फ़हमिना हुसैन, TwoCircles.net
अंनतनाग (श्रीनगर) : इस धरती पर क़ुदरत का एक अनमोल तोहफ़ा, जिसकी आस्तानों और फ़िज़ाओं में चिनार, केसर व गुलदार की खुशबू तैरती है. जिसकी गोद में झेलम अठखेलियां करती है. जी, यहां उसी वादी की बात हो रही है, जिसके गुलिस्तां को आज से क़रीब 700 साल पहले शम्सुद्दीन शाह मीर ने सींचा. जिसे आगे चलकर ‘ज़मीन की जन्नत’ का खिताब मिला. लेकिन आज इस ‘जन्नत’ में मसायलों का अंबार है.
कश्मीर के इन्हीं मसले-मसायलों को समझने और इनसे दुनिया को रूबरू कराने के लिए एक नौजवान जिसने खुद को ‘वक़्फ़’ कर दिया. उस नौजवान को दुनिया उमर हफ़ीज़ के नाम से जानती है.
इस नौजवान की उम्र महज़ 26 साल है. अंनतनाग ज़िले में रहने वाले उमर हफ़ीज़ ने कंप्यूटर अप्लीकेशन में अपनी तालीम मुकम्मल करने के बाद सोशल वर्क में मास्टर्स किया है. उमर ने रेड क्रॉस, एमनेस्टी इंटरनेशनल, कॉन्सिलिएशन रिसोर्सेज़, एक्शन एड, लोम्बार्ड, और यूएनएचसीआर जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए परियोजनाएं की हैं. लेकिन इसके बाद उन्होंने एक अलग नज़रिये को चुना. पूरे देश में इन युवा कलाकारों की बैठक की प्रक्रिया में ‘चिल्ला कैनवस’ नाम की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई, जिसने कश्मीर के उन मुद्दों को उठाने की कोशिश की, जिन्हें इस देश में रहने वाले लोग आमतौर पर नहीं जान पाते हैं.
अपने डॉक्यूमेंट्री के बारे में बताते हुए उमर का कहना है कि, ‘मैं मीडिया के कवरेज से नाखुश हूं क्यूंकि मुख्यधारा की मीडिया कश्मीर मुद्दे को सिर्फ़ कहीं न कहीं एक राजनीतिक मुद्दा के तौर पर देखती है, यहां के बाक़ी मुद्दों पर कोई बात ही नहीं करता, जबकि कश्मीरियों को सरकार से बहुत उमीदें हैं.’
उमर कहते हैं, ‘कश्मीर के यूथ में बहुत प्रतिभाएं हैं, लेकिन वो बहुत सी वजहों से अपनी प्रतिभाओं को दिखा नहीं पाते हैं. इन्हीं बातों को ज़ेहन में रखते हुए कॉलेज के समय से ही यूथ फेस्टिवल और अलग-अलग इवेंट आयोजित किया करते थें, जिसमें वो इस बात का ख़ास ध्यान रखते थे कि युवाओं को कैसे इस अवेयरनेस प्रोग्राम के बहाने उन्हें उनके करियर में सहयोग करने वाली बातों को बताया जाए.’
वो आगे बताते हैं कि, ‘वास्तव में कश्मीर को लोग आज भी सही से समझ नहीं पाए हैं. इसलिए जब मैंने पहली बार यात्रा शुरू की तो मुझे यह ख्याल रहा था कि जहां भी मैं यात्रा करूंगा, मैं लोगों से मिलकर ये ज़रूर जानने की कोशिश करूंगा कि वे कश्मीर के बारे में क्या जानते हैं. लेकिन मैंने पाया कि देश के अधिकतर युवा कश्मीर के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं रखते हैं.’
उमर बताते हैं कि, ‘देश के कोने-कोने में बहुत से युवाओं से मिलने के बाद मैंने तय किया कि मुझे युवाओं को अधिक संवेदनशील वर्गों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है. और मैंने अपना ध्यान कलाकारों पर केंद्रित करने का निर्णय लिया.’
वो आगे बताते हैं, ‘पहले जब मैं कलाकारों से मिला, तो मैं सिर्फ़ कश्मीर मुद्दे के बारे में क्या महसूस करते हैं, जानने की कोशिश करता था. लेकिन फिर मुझे लगा कि अब ये देखा जाए कि उनकी कला वास्तव में क्या कहती है. इसलिए मैंने ये योजना बनाई कि मैं उनके ज़रिए कैनवास पर उकेरे कला को प्रदर्शनी के ज़रिए लोगों के सामने रखूंगा.’
कलाकारों की प्रतिक्रिया क्या थी और उनके विचारों से आप कितने समहत या असहमत थे? इस सवाल के जवाब में उमर बताते हैं कि, ‘जब मैंने उन्हें व्यक्तिगत रूप से मुलाक़ात की, उनमें से कुछ के विचार काफी सही थे. कुछ मुझे ही ग़लत कहते थे. कुछ ने कश्मीर के बारे में आगे बातचीत की. कुछ लोगों ने कई सवाल उठाए. कुछ सामान्य रूढ़िवादी थे और मन में संदेह था कि सभी कश्मीरी आतंकवादियों के कारण भारत के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाते हैं. और हां, मैं इन सभी प्रतिक्रियाओं की उम्मीद पहले से कर रहा था. वैसे भी जब हम कश्मीर से बाहर जाते हैं तो सवाल होते ही हैं. और वैसे भी ये सब अब हमारे ज़िन्दगी का एक हिस्सा बन चुका है.’
उमर ने महिलाओं के सामाजिक समस्याओं पर भी बहुत काम किया है. वो बताते हैं कि महिलाओं को बचत कर घरेलू और स्वरोज़गार के लिए भी उन्होंने जागरूकता अभियान चलाया है, जिससे महिलाएं स्वनिर्भर हो सकें. इसके लिए उन्होंने सिलाई, कढ़ाई जैसे काम जिन औरतों को आते थे, उन्हें दूसरों को सीखाने के लिए जागरूक करते थें. इस अभियान से बहुत सी बच्चियां और औरतें खुद सिलाई सीखकर स्वरोज़गार हो गईं.
इसके अलावा उमर हाफ़िज़ रोहिंग्या मुस्लिम कर भी काम कर रहें हैं, जिसमें रेफ़्यूजी कैम्प के बच्चों को लोकल स्कूल में दाख़िला दिलवाना और पढ़ाई के लिए मोटिवेट करने का काम कर रहे हैं. अभी तक 100 बच्चों से ज्यादा का दाख़िला करवाया जा चुका है.