आस मुहम्मद कैफ़, TwoCircles.net
मुज़फ़्फ़रनगर : 68 साल के बीड़ी जयंत मीरापुर में दलितों के सबसे बड़े मोहल्ले पछाला में रहते हैं. मोहल्ले के नौजवान उन्हें देखते हैं तो ‘जय भीम’ कहते हैं.
बीड़ी जयंत बताते हैं कि यह सब उन्होंने सिखाया है. अब मुझे कोई ‘नमस्ते’ नहीं कहता. हम आपसी संबोधन में ‘जय भीम’ ही कहते हैं. और युवाओं में यह विचारधारा बढ़ रही है. हम हिन्दू नहीं हैं, फिर हमें उस संस्कृति की भी ज़रूरत नहीं है.
वो हमें आगे बताते हैं कि, उनके समझाने के बाद अब बहुत कम दलित नौजवान कांवड़ लेकर जाते हैं. जब हिन्दू हमें ‘हिन्दू’ नहीं मानते, तो हम उनके रीति-रिवाजों की गुलामी क्यों करें.
जयंत का कहना है कि, दलितों में बौद्ध धर्म तेज़ी से फैल रहा है. मेरठ की मेयर सुनिता वर्मा के घर में बुद्ध की विशालकाय प्रतिमा लगी है.
बौद्ध धर्म में 10 फ़ीसद बढ़ोत्तरी का दावा करने वाले जयंत कहते हैं, ‘दलित जब तक खुद को दलित कहता रहेगा, उसका उत्पीड़न होता रहेगा.’
यह एक क़स्बे की बात नहीं है, बल्कि दलितों के बीच बहुत तेज़ी से चल रहा एक अभियान है. हाल फिलहाल यह ज़्यादा प्रचार इसलिए पा रहा है कि पिछले दिनों मुज़फ़्फ़रनगर के मंसूरपुर थाने में 5 दलित युवकों के विरुद्ध हिन्दू देवी-देवताओं के पोस्टर फाड़ने का मुक़दमा दर्ज किया गया है.
यहां के डिप्टी एसपी डॉक्टर राजीव कुमार के अनुसार इन पांचों युवकों ने सौहार्द बिगाड़ने का काम किया.
इस मामले में अब तक 3 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं. मुख्य आरोपी लोकेश कटारिया अभी फ़रार हैं. यह मुक़दमा धारा -153 और 295(ए) के अंतर्गत दर्ज हुआ है. विवेचना मंसूरपुर पुलिस कर रही है.
दरअसल, पिछले दिनों ‘भीम सेना’ नाम के एक संगठन ने नोना गांव में जाकर दलितों के घर से हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्ति हटवा दी और दीवारों से उनके पोस्टर फाड़ दिए. उसके बाद इसकी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.
मुज़फ़्फ़रनगर से ज़िला पंचायत सदस्य रहे सोहनलाल चांदना कहते हैं, “मंदिर दलित बनाता है. रंग दलित करता है. मूर्ति भी वही बनाता है. मगर उसके बाद वो ही उसमें प्रवेश नहीं कर सकता. अब दलित जाग गया है. वो सब समझता है.”
बहुजन संघ के जोन प्रभारी सीमांत गौतम कहते हैं, “बहुजन समाज का देवता वो है, जिसने इनका उद्दार किया हो. अब सावित्रीबाई फुले ने दलितों में शिक्षा का काम किया, तो वो हमारी शिक्षा की देवी हुईं. कोई और नहीं.”
गौरव के अनुसार दलितों पर हुए अत्याचार की लड़ाई तो बाबा साहब लड़े और पूजा किसी और की हो, यह नहीं चलेगा.
डॉक्टर अजीत कहते हैं कि, “भीमा कोरेगांव की घटना के बाद टीवी पर ख़बर चल रही थी कि हिन्दुओं और दलितों मे झगड़ा हुआ. अब जिन दलित लोगों ने हिन्दुत्व के नाम पर मोदी को वोट दिया था, हम उनसे पूछना चाहते हैं कि कुछ समझ में आया.”
सीमांत के अनुसार हमारे लोगों को अपने अस्तित्व की लड़ाई खुद लड़नी होगी. हमें सिर्फ़ दंगों में इस्तेमाल किया जाता है. हम समाज के बीच जाकर उन्हें समझा रहे हैं कि मुसलमानों से लड़ना नहीं है, क्योंकि इससे हमारी प्रगति बाधित होती है.
दलित चिंतक सुरेन्द कुमार कहते हैं, “एक बार बात समझ आ जाए वो अपने आप लोग इन देवी-देवताओं से दूर हो जाएंगे. हम उन्हें तर्क देते हैं कि सदियों उत्पीड़न सहे जाने के बाद यह देवता उन्हें बचाने क्यों नहीं आएं. जब हमारे ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचार पर ये देवी-देवता चुप हैं, तो फिर हम इन्हें क्यों पूजे?
वहीं अजीत का कहना है कि, “हमारे देवता तो वो हैं, जिन्होंने हमारे लिए काम किया. दूसरों के नाम पर तो हमारा उत्पीड़न ही हुआ है.”