आस मोहम्मद कैफ | नहटौर
तेज बारिश में सड़के घुटनों तक भर गई है. नहटौर के मौहल्ला-गलीतालाब सचमुच तालाब बन चुका है. भीगते हुए हम नदीम अहमद के घर पहुंच ही जाते है. उनके घर की दीवार और दरवाज़े दोनों कभी भी गिर जाने का डर पैदा कर रहे हैं. नदीम किसी तरह इस बारिश में अपने घर और खुद को बचाने की कोशिश करते हैं.
नदीम अहमद (50) बिल्कुल देख नही सकते. उनके बचपन मे हुए एक हादसे ने उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह छीन ली. बारिश के पानी से बचकर,पास में उनकी पत्नी नूरजहां खड़ी है.घर थोड़ा बड़ा है,उन्हें यह उनके पिता से मिला, मगर इसमें बस इतनी ही जगह बची है जिसमे बारिश से बचने के लिए एक चारपाई और एक स्टूल पर बिना भीगे बैठा जा सके. नदीम अहमद कोई सेलिब्रिटी नही है.इससे पहले आपने उनका नाम भी नही सुना होगा.मगर उनमे इंसानियत के लिए सबक बहुत है. इन्हें खुद्दारी,जिम्मेदारी,ईमानदारी और अख़लाक़ भी कहते हैं.
बिजनोर से धामपुर मार्ग पर मुस्लिम आबादी की प्रचुरता वाले इस कस्बे नहटौर में नदीम अहमद फर्नीचर का काम करते हैं, 3 हजार रुपए महीना कमाते है.उनकी एक बेटी है जो 9वी में पढ़ती है.आजकल वो स्पीकर बॉक्स बनाते है. नहटौर में नदीम अहमद बेहद इज्जतदार लोगों में से एक है. नदीम कहते है”भीख नही मांग सकता था मैं कमाकर रोटी खाता हूं”.
नदीम कहते है “मुझे कुछ याद नहीं,घरवाले बताते है मैं तब एक महीने का था.मेरी बड़ी बहन ने कमीज का एक बटन मेरे मुंह मे डाल दिया वो तब 2 साल की थी.उसके बाद मेरी आँख की नसें खिंच गई.जितनी कोशिशें हो सकती थी हुई मगर मेरी आँखों मे रोशनी नही आई.मैंने चीजो को सिर्फ छूकर महसूस किया”
नदीम अहमद बेहद मजबूत कदकाठी रखते है,6 फुट लंबाई और 100 किलो से ज्यादा वजन वाले इस इंसान के पास खूबसूरत दुनिया को देखने के लिए आंखे नही है.नदीम की बीवी उनके पास ही खड़ी है वो कहती है”मैंने उनसे यह जानकर शादी की थी कि वो देख नही सकते मगर मुझे कभी अहसास नही हुआ कि मैंने कोई गलती की मेरा फैसला सही था”.
पड़ोस के रियासत (35)हमें बताते है कि उनके घर मे दरवाज़े खिड़की और दूसरा लकड़ी का सब फर्नीचर नदीम भाई ने बनाया है.यह बात आश्चर्य से भर देती है कि एक अंधा आदमी यह कैसे कर सकता है!नदीम हमारी बात सुनते है और अपनी चारपाई से उठ जाते है वो खुद अपनी लड़की की ‘रौंदा मशीन’के ऊपर से कवर हटाते है और प्रेक्टिकल करके दिखाते हैं.नदीम की बीवी बताती है घर की तीनों चारपाई इन्होंने खुद बुनी है.वो हमें सीएमओ बिजनोर का एक प्रमाण पत्र दिखाती है जिसमे 100%ब्लाइंड लिखा है.
इस प्रोफ़ाइल के साथ नदीम अहमद अपनी पीसीओ भी चला चुके है पड़ोसी विसाल अहमद के अनुसार वो पैसे छूकर पहचान लेते थे और नंबर सुनकर मिला देते थे. नदीम कहते है कि अब नए नोट पहचानने में बहुत दिक्कत हो रही है क्योंकि अनुभव पुराना है.
पांच भाई बहनों सबसे छोटे नदीम अहमद के दो बड़े भाई हल्दौर के अच्छे रईसों में से एक है मगर खुद्दार नदीम ने कभी उनसे मदद नही मांगी. नदीम कहते है “देने के लिए सिर्फ खुदा है बंदों के आगे हाथ फैलाने से क्या होगा!
एक और मुश्किल हालात से जूझ रहे नदीम की एक किडनी लगभग डैमेज हो चुकी है.यकीनन उनकी हालात मुश्किल है मगर वो अपनी जिंदगी से खुश है.नदीम की फ़र्नीचर बनाने का काम सीखने की कहानी भी अजीब है वो हमें बताते हैं कि”बचपन मे अब्बू की आरामशीन पर मैं नाश्ता करके बैठ जाता था वहां कारीगरी के औजारों को छूकर कर देखता था उसके बाद उन्हें चलाने लगा अब अंदाजा हो गया है”.
नदीम अपने घर से बस स्टैंड तक बिना किसी सहारे के पहुंच जाते है वो अपने सभी काम खुद निपटाते है वो अपना बेंगलौर का एक किस्सा सुनाते है “लगभग 10 साल पहले एक तबलीग़ ए जमात में एक चिल्ला लगाने मैं बेंगलौर गया था वहां मुझे 40 दिन तक मस्जिद में रहना था वहां मेरे घर की तरह अंदाजा नही था मगर मुझे सिर्फ एक बार रास्ता पकड़कर समझाया गया उसके बाद मुझे दोबारा जरुरत नही पड़ी”.