स्टाफ़ रिपोर्टर। Twocircles.net
मीडिया के शोर, विपक्ष द्वारा ज़मीनी मुद्दों से ग़ायब राजनीति और केंद्र एवं राज्य के बीच एक दूसरे के लिए ज़रूरी तालमेल वाली बिहार की शासन व्यवस्था में क्या ऐसी परिस्थितियों की कल्पना आप कर सकते हैं कि आपके ज़मीनी मुद्दों पर बात की जाएगी ? जहाँ आरोप-प्रत्यारोप से ज़मीनी मुद्दों का ग़ायब हो जाना और न पूरा होने वाले घोषणा पत्र को जारी करना आम बात हो गई हो, वहां अगर 200 से ज़्यादा सामाजिक संगठनों द्वारा ज़मीनी मुद्दों के साथ जन घोषणा पत्र जारी कर दिया जाये और जिसे लेकर वो लोग राजनीति गलियारों में जायें तो इस परिस्थिति को आप किस तरह देखेंगे ? और ज़रूरी सवाल ये कि वो राजनीति दल इन ‘जुनूनी’ लोगों को किस तरह देखेंगे ? मामला जो भी हो आगे लेकिन ये स्थिति बड़ी दिलचस्प है ।
दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव के बीच राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र से अलग राज्य के 200 से अधिक सामाजिक संगठनों ने मिल कर जन घोषणा पत्र जारी किया है। जनता के बुनियादी सवालों पर चले 2 माह तक ऑनलाइन संवाद व बैठकों के बाद घोषणा पत्र जारी किया गया। जिसको लेकर अब सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता, राजनीतिक दलों व उनके उम्मीदवारों के बीच जा रहे हैं।
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के केंद्र रहे बिहार में एक बार फिर जनता के असली मुद्दों पर विधानसभा चुनाव में बहस कराने के लिए सामाजिक संगठनों के पहल की सराहना की जा रही है और सराहना होनी भी चाहिए । कहा जा सकता है कि राज्य की सत्ता व प्रमुख विपक्ष में जेपी की राजनीतिक उपज या उनके विरासत के लोग हैं। सामाजिक संगठनों ने इनके सामने ही जन घोषणा पत्र जारी कर जातीय व उन्मादी राजनीति से अलग हटकर लोगों के बुनियादी सवालों पर बहस का प्रारंभ किया है।
संयोजन समिति जो घोषणा पत्र को लेकर बनी है उसका मानना है कि मौजूदा सरकार ने वर्ष 2005 से ही कई महत्वपूर्ण निर्णय और कार्यक्रम बनाए। जैसे भूमि सुधार आयोग, समान शिक्षा प्रणाली आयोग और महादलित आयोग का गठन। इसके साथ ही स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार को लेकर कार्यक्रम बनाए गए लेकिन प्रयासों और कार्यक्रमों को सही तरीके से आगे नहीं ले जाया गया। इसका शासन व्यवस्था और कार्यक्रम का खासकर हाशिए के लोगों की भागीदारी और सरकार को लोकतांत्रिक नियंत्रण की व्यवस्था इत्यादि पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं हुआ। बिहार में आज शिक्षा, खाद्य सुरक्षा कानून और शांति व्यवस्था, स्वास्थ्य, रोजगार कृषि, बाढ़ व आपदा प्रबंधन चिंता का विषय है।
इस हिसाब से एक बार फिर विधानसभा चुनाव एक ऐसा वक्त है जब सभी राजनीतिक दलों व उनके उम्मीदवारों को जनता के सवालों को लागू करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। घोषणा पत्र में कॉमन स्कूल सिस्टम लागू करने, बाढ़ व आपदा के लिए अलग कैडर बनाने, तटबंधों की समीक्षा करने, शहरी परिवहन में पैदल चलने वालों के लिए आईआरसी गाइडलाइन के अनुसार फुटपाथ बनाने व पॉलिसी बनाने, किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी करने, ग्राम सभाओं को मजबूत करने, लापता कोशी पीड़ित विकास को पुनः सक्रिय कर लगान व सेस खत्म करने, जेलों की दशा में सुधार, एस्बेस्टस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने जैसे सवाल शामिल हैं।
जन घोषणा पत्र में प्रवासी मजदूरों के पंजीकरण को अनिवार्य करने समेत उनसे जुड़े सवालों को प्रमुखता से उठाया गया है। महिला अधिकार, दलित अधिकार, स्वास्थ्य सुविधाएं और आपदा तथा संपूर्ण न्याय दिलाने जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई है मौजूदा व्यवस्था व रोजगार के अवसर, जल व स्वच्छता समेत लोगों से जुड़े अन्य मुद्दों को भी जन घोषणा पत्र में शामिल करते हुए राजनीतिक दलों से यह उम्मीद की गई है कि संकट के निदान के लिए वह कार्य अपने घोषणा पत्र में इनको शामिल कराते हुए लागू कराएंगे।
जन घोषणा पत्र को लेकर बनी संयोजन समिति में शामिल रहे महेंद्र यादव का कहना है कि घोषणा पत्र जारी करने के दौरान आयोजित कार्यक्रम में शामिल विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों ने इसे लागू कराने का आश्वासन दिया है।
दूसरी तरफ अब तक का हाल यह रहा है कि राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की घोषणा से लेकर प्रचार के तरीकों में जातीय अंक गणित ही नजर आ रहा है। ऐसे में जन घोषणा पत्र को लेकर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की जताई गई सहमति धरातल पर कितना सही साबित होगी यह समय ही बताएगी।
जन घोषणा पत्र को लेकर बनी संयोजन समिति में शामिल रहे कोशी नवनिर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव का कहना है कि मधेपुरा, सुपौल व मधुबनी के बाढ़ प्रभावित लोगों के पुनर्वास व कोशी तटबंध को लेकर उठते रहे सवाल, कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार के धरातल पर लागू कराने समेत विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए विधानसभा वार उम्मीदवारों का प्रत्याशी मंच कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
सुपौल जिले के विधानसभा क्षेत्र सुपौल में 27 अक्तूबर को, पिपरा में 28 अक्तूबर को व निर्मली में 30 अक्तूबर को प्रत्याशी मंच लगाया जाएगा। इसके अलावा मधुबनी जिले के फुलपरास विधानसभा क्षेत्र में कोसी तटबंध के मुद्दों व मधेपुरा के बिहारीगंज विधानसभा क्षेत्र में आयोजित प्रत्याशी मंच के कार्यक्रम में मक्का किसानों के सवालों पर विशेषकर चर्चा की जाएगी। सहरसा के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र महिषी में भी ऐसे आयोजन विशेषकर किए जाएंगे।
देखना ये दिलचस्प होगा कि हवाई एवं मौसमी बयानों से लबरेज़ रखने वाली राजनीति को ‘एक ही थाली के चट्टे-बट्टे’ राजनीतिज्ञ दल एवं नेतागण ज़मीनी स्तर के इन मुद्दों को किस तरह देखते हैं और बिहार की राजनीति जो कभी ज़मीनी मुद्दों पर होती थी क्या वो उन मुद्दों की तरफ़ लौट पाएगी या नहीं । बहरहाल, ऐसी परिस्थितियों में भी अगर कोई संगठन ऐसे सुझावों एवं मुद्दों के साथ उन मुद्दों पर बहस और उन मुद्दों को चुनाव के लिए मुद्दे बनाने की कोशिश भर भी करता हो तो जनता की नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वो ऐसी पहल पर पहले थोड़ा भरोसा ज़रूर दिखाये ताकि उन पहल करने वाले संगठनों एवं सुस्त राजनीति को आपकी जागरूकता का अंदाज़ा हो सके और समय-समय पर उनसे सवाल भी करे . कहीं ऐसा न हो कि आप केवल हमेशा हर किसी के द्वारा उनके विचारधाराओं में फंसकर इस्तेमाल किये जाते रहें चाहे बात इधर की हो या उधर की.महेंद्र कहते हैं ” सपने होते बहुत हसीन हैं बस उन सपनों में खोकर अपने नागरिक होने का सबूत पीछे मत छोड़ियेगा. सवाल करते रहियेगा”.