. मेरे सबसे बड़े भाई का स्वर्गवास हो गया. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की भी पढ़ाई विदिशा में ही हुई. इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एक समय दे देने के बाद मैंने 1980 में बंधुआ मजदूरी के खिलाफ़ एक्टिविज्म के प्रति समर्पित कर दिया और तबसे ही जो कुछ मैंने किया है, वह सब आपके सामने है.
TCN: इस नोबेल पुरस्कार का आपके लिए क्या मतलब है?
कैलाश सत्यार्थी: मैंने यह कई जगह कहा है और आपके माध्यम से पुनः दोहराना चाहूंगा कि यह पुरस्कार मेरा नहीं मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का सम्मान है. इस पुरस्कार के हकदारों में सभी जाति, सभी वर्ग, सभी सम्प्रदाय के सभी लोग शामिल हैं. मैं तो यह कहूँगा कि सभी राजनीतिक दलों और सभी सामाजिक संगठनों के लोग इस सम्मान के लिए हक़दार हैं. मैं किसी दल की राजनीति नहीं करता, मैं किसी सम्प्रदाय, धर्म या वर्ग की व्यवस्था में विश्वास नहीं करता, इसलिए यह सभी के लिए है. यह देश का सम्मान है. और यह मिर्ज़ापुर के सभी लोगों और कालीन निर्माताओं के लिए है, जो कालीन उद्योग करते हैं और बाल मजदूरी नहीं कराते हैं. लेकिन जो बाल-मजदूरी कराते हैं, यह उनका भी सम्मान है और यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे सभी उद्योगों के बालश्रम को खत्म करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाएं. यह पुरस्कार मुझे नहीं, मेरे प्रयासों को मिला है. हमारी सभी कोशिशों के लिए यह एक पड़ाव है.
TCN: भारत में किसी बड़े पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति को सेलिब्रिटी बना देने की परम्परा चली आ रही है और आपने तो नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया है. आपको क्या लगता है, कि आगे क्या परेशानियां आ सकती हैं?
कैलाश सत्यार्थी: आप मुझे पहले बताइये कि मैं आपसे बात कर रहा हूं तो क्या मैं आपको सेलिब्रिटी लग रहा हूं? कहीं से मेरे हाव-भाव आपको सेलिब्रिटी परम्परा की ओर जाते दिख रहे हैं? आपके पास मेरा पर्सनल मोबाइल नम्बर है, आप सभी लोगों की पहुंच में हूं. सोच के बताइये कि क्या मैं सेलिब्रिटी लग रहा हूं?
TCN: एकदम नहीं, लेकिन भारत में मीडिया ने इस परम्परा को बहुत वायरल तरीके से फैलाया है. सम्भव है कि कल आपका बाहर निकलना मुश्किल हो जाए.
कैलाश सत्यार्थी: आप भी तो मीडिया से जुड़े हैं. आप मत बनाइये उन लोगों जैसा मुझे. वरना मुझे काम करने में दिक्क़त होने लगेगी. जब आपका काम ज़मीन से जुड़ा होता है तो आपको ज़मीन पर ही रहना होता है. आसमान पर रहकर ज़मीन का काम नहीं किया जा सकता है. लोगों के फ़ोन आ रहे हैं, मैं उनसे कह रहा हूं कि आप मुझे अपना बड़ा या छोटा भाई समझिए. वे मुझे बार-बार ‘सर’ कहकर संबोधित कर रहे हैं.
TCN: फ़िर भी कोई बदलाव, जो इस पुरस्कार के बाद आया हो? कैलाश सत्यार्थी: अभी तो यही समझ आ रहा है कि व्यस्तता बेहद बढ़ गयी है. बहुत सारे काम यूं ही पड़े हुए हैं. फ़ोन दिनभर घनघना रहा है. थोड़ी व्यस्तता बढ़ी है, लेकिन काम तो करना ही है.
TCN: बंधुआ मजदूरी और बालश्रम के अलावा किसी अन्य इतनी ही महत्वपूर्ण समस्या के निवारण के लिए आपने काम क्यों नहीं किया?
कैलाश सत्यार्थी: देखिए, मेरी समझ से बालश्रम से बड़ी दूसरे कोई समस्या नहीं है. यह कई बचपनों से जुड़ा है. बचपन सपने देखने, खुलकर खेलने, पढ़ने और आगे बढ़ने से जुड़ा समय है. जब बचपन ही गुलाम होकर खरीद-फ़रोख्त का शिकार हो जाता है, तो उस हाल में इससे बड़ी समस्या क्या हो सकती है? इसके पीछे सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक सारी विडंबनाएं हैं. मैं जब किसी बचपन को बचाता हूं तो इन सारी विडम्बनाओं, परम्पराओं, बुराईयों और आर्थिक गैरबराबरी के खिलाफ़ खड़ा होता हूं क्योंकि इनके चलते ही भारत के लाखों-करोड़ों बच्चे गुलामी के शिकार बने बैठे हैं. एक तरह से देखें तो पूरी मानव जाति ही फ़िर गुलाम है. इस लिहाज़ से मेरी लड़ाई पूरी व्यवस्था से ही है. व्यवस्था का मतलब उस पूरे सेटअप से है, जहां इस तरीके की बुराईयां पैदा हो रही हैं.
TCN: लोग जानना चाहेंगे कि महिलाओं और ट्रैफिकिंग से जुड़े बहुत सारे मुद्दे हैं, जहां ध्यान देना ज़रूरी है. बालश्रम के क्षेत्र में इतनी जागरूकता लाने के बाद क्या लोग आपसे ऐसी आशा नहीं करते कि अन्य क्षेत्रों में भी आप कुछ समर्थ प्रयास करें?
कैलाश सत्यार्थी: एक कहावत आपने सुनी होगी कि ‘एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय’. मुझे लगता है कि यह कहावत मेरी बात कह देती है. कह सकते हैं कि मैंने अर्जुन की तरह चिड़िया की आँख पर ही निशाना साधा हुआ है. बीच में मुझे राजनीतिक, आर्थिक और दूसरे किस्म के प्रलोभन मिले. कई मौके आए जब मुझे दूसरे मुद्दों के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया. लोग अभी भी पूछते ही हैं. लेकिन मैंने उन सभी को विनम्रतापूर्वक मना कर दिया है. ऐसा नहीं है कि मेरी उनमें कोई रूचि नहीं. मुझे पता है कि अन्य कई समस्याएँ भी हैं, लेकिन मैं पहले-पहल एक की तरफ़ अपना फोकस सेट करना चाहता था, जो मैंने किया.
TCN: जो माहौल देखने को मिल रहा है, उससे तो यह पता चल रहा है कि भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आपको नोबेल मिलने के पहले तक नहीं जानता था. क्या लगता है, आपको और आपके काम को अपने ही देश में पहचाने जाने में इतनी देर क्यों हुई?
कैलाश सत्यार्थी: अब सैकड़ों सालों से चली आ रही बुराई इतनी जल्दी थोड़े ही खत्म होगी, उसी तरह काम को पहचान इतनी जल्दी कैसे मिल जाएगी. मेरी पहचान का क्या, हम सभी के प्रयासों को समाज में जगह मिलनी चाहिए जो देर-सबेर मिली ही है. पहचान का सवाल तो फ़िर उसी सेलिब्रिटी परम्परा की ओर ले जाता है, जिसकी बात अभी कुछ देर पहले आप कर रहे थे. इस तरीके से पहचाना जाना किसी ‘पहचान’ का बनना नहीं है, यह प्रयासों की सराहना है. सवा सौ करोड़ की जनसंख्या में से 80-90 हज़ार बच्चों को सुरक्षित करने का मतलब है कि दिल्ली अभी बहुत दूर है. हम तो लगे रहेंगे, यही ठाना है.
TCN: क्या देश की युवा पीढ़ी को कुछ बोलना चाहेंगे?
कैलाश सत्यार्थी: यही कहना चाहूंगा कि देश की युवा पीढ़ी अपनी समर्थता ज़ाहिर करे. बालश्रम उन्मूलन जैसी समस्याओं के लिए काम करे. मैं सभी के साथ लगातार बना रहूंगा. अपने क्षेत्र में ज़रूर कुछ न कुछ हासिल करे लेकिन समाज के प्रति अपने कर्तव्य और समाज में प्रेरणा के विकास के लिए काम करे.