नासिरूद्दीन
हाल ही में व्हाट्सएप पर एक मैसेज मिला. इसे चुटकुला कहना ज्यादा सटीक होगा. चुटकुला कुछ यों था:
हमारे एक मित्र का बेटा 18 घंटे पढ़ने के बाद भी 10वीं क्लास में फेल हो गया. उन्हें विश्वास नहीं हुआ तो विद्यालय जा कर आंसर शीट निकलवायी. उसने प्रश्नों के उत्तर देखें तो वह खुद आश्चर्यच में पड़ गया.
प्रश्न- हरित क्रांति कब शुरू हुई?
उत्तर– 2014 के बाद.
प्रश्न- श्वेत क्रांति कब शुरू हुई?
उत्तर– 2014 के बाद.
प्रश्न- भारत ने पहला परमाणु बम परीक्षण कब किया था?
उत्तर- 2015 के बाद.
प्रश्न- दलितों के हित की योजनाएँ कब चालू हुई ?
उत्तर-2016 के बाद.
प्रश्न- भारत में पहला कम्प्यूटर कब आया?
उत्तर -2015 के बाद.
प्रश्न- भारत देश असली रूप में कब आजाद हुआ?
उत्तर – 2014 के बाद.
प्रश्न- भारत में पंचायती राज कब आया था?
उत्तर -2016 के बाद.
प्रश्न- भारत का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन कौन है?
उत्तर –राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ.
प्रश्न- भारत के महान संत कौन-कौन हैं?
उत्तर – आसाराम बापू, राम रहीम, बाबा रामदेव, प्रज्ञा सिंह, अजय बिष्ट, उमा भारती, साध्वी निरंजन ज्योति, ॠतंभरा आदि.
प्रश्न- भारत को आजाद किस व्यक्ति और विचारधारा ने कराया?
उत्तर – प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी और संघ.
प्रश्न- इस देश में आर्थिक उदारीकरण कब शुरू हुआ?
उत्तर– 2014 के बाद.
प्रश्न- संचार क्रांति कब शुरू हुई?
उत्तर – 2014 के बाद.
प्रश्न- बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब हुआ?
उत्तर – नोटबंदी के दौरान.
प्रश्न- देश की सुरक्षा के लिए आर्मी, नेवी, एयरफोर्स, बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, एसपीजी, एनएसजी, कोस्टगॉर्ड आदि का गठन किसने और कब किया?
उत्तर- प्रधानसेवक ने 2014 के बाद.
ये उत्तर देखने के बाद मित्र पिता पर ने क्या राय दी, इसका पता हम आखिर में लगायेंगे.
…
नौजवान साथियो,
आप मिलेनियल हैं यानी 21वीं सदी की संतानें. आप में 2001 में पैदा होने वाली पीढ़ी 18 साल की हो चुकी हैं. वे इस बार वोट दे रही है. कुछ पार्टियों का खास जोर आप मिलेनियल ही हैं. इसी तरह एक बड़ा समूह है जो 1992 के बाद पैदा हुआ है. वह भी लगभग 27 साल का हो चुका है. यानी शहरी भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा इन 27 सालों में दुनिया में आया है. आप सभी जोश और उम्मीदों से भरे नौजवान हैं.
जब आपने आँखें खोलीं तो ज्यादातर को यह शहरी दुनिया वैसी ही नहीं मिली, जैसी आपके पुरखों को मिली थी. खासतौर पर बेहतर जिंदगी के लिए सरकारी सुविधाओं और मौकों के मामले में आप शहरी युवा अपने पुरखों से बेहतर हालत में थे. यकीन न हो तो कहीं और जाने की जरूरत नहीं है. आप अपने घर में ही पता कर सकते हैं.
मगर आपको अलग–अलग जरिए से पता क्या चल रहा है कि यह सब झूठ है. जो हुआ वह सन 2014 के बाद हुआ. आजादी के सत्तर साल में कुछ नहीं हुआ था. आप इस पर यकीन कर रहे हैं. तब ही तो बेधड़क फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, टिक–टॉक पर 2014 से पहले क्या हुआ था, वाले संदेश बेधड़क भेजते / फॉरवर्ड करते हैं.
नौजवान दोस्तो, क्या था, क्या नहीं… क्या हुआ या क्या नहीं: आज की तारीख में जानना बहुत कठिन नहीं है. हाँ, बशर्ते आप जानने की ख्वाहिश रखते हैं. लेकिन जवानी तो जिज्ञासाओं से जूझने का ही नाम है. ज्ञान हासिल करने की तड़प ही जवानी है. सुना ही होगा कि फाँसी पर जाने से चंद मिनट पहले तक नौजवान भगत सिंह पढ़ ही रहे थे. खैर. आइए थोड़ा मिलकर देखते हैं कि 2014 से पहले क्या नहीं था?
लोकतंत्र था या नहीं
मित्रो, हम चाहे जितनी आलोचना कर लें, अगर इमर्जेंसी के ढाई साल छोड़ दें, तो भारत का लोकतंत्र बिना रुके 70 साल से चल रहा है. दुनिया इस लोकतंत्र का लोहा मानती है. भारत के साथ या भारत के बाद आज़ाद हुए किसी मुल्क में ऐसा लोकतंत्र शायद ही है. अपने पड़ोस में तो ऐसा कहीं नहीं रहा है. पंचायत से लेकर लोकसभा तक चुनाव होते हैं और लोगों की भागीदारी से होते हैं. चुनाव के लिहाज से हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं. यह 2014 की देन नहीं है. इसी लोकतंत्र की वजह से कोई गरीब, कोई किसान, कोई अल्पसंख्यक, कोई पिछड़ा इस मुल्क का पहला सेवक बनता रहा है.
भारत की प्रगति तो अभी शुरू हुई है न
नौजवान साथियो, चाहे कोई मुल्क हो या हममें से कोई शख्स, किसी की आजादी का बड़ा आधार होता है कि वह खुद के पैरों पर कितना मजबूती से खड़ा है. दुनिया में पिछले दिनों मंदी आयी थी. कई देशों में तबाही लायी थी. भारत उस मंदी को किसी तरह झेल गया. यह 2014 से पहले की बात है. क्यों और कैसे हुआ?
एक उदाहरण काफी है. जिन्हें दुनिया नवरत्न कम्पिनयों के रूप में जानती है, वे सब इसके एक मजबूत आधार थे. इनमें से एक भी नवरत्न कम्पनी 2014 के बाद नहीं बनी है. है न? कई शहर जिन्हें हम सिर्फ इसलिए जानते हैं कि वहाँ कुछ उद्योग लगे हैं, वे सब कब की हैं?
हम अगर वाकई सत्य की तलाश में हैं तो हमें पता करना चाहिए, एचएएल, एचईसी, एनटीपीसी, सेल, ओएनजीसी, थर्मल पावर कार्पोरेशन… जैसी अनेक कम्पनियाँ, इनके नये और पुराने अवतार कैसे और कब बने? सामाजिक और वैज्ञानिक शोध में लगे ढेर संस्थान कब अस्तित्व में आये? हाँ, इतना सत्य है कि यह 2014 के बाद नहीं बने थे.
क्या दिमागदार भारतीय 2014 के पहले थे
हमने परमाणु वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा या विक्रम साराभाई, प्रोफेसर यशपाल जैसों का नाम जरूर सुना होगा. ये क्या थे और क्या कर रहे थे? ये और इन जैसे अनेक भारतीय परमाणु तकनीक, अंतरिक्ष विज्ञान और वैज्ञानिक चेतना के अगुआ थे. इनमें से कोई भी 2014 के बाद यह सब नहीं कर रहा था.
हम नारायण मूर्ति, नंदन निलेकणी, रघुराम राजन, सुंदर पिचाई, सचिन बंसल, बिन्नी बंसल, चेतन भगत, मनोहर पार्रिकर, अमित सिंघल, निकेश अरोड़ा, हर्षा भोगले, अरविंद सुब्रमण्यम, एमवी कामथ… के नाम सुनते रहते हैं. हममें से कई उन जैसा बनने की कोशिश में रहते हैं. इन जैसे हजारों नाम उन आईआईटी या आईआईएम से निकले हैं, जहाँ पढ़ना आप जैसे लाखों भारतीय युवाओं का ख़्वाब होता है. इनमें से किसी ने यह पढ़ाइयां 2014 के बाद नहीं की है. यह सत्य है. दुनिया के सामने भारत की तकनीक और प्रबंधन दिमाग का लोहा मनवाने वाले इन संस्थानों का आधार दशकों पहले रखा गया था.
लेकिन भारत 2014 के बाद विश्वगुरु बना
प्रिय नौजवान दोस्तो, क्या आपको तनिक भी अंदाजा है कि आपके आँख खोलने और होश सम्हालने से पहले दुनिया में भारत की हालत क्या रही है? आप को स्कूली किताब या नौकरी की तैयारी के दौरान एक नाम पढ़ने को मिला होगा- गुट निरपेक्ष आंदोलन। इसे छोटे में ‘नाम’ (Non Aligned Movement -NAM) कहा जाता है. यह सवा सौ देशों का आंदोलन रहा है. इसकी नींव में भारत और ‘बदनाम–ए–जमाना’ पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रहे हैं.
तीसरी दुनिया के देशों का यह आंदोलन, दुनिया की दो महाशिक्तयों के बीच गर्व से सर ऊँचा कर खड़ा हुआ था. इसने महाशिक्तयों से बराबरी के स्तर पर बात की. दुनिया को अमन के साथ बराबरी से जीने और विकसित होने का विचार दिया. यह युद्ध करने और थोपे जाने के खिलाफ दुनिया का सबसे बड़ा आंदोलन माना जाता है. यह भारत की विश्वगुरु की भूमिका थी या नहीं?
एक और नाम आप नौजवानों ने जरूर पढ़ा ही होगा– दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) यानी साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (सार्क)। यह हमारे मुल्क के आसपास के देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने और मिलकर काम करने वाला संगठन रहा है. इसे बनाने में भी भारत अगुआ रहा.
ये दोनों संगठन भी 2014 के बाद नहीं बने हैं. इनके बारे में भी जानकारियाँ आसानी से हासिल की जा सकती हैं. तो चाहे दुनिया की बात हो या पड़ोस की बात हो… भारत के पुरखों ने उसका सिर हमेशा ऊँचा रखा. आगे बढ़कर लीडरशिप दी. हाँ, इसे जताने के लिए बेमतलब यहाँ–वहाँ ताल नहीं ठोकते रहे.
तो भारत अब सेहतमंद बना है
नौजवान दोस्तो, क्या आज हम प्लेग, कालाजार, मलेरिया, चेचक से कितने लोगों की मौत की खबर सुनते हैं? कितने लोगों को पोलियो के गिरफ्त में आते हुए पाते हैं? यह कैसे और कब खत्म हो गये?
अमीर हो या गरीब, पहुँच वाला हो या आमजन, हर बीमार और उसके परिवारीजनों की ख्वाहिश होती है कि उसका इलाज भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) या पीजीआई में हो जाता तो अच्छा हो जाता. ये संस्थान इतने भरोसेमंद, नामी कैसे और कब हो गये? इनमें इतने काबिल डॉक्टर कब और कहाँ से आ गये? उन्होंने जिन जगहों पर पढ़ाई की, वे कब बने थे? यह पता करने की बात नहीं है?
आप कहाँ पढ़ना चाहती/चाहते हैं
इन सबको जाने दीजिए… यह सोचिए कि बारहवीं पास हर स्टूडेंट आगे की पढ़ाई कहाँ–कहाँ करना चाहती/ चाहता है? आपमें से अगर किसी को इक्नॉमिक्स या कॉमर्स पढ़नी है, इतिहास या राजनीति शास्त्र पढ़नी है तो पहली पसंद क्या होगी? अगर किसी के पास साधन हैं तो वह कहाँ पढ़ना चाहेगी/चाहेगा?
अगर किसी को डिजायन या फैशन टेक्नॉलॉजी, मैनेजमेंट या कानून पढ़ना, फिल्म तकनीक की जानकारी लेनी है या रंगमंच की बारीकियाँ सीखनी है तो वह कहाँ जाना चाहेगी /चाहेगा? भारत में उसे जो पसंद आयेगा, उनमें से कितने की पैदाइश पाँच साल में हुई है? यह तो हम सब आसानी से पता कर सकते हैं? है न? तो क्यों नहीं करते?
तो डिजिटल भारत 2014 के भारत ही बना न?
साथियो, हमें एक और बात पता करनी चाहिए. आप मिलेनियल यानी स्मार्ट युग के नौजवान हैं. आपकी जिंदगी तो कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन और इंटरनेट के बिना अधूरी है. भारत क्या यह अचानक आया गया? तो हमें पता करना चाहिए न कि जिसे हम दूरसंचार क्रांति और कम्प्यूटर क्रांति कहते हैं या अब जिसे डिजिटल क्रांति कहा जा रहा है, उसकी बुनियाद कब पड़ी और उसमें तेज छलाँग कब लगी? कैसे अचानक भारत के आईटी वाले दुनिया में छा गये? क्या यह सब पिछले पाँच सालों में हुआ? पता करने के लिए दूर जाने की जरूरत नहीं है साथी. गूगल क्यों नहीं करते? देखिए कहीं सर्च एक और ‘बदनाम ए जमाना’ प्रधानमंत्री का नाम तो नहीं बता रहा है?
मगर पाकिस्तान 2014 के बाद ही सीधा हुआ
आजादी के बाद के भारत ने तय किया कि हम अपनी तरफ से किसी देश पर हमला नहीं करेंगे. मगर इतिहास बताता है कि जब युद्ध हम पर थोपा गया तो उसका बहादुरी से सामना भी किया गया. ऐसा नहीं है कि बहादुरी अचानक 2014 के बाद पैदा हो गयी. 1965, 1971 में वही पाकिस्तान हमारे सामने था, आज जिस का नाम लिये बिना हमारे कुछ नेताओं का एक भाषण पूरा नहीं होता. क्या उस दौरान पाकिस्तान, भारत जीत कर चला गया था? वैसे, उस वक्त कौन नेता थे?
तो वाकई कुछ नहीं हुआ
थोड़ा इतिहास की बात भी की जाए. अंग्रेज़ों से आज़ादी की लड़ाई के दौरान भारत में मुख्यत: तीन धाराएँ थीं. दो धाराओं का आधार धार्मिक राष्ट्रवाद था. यानी वे अपने अपने धर्मों के बारे में सोचने में मशगूल थीं. मगर सबसे बड़ी और सबसे मजबूत धारा उन लोगों की थी जो इस मुल्क को सबके लिए एक समान भारत बनाने का ख्वाब लेकर लड़ रहे थे. जब ‘70 साल में कुछ नहीं हुआ का’ – जुमला जोर से कहा जाता है तो असल में इस मजबूत धारा की विरासत को नकारने की कोशिश होती है. हम आज जिस पायदान पर खड़े होकर यह सब कह पाने की हालत में हैं, वह भी इसी धारा की वजह से है. उसने बेआवाजों को बेखौफ आवाज देने की बुनियाद डाली थी.
मगर यह भी सच है
हम गैरबराबरियों के बीच रह रहे हैं. गैरबराबरियों के साथ आगे बढ़ रहे हैं. गैरबराबरियों वाले समाज में रह रहे हैं. मगर पिछले सत्तर साल में इन गैरबराबरियों से लड़ने की लगातार कोशिश होती रही है. आज भी हो रही है. ऐसा कतई नहीं है कि हमारे देश में अब कुछ समस्या रही ही नहीं. मगर इन समस्याओं से लड़ने और भारत गढ़ने के लिए एक किताब की रचना की गयी. यह किताब संविधान कहलायी. यह भी 2014 के बाद नहीं रची गयी. यह सब ‘बदनाम ए जमाना’ माने गये नेहरू और गांधी ने अकेले नहीं किया. बल्कि उन्होंने सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू, राजकुमारी अम़त कौर और ढेरों लोगों के साथ मिलकर इस नये भारत की मूरत गढ़ने की कोशिश की. बाद में इसमें ढेरों और लोग शिरकत देते गये और अपने हिस्से का काम करते गये. आजादी के हमारे इन्हीं अगुआ दस्ते ने मतभेदों के बावजूद इसे मजहबी राष्ट्र नहीं बनाया. यह धर्मनिरपेक्ष देश बना. देश के सामने जाति, लिंग, धर्म, क्षेत्र, भाषा, पैसे की हैसियत का कोई मूल्य नहीं था. उसके लिए सब समान हैं. उसने बंधुता को मूल्य बनाया. क्या यह मूल्य 2014 के बाद हिफ़ाजत से हैं? इसके बारे में आप नौजवान नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेगा?
…
तो वापस ऊपर के व्हाट्सएप मैसेज पर लौटते हैं.
कॉपी देखने के बाद मित्र पिता तमतमाते हुए घर वापस आये और बेटे को दो थप्पड़ मार के बोले– क्या लिखा अपनी कॉपी में? सब गलत उत्तर थे. ये क्या है? सामान्य ज्ञान और इतिहास की किताब उठा कर देखो क्या लिखा है?
बच्चे ने रोते हुए कहा, पापा मैंने किताब तो पढ़ी थी.
लेकिन मैंने आपको कई बार अंकल लोगों से बात करते और न्यूज़ पर बोलते सुना था. आप बोल रहे थे कि 70 साल से हमारे देश में कुछ भी नहीं हुआ. जो हो रहा है अब हो रहा है. आप ही तो सारी उपलब्धियाँ नरेंद्र मोदी जी के नाम बताते हैं.
मुझे लगा कि किताब की बातें सही नहीं हैं. इसीलिए वह सारे जवाब लिख कर आया.
…
कहीं आप भी अपनी किसी परीक्षा में तो ऐसा लिख कर नहीं आ रहे हैं? कहीं आप भी ऐसा ही तो नहीं मानने लगे हैं? अगर हाँ तो आप एक खतरनाक हालत की ओर बढ़ रहे हैं. झूठ आप पर हावी हो रहा है.
नौजवान साथियो,
कहने को यह चुटकुला है. मगर यही चुटकुला कुछ दिनों बाद हमारे जहन में तथ्य बन कर बस जायेंगे. इतिहास के तथ्य बदलेंगे तो नतीजे हमेशा गलत निकलेंगे. इतिहास बदले नहीं जा सकते. समझे जा सकते हैं. समझने के लिए दिमाग की खिड़कियाँ खोलनी होती हैं. तर्क बुद्धि और वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल करना पड़ता है. आप अपने ज्ञान और जानकारी की कुँजी, ऐसे हाथ में दे रहे हैं, जिनकी नींव झूठ, झूठ और नफरत, नफरत और हिंसा पर टिकी है. आप अपने दिमाग के मालिक खुद बनिये. व्हाटसएप के ज्ञान से आप दुनिया में कहीं गर्व से खड़े नहीं हो पायेंगी पायेंगे. तो देशभक्त बनिए लेकिन अंध राष्ट्रभक्त न बनिए. पढ़िए, तलाश कीजिए, सवाल कीजिए… गाली गलौज न कीजिए. नफरती इंसान न बनिए.