TwoCircles.net Staff Reporter
अमरोहा : रमज़ान के इस पाक महीने में अमरोहा के सैदनगली थाना इलाक़े के सकतपुर गांव के मुसलमान नमाज़ नहीं पढ़ सकते, क्योंकि छ दिन पहले एक मस्जिद को लेकर गांव में साम्प्रदायिक तनाव हो गया था. गांव के मुसलमानों को अब यहां नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं है.
दो दिन पहले एक परिवार ने यहां नमाज़ पढ़ने की कोशिश की, तो यहां पांच लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली गई. इन पांच लोगों में से 3 महिलाएं हैं. पुलिस ने सैदनगली थाने में इन लोगों पर धार्मिक समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने के आरोप में आईपीसी की धारा —153 के तहत एफ़आईआर दर्ज की है. प्रशासन का कहना है कि अहमद और उनके परिवार द्वारा इस तरह से अदा की गई नमाज़ एक गैर-क़ानूनी गतिविधि थी, क्योंकि इस जगह को मस्जिद के रूप में मान्यता नहीं मिली है.
इस मामले के बाद गुरूवार को स्वतंत्र जांच समूह के साथ यूपी के सामाजिक व राजनीतिक रिहाई मंच ने दौरा किया.
भले ही पुलिस बता रही हो कि इस मस्जिद को मस्जिद के रूप में मान्यता नहीं मिली है. लेकिन यहां का दौरा करते हुए जांच समूह ने पाया कि 2010 में गौसिया मस्जिद का निर्माण हुआ, जहां पहले कच्ची मस्जिद में 2005 से नमाज़ पढ़ी जाती रही है.
मस्जिद के पास के ही रहने वाले अहमद हसन ने बताया कि ईद, बक़रीद, अलविदा जुमा, तरावीह समेत रोज़ की पांच समय की नमाज़ें और जुमे की नमाज़ लगातार पढ़ी जाती रही है.
गांव वालों ने बताया कि ईद की नमाज़ पर सुरक्षा के मद्देनज़र पुलिस भी लगाई जाती रही है और उन लोगों ने पिछली ईद के नमाज़ की कुछ तस्वीरें भी दिखाईं.
गांव वालों का कहना है कि आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ के मुज़फ्फ़रनगर के सुखपाल राणा जिनका पिछले दिनों पुलिसकर्मी को मारते हुए वीडियो वायरल हुआ था, ने महापंचायत कर ऐलान किया कि मस्जिद में नमाज़ नहीं पढ़ने देंगे. उसके बाद शाम को नमाज़ अदा करके जा रहे असग़र सैफ़ी पर हमले के बाद तनाव भड़का.
गुर्जर समुदाय के युवकों द्वारा किए गए हमले के ख़िलाफ़ सैफ़ी ने पुलिस से शिकायत की और ग्रामीण भी थाने गए. मामला पुलिस के सामने आने के बाद भी सतपाल राणा ने सांप्रदायिक हिंदू तत्वों के सैकड़ों लागों के साथ जुलूस निकालते हुए ‘पाकिस्तान का क़ानून पाकिस्तान में, नहीं चलेगा हिंदुस्तान में’ जैसे सांप्रदायिक नारे लगाते हुए नमाज़ नहीं पढ़ने देने और मस्जिद को ढहाने के नारे लगाते रहें.
गांव के ही जोगिन्द सिंह ने बताया कि यहां सब कुछ सामान्य था, पर कुछ असामाजिक सांप्रदायिक तत्वों ने पूरे गांव का माहौल ख़राब कर दिया है. ऐसे में बहुत से ऐसे लोगों पर मुक़दमा दर्ज हुआ है जो लोग इतने बुजुर्ग हैं कि चल–फिर नहीं सकते.
उन्होंने सुखपाल राणा द्वारा की गई पंचायत में शामिल लोगों में अपने 80 वर्षीय बुजर्ग पिता का नाम डालने और उसे वाट्सअप पर प्रसारित करने पर आपत्ति ज़ाहिर की.
उन्होंने कहा कि मुस्लिमों को हमारी पूजा–अर्चना पर कोई आपत्ति नहीं तो हम क्यों नमाज़ पर आपत्ति करें.
गांव के ही शकील ने कहा कि धारा —144 मुसलमानों के लिए है, हिंदुओं के लिए नहीं. उल्टा हम पर 107/16 के तहत मुक़दमा पंजीकृत किया गया है, जिसमें 32 लोगों की ज़मानत हम लोगों ने करवाई है, पर उन लोगों ने एक की भी नहीं करवाई है. इससे समझ सकते हैं कि आज भी उन लोगों में कोई डर नहीं है.
गांव के ही मुकेश ने कहा कि नमाज़ न पढ़ने देने की ख़बर ने इस गांव को जहां ख़बरों में लाया है, वहीं इससे हम काफ़ी परेशान भी हो गए हैं. कुछ लोगों की ज़ेहनियत की वजह से पूरा गांव बदनाम हो गया है.
इस जांच समूह ने अपने जांच में पाया कि–
1- नमाज़ पहले से अदा होती रही है, पर जिस तरह से यहां इस बात को कहा जा रहा है कि पहले कभी इस घर तो कभी उस घर में नमाज़ पढ़ी जाती थी, वो बताता है कि मुस्लिम समुदाय यहां बहुत दबाव में रहता है, जिसके तहत धार्मिक संस्कारों को लेकर वह हिंदू समुदाय से छूट की अपेछा जैसी भावना रखता है. जो उसके धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है.
2- भाजपा नेता सुखपाल राणा द्वारा जुमे के दिन महापंचायत करना और उसको होने देना और नमाज़ न होने देने के ऐलान के बाद भी पुलिस का सक्रिय न होना और शाम को नमाज़ी पर सांप्रदायिक हमला स्पष्ट करता है कि पूरी घटना पूर्व नियोजित थी.
3- जिस तरह से पुलिस ने इस मामले में दोनों पक्षों पर मुक़दमा किया, उससे साफ़ है कि पुलिस इसे हिंदू–मुस्लिम संघर्ष बनाने पर तुली है.
4- सकतपुर में एक ही मस्जिद है, जिस पर तनाव के बाद नमाज़ अदा करने पर पाबंदी है. ऐसे में बूढ़े–बुजर्गों को काफी दिक्कत आ रही है, क्योंकि वो वहां से 6 किलोमीटर दूर दूसरे गांव के मस्जिद में नहीं जा सकते. वहीं यह डर भी है कि उन्हें बाहर निकलने पर पीटा भी जा सकता है.
5- किसान संघ के नेता सुखपाल राणा जिन्होंने महापंचायत कर नमाज़ को लेकर हिंसा भड़काई, की अब तक गिरफ्तारी न होना साफ़ करता है कि उन्हें शासन–प्रशासन का खुला संरक्षण है.
इस जांच समूह में रिहाई मंच नेता शाहनवाज़ आलम, सेंटर फाॅर पीस स्टडी से सलीम बेग, लेखक व स्तंभकार शरद जायसवाल, पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक आनंद, इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता संतोष सिंह व राजीव यादव शामिल रहें.