लोक सभा चुनाव: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन का ट्रायल, अजीत सिंह को बचाना होगा अपना किला

आस मोहम्मद कैफ, TwoCircles.net

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर पहले चरण मतदान 11 अप्रैल को है. यह लोकसभा सीट मेरठगौतमबुद्ध नगर ,ग़ाज़ियाबाद,बागपत ,मुजफ्फरनगरबिजनोर,सहारनपुर और कैराना है.


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इस बार इन सीटों पर काफी कुछ दांव पर हैं. पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजीत सिंह और पोते जयंत चौधरी अपनी परिवार की राजनीतिक विरासत के लिए मैदान में हैं. ये जात राजनीती में एक निर्णायक मोड़ हो सकता हैं.

मुज़फ्फरनगर दंगो के बाद ये दूसरी बार लोक सभा चुनाव हो रहे हैं. पिछली बार सारी सीट भाजपा को गयी थी. ये चुनाव साबित करेंगे कि ज़ख्म भरे हैं कि नहीं.

गुर्जर समुदाय कि राजनीति का भी इम्तेहान हैं. देखना होगा कि गुर्जर के सबसे बड़े नेता बाबू हुकुम सिंह के बाद क्या उनकी बेटी मृगानका सिंह का टिकट काटने के बाद क्या गुर्जर समुदाय अब दूसरा नेता चुनेगा?

प्रदेश में सबसे अधिक पांच लाख मतों से जीतने वाले वी के सिंह क्या वही साख बचा पाएंगे. सहारनपुर में क़ाज़ी परिवार अब एक हो चूका हैं तो क्या राजनीती फिर उनके पास लौटेगी.

सहारनपुर में त्रिकोणीय लड़ाई –

उत्तर प्रदेश की की इस पहले नम्बर की लोकसभा सीट पर त्रिकोण बन गया है.यहां भाजपाकांग्रेस और गठबंधन के बीच फंस गई है.यहां से कांग्रेस के इमरान मसूद और गठबंधन के हाजी फजरूरह्मान चुनाव लड़ रहे हैं.दो मुस्लिम प्रत्याशी होना ही यहां भाजपा की एकमात्र राहत है.

2007 में मुजफ्फराबाद विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक बनने वाले इमरान मसूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब मुसलमानों के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक है.

2014 में वो नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान देकर चर्चा में आए थे. इसके बाद वो जेल भेज दिए गए।कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे जमानत पर बाहर आएं और भाजपा के राघव लखनपाल से 64 हजार 390 वोटों से चुनाव हार गए.इमरान को 4 लाख सात हजार 909 वोट मिली.उनके कि चेचरे भाई शादान मसूद को 52 हजार 765 वोट मिली जो समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे.

इस बार शादान इमरान के साथ आ गए हैं और परिवार अब एक प्लेटफॉर्म पर है.

2007 मुजफ्फराबाद के विधायक बनने के बाद इमरान मसूद दो बार विधानसभा और एक लोकसभा का चुनाव हार चुके है. उनके चाचा रसीद मसूद सहारनपुर से पांच बार सांसद रहे हैं और पांच बार दूसरे स्थान पर रहे यह अलग बात है कि हर बार उन्होंने पार्टी बदल ली.

17 लाख वोटरों वाली सहारनपुर लोकसभा में 6 लाख से ज्यादा वोटर सिर्फ मुसलमान है. ये 6 लाख वोट ही इमरान की सबसे बड़ी ताकत है.मगर इस सबके बावूजद इमरान की राह बेहद मुश्किल में है.

इसकी वजह गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हाजी फजलुर्रहमान है वो बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में है.सहारनपुर के बड़े मीट व्यापारी फजरूरह्मान हाल ही मेयर के चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी संजीव वालिया से 1800 वोटों के नजदीकी अंतर से चुनाव हार गए थे.दलित वोटों का उनकी तरफ झुकाव है.जिसके चलते बड़ी संख्या में मुसलमानों का झुकाव भी उनकी तरफ बढ़ रहा है।जाहिर है.इस सबमें 44 डिबेट में हिस्सा लेकर संसद सिर्फ 3 अर्ज़ी लगाने वाले जनता से पूरी तरह दूर रहे भाजपा के एमपी राघव लखनपाल की बांछे खुल गई है.

कैराना –क्या तबस्सुम वापसी कर पायेगी

कैराना उत्तर प्रदेश की एक बेहद चर्चित लोकसभा है.कैराना को वेस्ट यूपी की गुर्जर कैपिटल कहा जाता है.यहां की सियासत एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है.पिछले 30 साल से यहाँ एक ही परिवार के मनव्वर हसन और हुकुम सिंह का सिक्का चलता रहा है.मनव्वर हसन और हुकुम सिंह दोनों अब दिवंगत हो चुके हैं.मनव्वर हसन के बेटे नाहिद हसन कैराना से विधायक है उनकी पत्नी तब्बसुम हसन कैराना से सांसद है.हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को भाजपा ने उपचुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया था.इस बार उनका टिकट काट दिया गया है.कैराना का चुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे नजदीकी चुनाव होने वाला है.पहले चरण में यहां मेरठसहारनपुर मुजफ्फरनगरबिजनोरबागपत,नोएडा और ग़ाज़ियाबाद में मतदान है.यहां ज्यादातर में तस्वीर साफ है बस कैराना की उलझी हुई है.मगर इस बार तस्वीर के धुंधला होने की वजह भारतीय जनता पार्टी नही है बल्कि कांग्रेस का मजबूत प्रत्याशी है.

इस बार पलायन मुद्दा नही है.कानून व्यवस्था पर कोई बात नही हो रही.पुलवामा का मामला उलटा पड़ गया है.अब यहाँ साम्प्रदयिकता का ज़हर भी नही दिखाई देता है.हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह का टिकट भाजपा ने काट दिया है.गंगोह के विद्यायक प्रदीप चौधरी अब भाजपा के प्रत्याशी है.चुनाव पूरी तरह से सोशल कमेस्ट्री पर आकर टिक गया है. कैराना लोकसभा के थानाभवन विधानसभा जलालाबाद मुस्लिम बहुल क्षेत्र है यह मज़हबी आलिम मौलाना अशरफ अली थानवी का इलाका है.यहां जलालाबाद कस्बे के असलम मंसूरी (51)के अनुसार मुसलमानों का अधिकतर झुकाव तब्बुसम की और है मगर कांग्रेस ने पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को प्रत्याशी बनाकर कन्फ्यूज़ कर दिया है.हरेंद्र मलिक को जाटों का बड़ा भाग समर्थन कर रहा है और कुछ मुसलमान भी उनके साथ है.इसके उलट मुसलमानों का बड़ा हिस्सा तब्बुसम के साथ है और जाटों में भी उनकी सेंधमारी है.

कैराना से तब्बुसम हसन के बेटे नाहिद हसन विधायक है वो सुबह 5 बजे क्षेत्र में निकल जाते हैं नाहिद हमें बताते हैं कि इस बार चुनाव पहले से ज्यादा आसान है. क्योंकि पिछली बार चुनाव रमजान और शिद्दत की गर्मी में था.सरकार ने अपनी पूरी ताक़त यहाँ झोंक दी थी.इस बार कार्यकर्ता को जनसंपर्क में सहूलियत है. हमें अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है.

कैराना में 39 फीसद मुस्लिम वोट है 2018 के चुनाव में यहां तबस्सुम हसन को 4 लाख 81 हजार 182 वोट मिली थी.जिसमे वो मृगांका सिंह से 44 हजार 618 वोटों से जीती थी.यह सीट बड़े गुर्जर नेता सांसद  और 7 बार के विधायक हुकुम सिंह के निधन से रिक्त हुई थी।उनकी बेटी मृगांका सिंह को उसके बाद यहां से प्रत्याशी बनाया गया था.सहानभूति लहर के बावजूद वो चुनाव हार गई.यहाँ गठबंधन का पहला प्रयोग कामयाब रहा.

मुजफ्फरनगरछोटे चौधरी‘ अजित सिंह को बचानी है अपनी राजनीतिक ज़मीन

राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत के अगुआ है.वो मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ रहे हैं.उत्तर प्रदेश के पहले चरण के चुनाव में मुजफ्फरनगर सबसे महत्वपूर्ण लोकसभा सीट है.मुजफ्फरनगर दंगों के बाद देशभर में धुर्वीकरण हुआ था.राजनीतिक जानकर मानते हैं कि केंद्र में सत्ता परिवर्तन की वजह भी मुजफ्फरनगर दंगा ही बना था.किसान नेता चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर से संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार है.मुजफ्फरनगर में 11 अप्रैल को चुनाव है.इस सीट पर लगभग16 लाख वोटर है जिनमे से साढ़े पांच लाख सिर्फ मुस्लिम वोटर है जो निर्णायक स्थिति में है.भाजपा से यहां संजीव बालियान सांसद है उन्होंने पिछले चुनाव के बसपा के क़ादिर राणा को मात दी थी.

कांग्रेस ने यहां अजित सिंह के सामने अपना प्रत्याशी खड़ा नही किया है.

2014 के चुनाव में यहां एकतरफा धुर्वीकरण हुआ था जिसकी संभावना अब खत्म हो चुकी है. अजित सिंह ने पिछले एक साल में जाट मुस्लिम एकता के लिए बहुत काम किया है.अब हालात यह है जाट और मुस्लिम एक गाड़ी से अजित सिंह के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं.नफरतों का सिलसिला टूट चुका है और किसानों के मुद्दे मोदी पर हावी है.गन्ने का भुगतान और आवारा पशुओं से फसलों की तबाही से किसान नाराज है.मुजफ्फरनगर में इस बार मोदी विरोधी लहर दिखाई देती है.

खास बात यह है कि मुजफ्फरनगर में अजित सिंह की जीत मुस्लिम और दलित वोटरों को तय करनी है.जो उनके पक्ष एकतरफा खड़े दिखाई देते हैं.

अजित सिंह इससे पहले अपनी परंपरागत सीट बागपत से चुनाव लड़ते रहे हैं वहां अब उनके बेटे जयन्त चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं.मुजफ्फरनगर जनपद में पांच विधानसभा है इनमे मेरठ जिले की एक सरधना विधानसभा भी है.यह ठाकुर बहुल विधानसभा है.रालोद को गठबंधन में तीन सीटें मिली है.जिनमे से एक मथुरा पर रालोद ने ठाकुर प्रत्याशी बनाया है.इस उम्मीद पर रालोद के नेता ठाकुरों में अच्छी वोट बटोरने का दावा कर रहे हैं.अजित सिंह के अनुसार यह चुनाव वो संविधान और लोकतंत्र बचाने के लिए लड़ रहे हैं.

बिजनौर —दलित -मुस्लिम -गुर्जर  एकता का प्रयोग  

बिजनोर लोकसभा में भी पहले चरण में चुनाव है.यहां भाजपा ने अपने सांसद कुँवर भारतेंदु सिंह को पुनः प्रत्याशी बनाया है हालांकि पांच साल जनता के बीच दिखाई न देने के कारण उनका बहुत विरोध है.पिछले दिनों बिजनोर किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था.इसके के प्रतिकूल परिणाम आ रहे हैं.गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर यहां मलूक नागर को टिकट दिया गया है.कांग्रेस यहां नसीमुद्दीन सिद्दीकी को चुनाव लड़ा रही है.

बिजनोर लोकसभा से 2014 में कुँवर भारतेंदु सिंह ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी शाहनवाज़ राणा को हराकर जीत हासिल की थी.मलूक नगर उस समय तीसरे स्थान पर रहे थे.इस लोकसभा सीट पर 15 लाख से ज्यादा वोटर है इनमे 5 लाख से अधिक सिर्फ मुस्लिम वोटर है जबकि 3 लाख दलित है .2014 में यहां से रालोद के टिकट पर जया प्रदा भी चुनाव लड़ी थी जिन्हें 24 हजार 348 वोट मिले थे.गठबंधन प्रत्याशी की जीत की उम्मीद गुर्जर वोटरों पर टिकी है.दो बार लोकसभा चुनाव हार चुके मलूक नागर को इस बार गुर्जरो की सहानभूति मिल रही है.बिजनोर लोकसभा मे एक लाख से ज्यादा गुर्जर है.2014 में भाजपा के  कुँवर भारतेंदु सिंह को 486943 सपा के शाहनवाज़ राणा को 281136 और बसपा के मलूक नगर को 230124 वोट मिले थे।उस समय मोदी लहर का भी असर था जो अब कहीं दिखाई नही दे रही. बिजनोर लोकसभा में पांच विधानसभा आती है इनमे बिजनोर ,पुरकाजी ,मीरापुर ,चांदपुर और हस्तिनापुर शामिल हैं.मलूक नागर यहां बसपा के सिम्बल पर चुनाव लड़ रहे हैं वो दूध के बड़े व्यवसायी है और स्थानीय किसानों से जुड़े हुए है।इसका भी उन्हें लाभ मिल रहा है.

गौतमबुद्ध नगर गुर्जरो के ध्रुवीकरण से बदल सकती हैं तस्वीर  

गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट से गठबंधन प्रत्याशी सतबीर नागर की घोषणा के साथ  ही गुर्जर संस्थाओं में सियासी हलचल तेज हो गई और वो सतबीर के पक्ष में माहौल बनाने की जद्दोजहद में लग गए.नोएडा के प्रशांत भाटी के मुताबिक स्थानीय गुर्जर इसी की बाट जोह रहे थे ‘गुर्जर कोई भी लड़ता बिरादरी ने पहले ही तय कर लिया था कि जिताऊ गुर्जर के लिए एकजुट होकर वोट करनी है.इसकी वजह भाजपा के महेश शर्मा की गुर्जर नेतृत्व को खत्म करने की साज़िश से पनपा गुस्सा है.अब ऐसा ही हो रहा है इस गुर्जर बहुल सीट पर गुर्जर लामबंद तो है ही साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहले चरण के चुनाव में कैराना,बिजनोर और गौतमबुद्ध नगर में गुर्जर संस्थाए अपनी बिरादरी का सांसद चुनने की जोरदार कवायद में जुटी है.

गुर्जरो के नेता कुँवर देवेंद्र सिंह के मुताबिक समाज को इसी चरण से सदन में तीन सांसद मिलेंगे.इसके लिए हम कटिबद्ध है. 2009 में अस्तित्व में आई गौतमबुद्ध नगर सीट से भाजपा के महेश शर्मा सांसद है. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफी करीबी माने जाते हैं.यह सीट ठाकुर और गुर्जर बहुल है.कांग्रेस ने यहां भाजपा एमएलसी जयवीर सिंह के बेटे अरविंद कुमार सिंह को प्रत्याशी बनाया है.गौतमबुद्ध नगर लोकसभा में दादरीसिकंदराबाद,जेवर और नोएडा विधानसभा आती है.2014 के लोकसभा चुनाव में महेश शर्मा 2 लाख 80 हजार वोटों से जीतें थे.उन्होंने समाजवादी पार्टी के नरेंद्र भाटी को हराया था.बसपा अध्यक्ष मायावती का घर भी इसी लोकसभा का हिस्सा है.गौतमबुद्धनगर के 3 लाख से ज्यादा गुर्जर है।चार लाख दलित और मुस्लिम  है.

ग़ाज़ियाबाद—दलित मुस्लिम गठजोड़ का ट्रायल

पिछली बार दलितों के एक बड़े हिस्से ने भी भाजपा के पक्ष में मतदान किया था.अब हालात बिल्कुल पलट चुके है.भाजपा ने यहां एक बार फिर वीके सिंह को प्रत्याशी बनाया है.समाजवादी पार्टी के सिम्बल पर गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर सुरेश बंसल है.कांग्रेस यहां युवा नेता डोली शर्मा को चुनाव लड़ा रही है.गाजियाबाद में 44 फीसद सिर्फ दलित और मुस्लिम है.पिछली बार यहां के दलित युवकों का रुझान भाजपा की और था अब वो रुझान टूट चुका है.भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर का अस्थाई निवास भी अब ग़ाज़ियाबाद में ही है.युवाओं में मोदी सरकार को लेकर अब सवाल उठ रहे है.

गठबंधन ने यहां पहले सुरेंद्र मुन्नी को प्रत्याशी बनाया था मगर बाद में टिकट बदलकर सुरेश बंसल को प्रत्याशी बना दिया.कांग्रेस की प्रत्याशी डोली शर्मा भी यहां युवाओं में काफी लोकप्रिय है.वीके सिंह की जीत इस बार पहले जैसी आसान नही दिख रही.इस बार उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है.ग़ाज़ियाबाद लोकसभा का चुनाव रोचक स्थिति में है.

दलितों के एक बड़े हिस्से ने भी भाजपा के पक्ष में मतदान किया था.अब हालात बिल्कुल पलट चुके है.भाजपा ने यहां एक बार फिर वीके सिंह को प्रत्याशी बनाया है.समाजवादी पार्टी के सिम्बल पर गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर सुरेश बंसल है.कांग्रेस यहां युवा नेता डोली शर्मा को चुनाव लड़ा रही है.गाजियाबाद में 44 फीसद सिर्फ दलित और मुस्लिम है.पिछली बार यहां के दलित युवकों का रुझान भाजपा की और था अब वो रुझान टूट चुका है.

ग़ाज़ियाबाद में बड़ी संख्या में ठाकुर वोटर है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां दो बार सभा कर रहे हैं।

बागपत – दादा की विरासत को वापस पाने की कवायद में कामयाब होंगे जयन्त 

कैराना चुनाव के बाद से रालोद सुप्रीमो अजित सिंह के बेटे जयन्त चौधरी अब एक बड़ी और बेहतरीन पहचान बना चुके है.जाटो में उनकी स्वीकार्यता बढ़ चुकी है.आगे बढ़कर वो चुनोती स्वीकार कर रहे हैं.पिछली बार उनके पिता को भाजपा के सत्यपाल सिंह ने करारी हार का मज़ा चखाया था.अब वो इसका बदला चुकाने की पूरी तैयारी कर चुके है.बागपत ने जयन्त को लोकसभा में भेजने की लगभग तैयारी कर ली है.युवाओं में उन्हें लेकर उत्साह है और समीकरण उनके पक्ष में है.

बागपत से उनके दादा तीन बार सांसद रहे जबकि उनके पिता 6 बार सांसद चुने गए.1998 में सोमपाल शास्त्री और 2014 में सत्यपाल सिंह अजित सिंह को हराने में कामयाब रहे.मगर अब एक बार फिर बागपत के लोग जयन्त चौधरी को सदन में भेजने को आतुर दिखाई देते है.यहां के किसानों में भाजपा के झूठे वादेगन्ने का भुगतान ,फसलों का लागत मूल्य,किसानों को महंगी बिजली ,आवारा पशुओं से तबाह होती फसल जैसे मुद्दों का जोर है।बागपत में कुल 15 लाख 92290 मतदाता है।इनमे सवा चार लाख जाट है.सवा तीन लाख मुस्लिम है।सवा दो लाख दलित है.

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