पंकज सिंह बिष्ट
नैनीताल (उत्तराखंड) : आज जहां एक तरफ़ पहाड़ के लिए पलायन श्राप बना हुआ है. जिसे रोकना सरकार के लिए एक चुनौती है. ऐसे में इसी पहाड़ की महिलाएं अपना उद्यम स्थापित कर स्वरोज़गार को अपना रही हैं. यह उन युवाओं को भी एक नई राह और एक नई दिशा दिखाने का काम कर रही हैं, जो रोज़गार की तलाश में अपने गांव और अपनी मातृभूमि से पलायन कर रहे हैं.
ऐसी ही एक महिला हैं उत्तराखण्ड के नैनीताल जनपद मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित एक छोटे से क़स्बे कसियालेख में अपना उद्यम चलाने वाली पूनम बिष्ट, जिन्होंने न केवल स्वयं का उद्यम स्थापित कर स्वरोज़गार को चुना बल्कि पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं को एक नया संदेश भी दिया है.
2004 में महज़ 18 वर्ष की उम्र में पूनम विवाह के बाद अपने ससुराल कसियालेख से पास के गांव गजार में आई तो ससुराल वालों ने दुत्कार दिया. क्योंकि पूनम और उसके पति भीम ने प्रेम विवाह किया था. साथ ही पूनम का नेपाली होना और एक कारण था.
ससुराल वालों से इस प्रकार तिरस्कृत होने के बाद पूनम और भीम ने किराये पर रहना शुरु किया. पूनम और उसके पति दैनिक मज़दूरी कर अपनी जीविका चलाने लगे. क्योंकि वह कोई खास पढ़े–लिखे नहीं थे. जहां पूनम केवल कक्षा 7 पढ़ी हैं, वहीं उसके पति केवल 10वीं तक ही पढ़े हैं. ऐसे में कोई नौकरी मिलना भी कठिन था.
बहुत जतन के बाद ससुराल वालों ने पति को पुश्तैनी ज़मीन में हिस्सा तो दिया लेकिन वह भी इतनी नहीं थी कि उसमें खेती कर उससे परिवार का गुज़ारा हो सके. ऐसे में मज़दूरी से ही परिवार का गुज़ारा चलता रहा. मज़दूरी का काम भी कभी मिलता तो कभी नहीं मिलता. फिर एक दिन पूनम को पता चला कि वह माँ बनने वाली है. 21 जुलाई 2005 को पूनम ने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम सानिया रखा गया. बेटी के जन्म के बाद उसे अपने परिवार और बच्ची के भविष्य की चिंता सताने लगी.
पूनम अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिससे स्थाई और नियमित आमदनी होती रहे. उसने अपने मायके में महिलाओं को विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करते देखा था. लेकिन उसे अपने ससुराल में किसी प्रकार के व्यवसाय को करने में संकोच था. क्योंकि अभी तक यहां किसी भी महिला द्वारा इस प्रकार से बाज़ार में व्यवसाय नहीं किया गया था.
वह अक्सर अपने गांव के नज़दीकी बाज़ार कसियालेख में (जो कई गांवों का केन्द्र भी है) घर का सामान लाने जाया करती थी. उसने गौर किया कि वहां महिलाओं के श्रृंगार एवं आवश्यक सामान बेचने वाला कोई नहीं था. ऐसे में उसने सोचा कि, क्यों न एक बिसाता (महिलाओं के श्रृंगार एवं आवश्यक सामान बेचने वाली दुकान) खोली जाए. जिसके चलने की भरपूर सम्भावनाएं उसे नज़र आती थी.
पूनम ने अपना यह बात पति के साथ साझा की. लेकिन इस काम को करने में दो बड़ी बाधाएं थी. पहली शुरुआती लागत राशि का न होना और दूसरी सामाजिक रूप से एक महिला द्वारा इस प्रकार बाज़ार में व्यवसाय करने का साहस करना. क्योंकि यह पहली घटना होती जब कोई महिला इस प्रकार का कार्य करने वाली थी.
पूनम ने समाज की परवाह न करते हुए काम शुरु करने की ठानी. लागत राशि के लिए फ़ैसला किया गया कि कुछ समय मज़दूरी करके पूंजी जुटाई जाए. ऐसे में दोनों पति–पत्नी को काम करना होगा. फिर क्या था लागत राशि जुटाने के लिए प्रयास शुरु किये गए. दो माह की कड़ी मेहनत के बाद 10 हज़ार रुपए इकट्ठा हुए. जून 2008 में स्थानीय बाज़ार में रोड से लगे लिंटर (छत) में लकड़ी और टिन से एक खुमचा (अस्थाई दुकान) बनाया गया, जिसमें महिलाओं के श्रृंगार एवं अन्य आवश्यकता का सामान बेचने के लिए रखा गया.
पूनम के इस प्रकार दुकान खोलने की ख़बर जंगल में लगी आग की तरह चारों ओर फैलने लगी और एक महिला का इस प्रकार अपना उद्यम शुरू करना चर्चा का विषय बन गया. इसका पूनम को भरपूर लाभ मिला, क्योंकि उसके काम का मुफ्त में प्रचार–प्रसार हो रहा था. ऐसे में ग्रामीण महिलाएं पूनम से अपनी ज़रूरत का सामान आसानी और बेझिझक ख़रीदने लगीं. धीरे–धीरे कुछ ही महीनों में पूनम को अपनी इस दुकान से सभी खर्च काट कर लगभग 9000 रुपया मासिक आमदनी होने लगी.
दुकान के लिए हल्द्वानी से थोक में सामान लाने का काम पूनम के पति द्वारा किया जाता और वह दुकान में समान बेचती रहती. 18 अक्तूबर 2009 को पूनम के दूसरे बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम रोहित रखा गया. इस दौरान कुछ माह उसके पति ने दुकान संभाली. फिर पूनम ने ही बच्चे को साथ लेकर ही दुकान का काम करना प्रारंभ कर दिया. वक्त बीतता गया. इस दौरान पूनम ने अपनी कमाई से अपने लिए दो मंज़िला घर भी बना लिया. इस प्रकार पूनम को अपना उद्यम चलाते हुए 6 वर्ष बीत गए.
पूनम के पति बेकरी का काम काफ़ी अच्छा जानते थे तो उसने पति को बेकरी का काम शुरू करने की सलाह दी. 2014 में डिस्ट्रिक्ट को–ऑपरेटिव बैंक से 5 लाख रुपया लोन लेकर बेकरी का काम शुरू किया गया. बेकरी के उत्पादों को उसके पति द्वारा गाड़ी के माध्यम से आस–पास के बाज़ारों में बेचा जाता है. इससे वर्तमान में लगभग 30 हज़ार रुपया महीना आमदनी होती है. उनके द्वारा आज बेकरी के काम को करने के लिए 2 और युवाओं को नौकरी में रखा गया है, जिन्हें लगभग 7 हज़ार रुपया प्रति व्यक्ति के हिसाब से वेतन दिया जाता है. खाली समय में पूनम खुद भी बेकरी के काम में हाथ बंटाती हैं. आज उनके पास अपनी वेगनार कार भी है.
पूनम के एक क़दम ने उसे एक कामयाब उद्यमी के रूप में पहचान दिलाई है. आज उसकी बिटिया कक्षा 7 और बेटा कक्षा 2 में एक अच्छे स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. आज पूनम में एक आत्मविश्वास है जो उसे अपने परिवार व व्यवसाय के लिए निर्णय लेने के क़ाबिल बनाता है. वह अब खुद ही अपनी दुकान के लिए हल्द्वानी से सामान भी ख़रीद कर लती है. उसे अपने ग्राहकों की ज़रूरत और पसंद की पूरी जानकारी भी है. वह समय के हिसाब से मांग को भी पहचानती है.
जब पूनम से उसकी कामयाबी के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि, ‘किसी भी काम को अगर पूरी लगन, मेहनत और ईमानदारी से किया जाए तो सफलता ज़रूर मिलती है. अगर उसे करने में अपनी पूरी ताक़त भी झोंकनी पड़े तो भी उस काम को करते रहना चाहिए.’ वर्तमान में पूनम उन युवाओं के लिए प्रेणनास्रोत हैं जो आजीविका के लिए अपने गांव और पड़ाह से पलायन कर रहे हैं.
गजार गांव के युवा दीवान सिंह बिष्ट कहते हैं कि, ‘पूनम ने एक महिला होने के बावजूद जिस प्रकार अपना उद्यम चलाया और उसका प्रबन्धन किया वह क़ाबिले तारीफ़ है! एक महिला ने हमारे समाज के सोचने के तरीक़े को बदल दिया. जिससे और महिलाओं को भी साहस मिल रहा है.’
सामाजिक कार्यकर्ता नैन सिंह डंगवाल कहते हैं कि, ‘कोई ज़रूरी नहीं कि सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए बहुत बड़े स्तर में बदलाव लाया जाए, पूनम का काम सामाजिक बदलाव की जीती जागती मिसाल है. जो अपने आप में एक प्रेरणादायक है.’
एक ग्रामीण युवती कहती हैं कि, ‘पहले हमें महिलाओं से सम्बंधित सामान प्राप्त करने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. अब हम अपने गांव के नज़दीक ही पूनम दीदी की दुकान से बिना परेशानी व झिझक के अपनी ज़रूरत का सामान खरीद लेते हैं.’
पूनम के पति भीम सिंह कहते हैं कि, ‘महिलाओं को केवल अवसर देने की ज़रुरत होती है, पूनम के एक निर्णय से हमारी जिंदगी बदल गई मुझे उस पर गर्व है.’
पूनम की दुकान के बग़ल वाले दुकानदार अर्जुन सिंह कहते हैं कि, ‘पूनम दीदी को किसी प्रकार की समस्या न हो इसके लिए हम दुकानदारों द्वारा पूरी तरह से उन्हें सहयोग प्रदान किया जाता है.’
इससे एक बात तो साबित होती है कि एक महिला ने अपनी मेहनत के दम पर न केवल खुद की पहचान बनाई. साथ ही दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा बन गई, जिससे देश के युवाओं को सीख लेने की आवश्यकता है. (चरखा फीचर्स)