अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
सीमांचल: टेलीविज़न चैनलों की बहसों व सोशल मीडिया पर असदुद्दीन ओवैसी भले ही भारत में सबसे ऊंचे क़द के नेता लगते हों, लेकिन बिहार के मुस्लिम बहुल आबादी वाले सीमांचल की ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि वो यहां कहीं नज़र नहीं आते. न लोग उनका नाम जानते हैं और न ही उनके भाषणों या काम से वाक़िफ़ हैं.
हमने सीमांचल के कई गांवों का दौरा किया और यह जानने की कोशिश की कि लोग असदुद्दीन ओवैसी के बारे में कितना जानते हैं या कुछ जानते भी हैं या नहीं? कोचाधामन के कसेरा गांव में रहने वाले मो. आलम का कहना है, ‘ओवैसी का नाम एक-दो बार सुना था, लेकिन कोचाधामन में देखा पहली बार है. हम ओवैसी को वोट नहीं देंगे बल्कि हम अपना वोट अख़्तरूल ईमान को दे रहे हैं.’
खुर्शीद आलम का कहना है, ‘मैं ओवैसी की बातों से काफी प्रभावित हुआ हूं.’ लेकिन कसेरा गांव के 90 साल के अब्दुल सत्तार भी ओवैसी को नहीं जानते. लेकिन सत्तार को देश के पुराने नेताओं का नाम ज़रूर याद है.
स्पष्ट रहे कि अख़्तरूल ईमान पहले राजद से विधायक थे, लेकिन इस बार वह ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन से चुनाव लड़ रहे हैं. बारसोई में फोटोकॉपी की दुकान चलाने वाले मोजाहिदुल इस्लाम का कहना है कि वो ओवैसी को नहीं जानते. लेकिन जब हमने उनकी पार्टी से खड़े उम्मीदवार का नाम बताया तो उनका कहना था, ‘हां! उसे कौन नहीं जानता यहां. लोजपा के नेता हैं. टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.’
पान की दुकान चलाने वाले नुरूल इस्लाम का कहना है, ‘पहली बार ओवैसी से रूबरू हुआ हूं. उनका भाषण भी सुना. कुछ खास नहीं था.’ खेती-बाड़ी करने वाले अनवार का कहना है कि ओवैसी के भाषण का यहां कोई असर नहीं होने वाला. उनकी बातें हिन्दुस्तान को बांटने वाली है. लेकिन हां! आदिल की छवि अच्छी है, लोग उसे वोट देंगे.
स्पष्ट रहे कि बलराम विधानसभा क्षेत्र से ओवैसी ने अपना उम्मीदवार आदिल हसन आज़ाद को बनाया है. आदिल पहले लोजपा में थे और लोजपा के ही टिकट से 2010 में चुनाव भी लड़े थे.
दिलचस्प बात यह है कि पूरे भारत में मुसलमान ओवैसी को अपना नेता मानने लगे हैं, लेकिन किशनगंज, कोचाधामन और बलरामपुर के लोग उन्हें साम्प्रदायिक नेता के तौर पर देखते हैं और उनका मानना है कि ओवैसी की दाल यहां नहीं गलने वाली. लेकिन उनके उम्मीदवारों को वोट ज़रूर मिलेगा क्योंकि यहां के लोग उनसे पहले से बखूबी वाक़िफ़ हैं.
कोचाधामन के रहमतपारा गांव के नसीम अख़्तर का स्पष्ट तौर पर कहना है कि ओवैसी को उन्होंने अभी हाल के दिनों में जाना है. वो बताते हैं कि यहां सारे लोग मिलजुल कर रहते हैं. ऐसे में यहां कट्टरपंथी नहीं चलेगा. ओवैसी भले ही मुसलमान हैं, लेकिन वो अपने फायदे के लिए यहां आए हैं. वो यहां नहीं चलने वाले.
लेकिन किशनगंज के मसूद आलम का कहना है, ‘ओवैसी कट्टर मुस्लिम नेता हैं. वो खुलकर मुसलमानों के हक़ में बोलते हैं. इसलिए थोड़ा-बहुत फ़र्क़ ज़रूर पड़ेगा. कट्टर लोग उन्हें वोट ज़रूर देंगे. लेकिन किशनगंज में उनका उम्मीदवार दमदार नहीं है. कोचाधामन में लोग वोट देंगे क्योंकि अख्तरूल ईमान ने काम किया है.’
ओवैसी को यहां लोग इसलिए भी नहीं जानते हैं क्योंकि यहां के गांव में ज़्यादातर लोग गरीबी के कारण मीडिया से कटे हुए हैं. सबसे अहम वजह यहां के गांव में टीवी या अखबारों से कोई वास्ता न रहना है. लेकिन बावजूद इसके असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम मायूस नहीं है. वो टीवी चैनलों के स्टूडियो से बाहर निकल कर ज़मीन पर भी अपनी पहचान बनाने की कोशिश लगातार कर रहे हैं.
ओवैसी लगभग दो हफ़्तों से किशनगंज के चंचल पैलेस हॉटल में डेरा डाले हुए हैं और उनका इरादा अगले 3 नवम्बर तक वहीं रहने का है. इसके अलावा उनके साथ हैदराबाद की पूरी टीम मौजूद है. हैदराबाद शहर के मेयर मौजूद हैं. और ये तमाम लोग कड़ी धूप में सीमांचल के गांवों में घूम-घूम कर असदुद्दीन ओवैसी व उनकी पार्टी एमआईएम के कामों से लोगों को रूबरू करा रहे हैं. खुद ओवैसी हर दिन छोटे-छोटे गांव में पहुंच कर रोड शो व सभाएं कर रहे हैं. ओवैसी की इन कोशिशों का असर भी खूब हो रहा है. लोग बड़ी संख्या में उनकी बातों को सुनने आ रहे हैं. ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि लोग उन्हें व उनकी पार्टी को ज़रूर जानेंगे और बिहार की राजनीतिक ज़मीन पर एक टुकड़ा उनके नाम ज़रूर लिख देंगे.