‘हिन्दुस्तान’ को नहीं पता कहां है बेल्जियम और ग्लास्गो…

Afroz Alam Sahil, TwoCircles.net

जमशेदपुर इन दिनों चर्चा में है. वजह इस्पात के ख़ज़ाने नहीं, बल्कि आंतक के ख़ज़ाने हैं. यहां के स्थानीय अख़बारों के मुताबिक़ जमशेदपुर से पकड़े गए कथित ‘अल-क़ायदा’ आतंकियों का बेल्ज़ियम के ग्लास्गो शहर में हुए आतंकी हमलों से है.


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सबसे पहले यह ख़बर झारखंड में नंबर –वन होने का दावा करने वाला दैनिक हिन्दुस्तान ने 19 जनवरी को अपने वेबसाइट व अख़बार में काफी प्रमुखता के साथ की है. इसके बाद तो लगभग दर्जनों अख़बारों व वेबसाइटों ने इस ख़बर को बिला सोचे-समझे अपने यहां प्रकाशित की है.

इस ख़बर के मुताबिक़ –‘बेल्जियम के ग्लास्गो में दिसंबर में हुए विस्फोट में भी जमशेदपुर कनेक्शन सामने आ रहा है. उच्चपदस्थ सुत्र बताते हैं कि जिस आसिफ़ को बेंगलुरू में एटीएस ने पिछले दिनों गिरफ़्तार किया था, उसके तार ग्लास्गो विस्फोट से जुड़े हुए हैं. इतना ही नहीं विस्फोट से जुड़े एक अन्य व्यक्ति का रिश्तेदार भी जमशेदपुर में रहता है. विस्फोट के बाद एटीएस की एक टीम ने जमशेदपुर आकर आरोपी के रिश्तेदारों से बातचीत की थी. लेकिन उस वक़्त सिर्फ़ एटीएस को इतना ही पता चल पाया था कि आसिफ़ का जमशेदपुर में दो बार आना हुआ है….’

Hindustan Paper Cutting

हिन्दुस्तान की वेबसाइट पर भी इस ख़बर को आप देख सकते हैं.

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मगर जब इन अख़बारों की पूरी ख़बर पर ग़ौर करेंगे तो इन ख़बरों के लिखने वालों के अधकचरा ज्ञान पर आपको हंसी आएगी और हक़ीक़त खुद-बखुद रूबरू हो जाएंगे.

इस ख़बर में न कहानी सही है और न ही तथ्य… बल्कि यहां सिर्फ़ अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घटनाओं के नामों का सहारा लेकर सनसनी फैलाने का कारोबार ही नज़र आ रहा है.

ज़रा इन अख़बारों व संपादकों व रिपोर्टरों के ज्ञान का अंदाज़ा लगाइए कि इन्हें यह नहीं पता कि बेल्ज़ियम कहां है और ग्लास्गो कहां है? काश! इन्हें पता होता कि ग्लास्गो बेल्ज़ियम में नहीं, स्कॉटलैंड में है.

यह कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. हक़ीक़त तो यह है कि दिसम्बर 2015 में न ग्लास्गो में कोई ब्लास्ट हुआ है और न ही बेल्ज़ियम में किसी ब्लास्ट होने की कोई ख़बर किसी अख़बार ने लिखी है. ग्लास्गो में 30 जून 2007 में वहां के अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर एक ब्लास्ट ज़रूर हुआ था.

दरअसल, जमशेदपुर के अख़बारों की ये एक कहानी मुल्क की तासीर बयान करने के लिए काफी है. आतंक के नाम पर गिरफ़्तारियों का सिलसिला सामने आते के साथ ही बगैर किसी तथ्य के उजूल-जुलूल दावों का प्रकाशित करना भारतीय मीडिया के लिए एक आम बात है.

सच तो यह है कि इन अख़बारों के ज़रिए ऐसी ख़बरों को सनसनीखेज़ बनाने के कारोबार से न जाने इस मुल्क के कितने ही बेगुनाहों को अपनी उम्र का अच्छा-खासा हिस्सा जेल के सलाखों के पीछे काटने पर मजबूर होना पड़ा है. जमशेदपुर में एक बार फिर से यही ‘हादसा’ होता हुआ दिखाई पड़ रहा है.

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