अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
तमाड़ (रांची) : रांची ज़िला तमाड़ क्षेत्र का लूंगटू गांव मैदान… यहां लोग सुबह से बैठकर शहर से आने वाले अपने नेताओं का इंतज़ार कर रहे हैं. जैसे ही इन नेताओं की गाड़ी गांव के उबड़-खाबड़ सड़कों से होते हुए मैदान के सामने पहुंचती है, लोग अचानक से सक्रिय हो जाते हैं.
शहर से आने वाले इन नेताओं के लिए आनन-फानन में अपने घरों से कुर्सियों के लाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. कुछ ही देर में सभा की शुरूआत कर दी जाती है. गांव के ही एक बुजुर्ग को इस सभा का अध्यक्ष बनाया जाता है.
धीरे-धीरे यहां भीड़ बढ़ती जा रही है. औरतों अपने बच्चों को गोद में लिए सभा-स्थल की ओर पहुंच रही हैं. युवाओं की भी अच्छी-ख़ासी भागीदारी है. आख़िर सवाल इनके भी भविष्य का है.
युवाओं के जोश का अंदाज़ा आज इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्हें जब लगा कि भीड़ अधिक बढ़ गई है, तो आनन-फानन में लाऊडस्पीकर व जनरेटर का इंतज़ाम कर देते हैं. अब भाषण देने के लिए नेताओं के हाथ माईक है.
इस सभा का एकमात्र मक़सद कल यानी 05 दिसम्बर को झारखंड की राजधानी रांची में राजभवन के सामने झारखंड की रघुवर दास की सरकार के ख़िलाफ़ महाधरना देना है. और इस महाधरना का मक़सद परासी सोना खदान का लीज रद्द कराना है, जिसे सरकार ने नियमों का उल्लंघन करते हुए ‘मेसर्स रूंगटा माईन्स’ नामक कम्पनी को दे दी है.
इस महाधरना का मुख्य आयोजक ‘आदिवासी जन परिषद’ है. आदिवासी जन परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा TwoCircles.net के साथ बातचीत में बताते हैं कि, ये ज़मीन हमारी माता है और यदि कोई माता की इज़्ज़त लूटेगा तो उसकी हम ईंट से ईंट बजा देंगे.
वो आगे कहते हैं कि, ये बिरसा मुंडा का क्षेत्र है. ये उनके सपनों का झारखंड है. लेकिन आज यहां के आदिवासी नेताओं की करतूत देखकर उनका आत्मा रोता होगा.
प्रेम शाही मुंडा बताते हैं कि, हम पिछले एक महीने से गांव-गांव जाकर ऐसी सभा कर रहे हैं. इन सभाओं में लोगों का हुजूम देखने लायक़ है. अब यहां का आदिवासी पहले वाला आदिवासी नहीं रहा. हर मामले जागरूक है. किसी भी तरह से हम अपना जड़, जंगल और ज़मीन नहीं छोड़ेंगे. हम आदिवासियों की ताक़त कल पूरा झारखंड देख लेगा.
अखिल भारतीय आदिवासी धर्म परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष व संयुक्त बिहार के पूर्व विधान पार्षद छत्रपति शाही मुंडा का कहना है कि, परासी सोना खदान का क्षेत्र भारतीय संविधान के पांचवी अनुसूची के दायरे में है. और सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई, 1997 को दिए अपने फ़ैसले में पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों के लिए स्पष्ट तौर पर खनन के संबंध में राज्य सरकारों को अधिनियम बनाने के नियमन और मार्गदर्शन दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश को समता जजमेंट के नाम से जाना जाता है. लेकिन झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट इस निर्देश पर आज तक अमल नहीं किया है. यहां तमाम क़ानूनों का उल्लंघन करके आदिवासियों की ज़मीन को बड़ी कम्पनियों को दे दिया जाता है.
वहीं इस सभा में शामिल लोगों का स्पष्ट तौर पर कहना है कि हम जान दे देंगे, लेकिन सरकार को अपनी ज़मीन किसी कम्पनी को देने नहीं देंगे. सवाल है कि आख़िर हम जाएंगे कहां? इस सभा में सोना खान के खुलने से ग्रामीणों को होने वाले नुक़सान और फ़ायदे दोनों बिंदुओं पर विस्तार रूप से चर्चा की गई, जिसमें इन्होंने आने वाले दिन में होने वाले विस्थापन और नुक़सान को देखते हुए सोना खान के विरोध में एकजुट रहने का निर्णय लिया.
बता दें कि झारखंड के रांची शहर के क़रीब तमाड़ इलाक़े के परासी क्षेत्र में क़रीब 9.89 लाख टन सोने का भंडार मिलने के बाद इस ‘परासी केन्द्रीय सोना प्रखंड’ को पिछले 01 नवम्बर को राज्य सरकार ने नीलाम करके इसे ‘मेसर्स रूंगटा माईन्स’ नामक कम्पनी को लीज पर दे दी है.
ये परासी देश की सबसे बड़ी सोना खदान है. पूरी खदान 69.240 हेक्टेयर में फैली हुई है.
यही नहीं, खनन प्रखंड मुण्डारी खुंटकट्टीदारी का क्षेत्र है, जिसमें छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम —1908 के विभिन्न धाराओं में यहां के लोगों के लिए आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विशिष्टता के संरक्षण का भी प्रावधान है. इसके अलावा ‘भूमि अधिग्रहन पुनर्स्थापन, पुनर्वास अधिनियम —2013’ के विभिन्न धाराओं में विशेष उपबंध किए गए हैं, जिसमें ग्रामसभा से राय लेने का एक महत्वपूर्ण नियम है.
इस आन्दोलन में शामिल लोगों का कहना है कि, सरकार पेशा क़ानून —1996 का भी उल्लंघन कर रही है. यानी इस प्रजा-तांत्रिक देश में रघुवार दास की सरकार तानाशाही रूख अपनाकर यहां के आदिवासियों को उन्हीं की ज़मीन से बेदखल करके सोना लूटने का पूरा मन बना चुकी है. जिसे हम किसी भी हाल में होने नहीं देंगे.