मिर्ज़ा शाकिर अली बेग Twocircles.net के लिए
दिल्ली के मुसलमानों की जद्दोजहद जहाँ एक तरफ अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रहती है तो वहीं अब दफन होने के लिए दो ग़ज़ ज़मीन की फिक्र भी इसमें शामिल हो गयी है।
सीलमपुर के वेलकम इलाक़े में रहने वाले रेहान के ज़हन में कब्र को लेकर फिक्र रहती है , रेहान का कहना है कि “वो पिछले 30 सालों दिल्ली में कारोबार कर रहे हैं और पूरी तरह से यहीं बस चुके हैं, अपना घर और कारोबार सब कुछ है लेकिन ङर इस बात का हमेशा रहता है कि उनकी मौत के बाद दफन होने के लिए कब्रिस्तान में जगह मिल भी पायेगी या नहीं”
ऐसा नहीं है कि सिर्फ दिल्ली में ही कब्र के लिए जगह मिल पाना एक मुश्किल मसअला बन रहा है बल्कि अब कहीं भी कब्रिस्तान की ज़मीन तंग होती जा रही है,इसके के लिए मोटा मोटी बढ़ती हुई आबादी के लिहाज़ से कब्रिस्तानों की तादाद का न बढ़ना माना जाता रहा है
दिल्ली में कब्र के लिए जगह की कमी के लिए सिर्फ बढ़ती हुई आबादी सिर्फ एक वजह नहीं है ,बल्कि कब्रिस्तान पर किये गये नाजायज़ कब्जे, बेवजह की मुकदमें बाज़ी,वक्फ की ज़मीनों पर अवैध पार्किंग,लचर रख रखाव की व्यवस्था के साथ ही कुछ और भी वजह हैं जो कब्रिस्तान की ज़मीन के मामले को पेचीदा बनाती है।
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने साल 2017 में ह्यूमन डेवलपमेंट सोसाइटी से दिल्ली में मुस्लिम कब्रिस्तान और स्थिति पर एक स्टडी करवायी,इस अध्ययन में जो स्थिति निकल कर सामने आयी वो चिंता जनक थी,22 नवंबर 2018 को यह रिपोर्ट दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सौंप दी गयी थी।
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन ङॉ ज़फरूल इस्लाम खान का कहना है कि केजरीवाल सरकार नेे इस रिपोर्ट पर कोई काम नहीं किया है, रिपोर्ट आने के बाद से कब्रिस्तान को लेकर हालात और भी ख़राब हुए हैं इस रिपोर्ट में दिल्ली के कब्रिस्तानों के हालात पर विस्तार से जानकारी दी गयी थी,इस रिपोर्ट में इस बात को भी बताया गया है कि किस किस कब्रिस्तान पर अवैध कब्ज़े हैं साथ ही हालात में सुधार के लिए रिपोर्ट में सुझाव भी दिये गये थे लेकिन उस पर दिल्ली सरकार का रवैया निराशाजनक है।
ङॉ जफरूल इस्लाम खान ने कब्रिस्तान पर अवैध निर्माण पर बात करते हुए कहा कि जहाँ एक तरफ सरकारी विभागों ने कब्रिस्तान की ज़मीन पर कब्ज़ा किया है तो वहीं बङी तादाद में मुसलमानों ने भी कब्रिस्तान की ज़मीन कब्जा की है जो एक बेहद ही अफसोसनाक पहलू है।
ङॉ ज़फरूल इस्लाम का कहना है कि एक तरफ तो केजरीवाल सरकार का रवैया कब्रिस्तानों के मसाइल को सलाम करने को लेकर संजीदा नहीं है वही दूसरी तरफ मुस्लिम समाज भी लापरवाह और गैर जिम्मेदार है ।
वही वक्फ जायदाद और कब्रिस्तान ने मामलों पर काम करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील शाहिद अली का मानना है कि कब्रिस्तान और इस के अलावा अन्य वक्फ जायदाद पर हो रहे अवैध कब्ज़ों के लिए अब तक की सभी सरकारें जिम्मेदार हैं।
एडवोकेट शाहिद अली का कहना है कि अरविंद केजरीवाल के सत्ता में आने के बाद भी वक्फ जायदाद और कब्रिस्तानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है
लाल मस्जिद मामले का हवाला देते हुए शाहिद अली ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि “दिल्ली वक्फ के रिकॉर्ड में लाल मस्जिद और वहां का कब्रिस्तान एक वक्फ संपत्ति है,बावजूद इसके सीआरपीएफ के द्वारा किये गये अतिक्रमण कर अरविंद केजरीवाल सरकार ने एफआईआर तक नहीं की है”।
इसके अलावा शाहिद अली ने दो जनहित याचिकाओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि लगभग कि “1300 वक्फ प्रॉपर्टी जिन पर से कब्ज़ा हटाने को लेकर याचिका ङाली गयी थी, जिस पर दिल्ली सरकार ने आश्वासन दिया था कि दिल्ली वक्फ बोर्ड अपनी जायदाद वापस लेने में सक्षम है बावजूद इसके अब तक कोई भी कदम नहीं उठाया गया जबकि सरकार अगर चाहे तो अवैध कब्ज़ों को हटा सकती है लेकिन सरकार की नीयत ऐसा करने की नहीं है”।
साथ ही एडवोकेट शाहिद अली का मानना है कि “वक्फ बोर्ड की कमेटी का गठन मनोनयन के आधार पर नहीं बल्कि चुनाव के आधार पर होना चाहिए जैसा कि सिख गुरूद्वारा प्रबंधन कमेटी के गठन के लिए होता है
शाहिद अली का मानना है कि इससे वक्फ बोर्ड की जवाबदेही बढ़ेगी और वक्फ जायदाद पर अवैध कब्ज़े के रूकेंगे”।
सरकारी दावों और ज़मीनी हकीकत के बीच बढ़ते फासले की बुनियाद पर इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि मुस्लिम लीडरशिप, सियासी नुमाइंदों ,वक्फ बोर्ड और कब्रिस्तान के मैनेजमेंट से जुड़े लोगों की गैर जिम्मेदार रवैये ने आज मुसलमानों के सामाने बङा मसअला ला कर खड़ा कर दिया है।