क्या उत्तर प्रदेश की एनकाउंटर पुलिस के पास लाइसेंस टू किल है!

यूपी में योगी सरकार के दौरान लगातार एनकाउंटर हुए है (फ़ोटो -aasmohammad kaif/TwoCircles.net)

आस मोहम्मद कैफ |लखनऊ TwoCircles.net

अलीगढ़ में दो मजदूरों के ‘लाइव’एनकाउंटर के बाद पिछले सप्ताह दिल्ली से आए कुछ सामाजिक कार्यकर्ता एनकाउंटर वाले थाने क्षेत्र में स्थानीय कोतवाल से मिले,उसके बाद वहां अतिवादियों की भीड़ जुटने लगी और इन्हें अपनी जान बचाकर भागना पड़ा,दिल्ली से आई सामाजिक कार्यकर्ताओं की यह टीम अक्सर दलितो अल्पसंख्यको पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाती है,यह अलीगढ़ के दो मजदूर नौशाद और मुस्तकीम के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने की सच्चाई खोज रही थी.


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इसके बाद जब एएमयू के कुछ छात्र नेता एनकाउंटर में मारे गए इन दोनों के परिजनों के साथ शुक्रवार को दिन में प्रेस क्लब दिल्ली में अपनी व्यथा सुना रहे थे तो अलीगढ़ पुलिस ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अध्यक्ष मशकूर अहमद उस्मानी और एक पूर्व अध्यक्ष फैजुल हसन समेत कई लोगों के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कर दिया,इन पर आरोप था कि इन्होंने मृतक नोशाद और मुस्तकीम के परिजनों का अपहरण कर लिया,बाद परिजनों ने मीडिया के सामने अपनी मर्ज़ी से आने का बयान दे दिया.

जिस समय दिन में दिल्ली में यह प्रेस कॉन्फ्रेंस हो रही थी उसी दिन रात में लखनऊ में एप्पल फोन के मेनेजर विवेक तिवारी  की लखनऊ पुलिस के दो सिपाहियों ने गोली मारकर हत्या कर दी और आरोपी सिपाहियों द्वारा इसे एनकाउंटर का रूप देने की कोशिश हुई मगर बाद में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे एनकाउंटर होने से इंकार किया.

जिस समय यह घटनाएं हुई उसी समय मुजफ्फरनगर में पिछले एक साल से हो ताबड़तोड़ एनकाउंटर की जांच में आई मानवाधिकार आयोग की टीम ने बहुत सी सच्चाई का पता लगा रही थी.पड़ताल में पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में एन्काउंटर की कहानी कितनी डरावनी हो गई है।

मंगलवार को मानवाधिकार आयोग की एक टीम मुजफ़्फ़रनगर के एक गाँव बागोवाली में नदीम एनकाउंटर की जांच करने पहुंची थी, यहां के नदीम (32)को 8 सितंबर को ककरौली पुलिस ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था. गौरतलब है कि उसकी मौत के ठीक एक साल बाद मानवधिकार आयोग की इस मुठभेड़ की जांच कर रही है. नदीम के गाँव के लोगो का दावा है कि यह मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी. नदीम 8 साल बाद जेल से छूट कर आया था और अपनी ज़मीन बेचकर कारोबार करने की जुस्तुजू में था.

फ़ोटो -aasmohammad kaif/ TwoCircles.net

पिछले साल 8 सितंबर को हुए इस एनकाउंटर से पहले नदीम पर मुजफ़्फ़रनगर पुलिस की हिरासत से फरार होने का आरोप था,इसके बाद उसपर रातोरात 10 हजार रुपये इनाम घोषित हो गया और इसके बाद ककरौली पुलिस ने उसे मुठभेड़ में मार दिया।

इस मुठभेड़ की कहानी में कुछ और भी है जिसे मानवधिकार आयोग की टीम को स्थानीय लोगो ने बताया कि नदीम 3 दिन तक पुलिस हिरासत में ही था(रिकॉर्ड में नही),उसे छुड़ाने के लिए उसकी बहन ने अपने गहने गिरवी रख दिए,बेहडा गाँव के एक मुखबिर से पुलिस ने इस मुठभेड़ में गवाह बनने के लिए कहा जिसकी बात लीक हो गई,साथ ही एनकाउंटर करने वाला दारोगा कुछ ही दिनों में प्रमोशन पा गया।

मानवधिकार आयोग की यह टीम इससे अगले दिन जान मोहम्मद की खतौली में हुए एनकाउंटर की जांच करने भी पहुंची,जान मोहम्मद को 16 सितंबर(पिछले साल) को एक कथित मुठभेड़ में मार गिराया गया. दोघट बागपत का रहने वाला जान मोहम्मद उर्फ़ जानू पर 12 हजार रुपए का इनाम था. जानू की एनकाउंटर की तस्वीर यूपी पुलिस की बहादुरी का प्रतीक बन गई. जानमोहम्मद की मौत गाडी चलाते हुए हुई थी जबकि उसके परिजनों का कहना था कि वो गाडी चलाना ही नही जानता था.

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इसके अलावा मानवधिकार आयोग ने एक और जिस मामले को गंभीरता से लिया है वो 3 अक्टूबर को हुआ था. इस दिन नॉएडा पुलिस 50 हजार रुपये के इनामी सुमित गुर्जर को मार दिया. मारे गए सुमित की कोई क्राइम हिस्ट्री नही थी. उसके पिता का आरोप था कि उनके गाँव में सुमित नाम का एक दूसरा बदमाश था,समान नाम होने की वजह से उनके बेटे को मार दिया. इसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया परिजनों ने कई दिन तक शव का अंतिम संस्कार करने से इंकार कर दिया अलग अलग गाँवों में आक्रोश फैलने लगा और गुर्जर पंचायत होने लगी. तमाम बड़े गुर्जर नेता एक प्लेटफार्म पर आये और यूपी पुलिस की बड़ी फ़ज़ीहत हुई इस लड़ाई को प्रमुखता से लड़ने वाले सपा नेता अतुल प्रधान के मुताबिक यह सीधे तौर पर पुलिस द्वारा की गई हत्या थी जिसमे हत्यारें बच नहीं पायंगे.

एक और कहानी जान लीजिए कैराना का फुरकान सालों से जेल में बंद था,अचानक वो जमानत पर बाहर आ गया और फिर उसे एनकाउंटर में मार दिया गया,फुरकान की बीवी ने पत्रकारो को बताया कि उसके पास तो पैसे ही नहीं थे ये कैसे बाहर आ गया.

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उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद अब तक हुए लगभग 2100 मुठभेड़ो में ज्यादातर की कहानियां ऐसी ही है, जिनमे पड़ताल करने पर नई बात सामने आ जाती है. अब  तक इन एनकाउंटर्स में लगभग 65 अपराधी मारे गए हैं,550घायल हुए है,हालांकि 4 पुलिसकर्मी भी इसमें शहीद हुए हैं जबकि 334 घायल है,700 से ज्यादा बदमाशों के पैर में गोली लगी है और 334 पुलिसकर्मियों के गोली हाथ से छूकर निकल गई है,मेरठ जोन इसमें सबसे ज्यादा अग्रणी है जहाँ 400 दिनों में 40 बदमाशों को मुठभेड़ में मार गिराया गया है. हाल फिलहाल एक बार एनकाउंटर में तेजी आई है,मेरठ में 10 दिन में(16 सितंबर से 27सितंबर) 22 मुठभेड़ हुई है,जिनमे 2 बदमाश मारे गए हैं और 40 गिरफ्तार हुए हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा है कि एक भी एनकाउंटर फ़र्ज़ी नही किया गया है.

लखनऊ में विवेक तिवारी की पुलिसकर्मियों द्वारा की गई हत्या के बाद यह बहस बहुत तेज़ हो गई है क्या यूपी पुलिस बेलगाम हो गई है और बात बात बन्दुक चला देती है! क्या यह प्रश्न मानसिकता का है और उसे सीधे गोली चलाने से डर नही लगता!

समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता रोली तिवारी मिश्रा इन सवालों का जवाब देने की कोशिश करती है वो कहती है “सूबे का मुखिया ने कहा है कि तुमको किसी के अपराधी होने पर शक है तो ठोको”तो पुलिस यही तो कर रही है वो ठोक रही है”।रोली कहती है कि”प्रदेश में बुरी तरह असुरक्षा का माहौल है जिन लोगों ने भाजपा को वोट दी थी वो भी अब पछता रहे हैं,पुलिस कुछ भी इल्जाम लगाकर किसी का एनकाउंटर कर सकती है,यूपी में पुलिस पर कोई नियंत्रण नही है वो बस शिकार तलाशती है”.

तमाम एनकाउंटर की एक जैसी कहानी है,सबकी एफआईआर में एक जैसी भाषा है चाहे वो आज़मगढ़ के रामु पासी का एनकाउंटर हो या फिर मुजफ्फरनगर में असलम का.
रोली कहती है”वर्दी का सम्मान टूट रहा है ख़ाकी पहनना अत्यंत गौरव की बात है मगर वो खिलौना बन गई है,पुलिस को देखकर आम आदमी को सुरक्षा का भाव पैदा होने चाहिए मगर वो पुलिस को देखकर डर रहा है,अब पुलिस खुद अपराधियों जैसा बर्ताव करने लगी है”.

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ख़ास बात यह है यूपी पुलिस में एनकाउंटर की संख्या बढ़ाने को लेकर होड़ चलती है,2017 में आगरा जोन के प्रथम रहने के बाद अब मेरठ जोन की बढ़त है।मुठभेड़ के सामान्य सिद्धांत संख्या गणित का समर्थन नही करते जैसे मुठभेड़ अचानक से होने वाली घटना है,यह प्लान करके नही होती,आपराधिक मामलों के जानकार सहारनपुर के वकील सज़्ज़ाद अहमद कहते हैं “मुठभेड़ की प्रारंभिक दास्ताँ यह है कि पुलिस को किसी आपराधिक घटना की सुचना मिलती है,पुलिस वहां मौके पर पहुंचती है जहाँ बदमाशो से आमना-सामना हो जाता है,पुलिस बदमाशो को ललकारती है,बदमाश पुलिस पर फायर करते हैं,पुलिस आत्मरक्षार्थ गोली चलाती है,इसमें किसी के भी गोली लग सकती है,इसलिए मुठभेड़ योजना बनाकर नही की जाती,इसके लिए आनन-फानन में तैयार होना पड़ता है”.

फिर क्या कारण है कि किसी एक जनपद में अचानक से एनकाउंटर होने लगते है जबकि दूसरे दर्जनों जनपद शांत रहते हैं जबकि अपराधी वहां भी है! सज़्ज़ाद कहते है”जोन स्तर अथवा जिला स्तर पर अभियान चलाया जाता है और बदमाशों को तलाशा जाता है,इसी तरह के अभियान मुम्बई अंडरवर्ल्ड को तबाह करने के लिए चलाए गए,कई बार ये अभियान राज्य स्तर पर भी होते है,जाहिर है पुलिस शिकार तलाशती है इन अभियानों की सफलता से अफसरों को इनाम और सम्मान दोनों मिलते है”.

एक दर्जन से एनकाउंटर करने वाले एक पुलिस अधिकारी हमसे नाम न छापने की गुजारिश करते हुए कहते है”आप बदमाश के मारे जाने के तरीके पर ज्यादा गौर न करें बल्कि यह देखे कि हमने अपराधियों को ही मारा है,बेगुनाह को हम कुछ नहीं कह रहे हैं सिर्फ पेशेवर अपराधियों को गोली जवाब गोली से दे रहे हैं”.

समाजवादी पार्टी के नेता अतुल प्रधान के अनुसार पुलिस कानून की रक्षा के लिए है वो खुद कानून तोड़ रही है,3फरवरी को ग़ाज़ियाबाद में जितेंद्र यादव नाम के एक जिम इंस्ट्रक्टर को यूपी पुलिस के एक दारोगा ने गोली मार दी और इसे एनकाउंटर का नाम दे दिया,जबकि वो दारोगा विजय दर्शन जिम इंस्ट्रक्टर से खुन्नस रखता था उसे लगा यह आसान तरीका है,यूपी में पुलिस बेलगाम है वो कुछ भी कर सकती है.

यूपी पुलिस से डरने की अपनी वजह है जैसे पिछले दिनों दिल्ली में अलीगढ एनकाउंटर में मारे गए नौशाद और मुस्तकीम के परिजनों की आवाज़ उठाने पहुंचे अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सटी के अध्यक्ष मशकूर अहमद उस्मानी और पूर्व अध्यक्ष फैजुल हसन के ख़िलाफ़ ही मुक़दमा दर्ज कर दिया गया,मशकूर अहमद के मुताबिक अलीगढ पुलिस ने दो गरीब मजदूरों को वाहवाही लूटने के उद्देश्य फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया,इसके लिए बाकायदा मीडिया बुलाई गई और एनकाउंटर की वीडियो बनवाई,जब परिजनों और कुछ स्थानीय लोगों ने इस अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाई तो उन्हें मुक़दमे में फ़साने की धमकी दी गई.इससे पूर्व कैराना में भी ऐसा हुआ है.

मेरठ जोन में बलराज भाटी, शमीम, सुजीत भाटी, मंसूर उर्फ़ पहलवान, असलम बुंता, बेबन्द्र चौधरी,सोनू कुमार,सत्यवीर सत्ता, अमित,फुरकान, रिहान,अकबर,विकास जाट, रमेश नानू जैसे बदमाश इन मुठभेड़ों में मारे गए है,कई बार एक लाख के इनामी बदमाश पुलिस से साज़ कर जेल पहुंच गए इनमें बिजनोर के आदित्य जाट को लेकर पूरी जनपद की क्राइम ब्रांच को संस्पेंड कर दिया गया था.

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है उत्तर प्रदेश की निवेशकों की नज़र में छवि खराब हो रही है यूपी में एनकाउंटर की हिंसात्मक संस्कर्ति विकृत हो गई है. इससे पूर्व रालोद के महासचिव जयंत चौधरी भी यूपी में लगातार फ़र्ज़ी एनकाउंटर की बात कह चुके हैं,उनके अनुसार यूपी में पुलिस को ‘लाइसेंस टू किल’दे दिया गया है.

इन एनकाउंटर को लेकर एक सवाल और भी है जिसे पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी ने उठाया है उनका कहना है कि इन मुठभेड़ो में ज्यादातर दलितों अल्पसंख्यकों और पिछड़ी जाति के लोगो के गोली मारी गई है लेकिन लखनऊ में विवेक तिवारी की मौत ने बहुत सी बंद आँखों को खोल दिया है.

एक और बात है एनकाउंटर के बाद मृतक  के परिवार को पुलिस सुचना नही देती,कैराना के फुरकान और आज़मगढ़ के जय हिंद यादव के परिजनों को व्हाट्सप से इनके मारे जाने का पता चला, जय हिंद के तो 21गोलियां मारी गई थी,जबकि फुरकान की हड्डियां टूटी हुई थी.

फ़ोटो -aasmohammad kaif/TwoCircles.net

फरवरी के बाद एनकाउंटर में कुछ कमी आ गई थी मगर सितंबर में एक बार तेजी आई है,मेरठ के एक स्थानीय पत्रकार कहते हैं”आजकल एनकाउंटर का कनेक्शन तबादले से भी होता है,जब भी किसी अफसर को तबादले की आहट होती है वो एनकाउंटर कर देता है जिससे उसकी कुर्सी नही हिलती जाहिर है तबादला एक्सप्रेस आने वाली है ,यही कारण है कि अब अपराधियों की भी बोली लग रही है”.

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