बिहार (पर्यटन विभाग से साभार)
अविनाश चंचल,
बिहारी बहुत बुरे होते हैं. इतने बुरे कि ऑटो चलाते हैं और आपका सामान छूट जाए तो घर पहुंचाते हैं.
इतने बुरे कि तीन हज़ार वेतन में आपके चप्पल-कपड़े की दुकान पर 12 घंटे खड़े होकर काम करते हैं और बदले में आपकी गालियां भी सह लेते हैं.
पंजाब हरियाणा में तो बिहारी और भी बुरे होते हैं. एकदम निकम्मे. खेतों में बुआई से लेकर कटाई तक का काम करते हैं और बदले में अपनी ठुकाई करवा जाते हैं.
ये दुष्ट बिहारी अपने घर से हज़ारों मील दूर किसी कॉपर खदान में काम करते हुए असमय मर जाते हैं, किसी कोयले खदान में आपके लिए बिजली पैदा करते हुए मार दिए जाते हैं और कहीं चूं तक नहीं होती.
बिहारी इतने बुरे होते हैं कि उन्हें देखकर आपका ‘मराठी मानुस’ जाग जाता है फिर उन्हें पीटा जाता है, तोड़ दिया जाता है उनका 50 रुपए दिहाड़ी वाला ठेला.
नार्थ-ईस्ट में तो बिहारी इतने बुरे बन जाते हैं कि कर दी जाती है उनके पूरे परिवार की गोली मारकर हत्या.
बिहारी बहुत बुरे होते हैं – सालों बिना अपने घर गए होटलों में, घरों में, हॉस्पिटलों में बने रहते हैं नौकर. आपके लिए कर रहे होते हैं 25वीं मंजिल पर रंगाई-पुताई.
वे बिहारी तो और बुरे होते हैं जो कोशिश कर सीखना चाहते हैं आपकी भाषा लेकिन नहीं भूल पाते अपनी बोली.
बिहारी इतने बुरे होते हैं कि अक्सर आपके मजाक का प्रतीक बन जाते हैं और अपने ऊपर बने मजाक पर मुस्कुरा भी लेते हैं.
बिहारी इसलिए भी बुरे होते हैं क्योंकि उनमें ज्यादातर मेहनतकश और मजदूर होते हैं.
बिहारी इतने बुरे हैं कि देश का प्रधानमंत्री भी उसे बीमार बोल कर आराम से निकल जाता है.
(अविनाश चंचल सोशल एक्टिविस्ट हैं. यह पोस्ट फेसबुक से.)