बवाना की झुग्गियों में आग ‘राख’ के साथ छोड़ गई कई सवाल

तन्वी सुमन। Twocircles.net

भारत के बड़े शहरों में आए दिन झुग्गी झोपड़ी में आग लगने की खबर आती रहती है। हर बार अधिकारियों का एक ही जवाब रहता है कि आग की कारणों का पता लगाया जा रहा, मगर कुछ दिनों के बाद खबरें शाम के धुंधलके की में खो सी जाती हैं। बस रह जाती हैं बेघर लोगों की तकलीफें और घर जलने का दर्द। 


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अभी कुछ दिनों पहले 30 मार्च को दिल्ली के बवाना में आग लगने से 60 झुग्गी झोपड़ी राख में तब्दील हो गईं। एक अनुमान के अनुसार जली हुई झुग्गिओं की संख्या 60 से 100 के बीच थी। पिछले महीने के मंगलवार को अधिकारियों के अनुसार  दिल्ली के बवाना में झुग्गी झोपड़ी में आग लगने से लगभग 60 झोपड़ियां जल गईं थी। 15 गाड़ी यहां आग बुझाने पहुंची मगर न झुग्गी बच सकी और उनके अंदर के जरूरी सामान और कपड़े।

सरकारी अधिकारियों ने इस पर कहा कि उन्हें किसी भी व्यक्ति के घायल होने की सूचना नहीं मिली थी। दमकल विभाग के अनुसार, बवाना में जेजे कॉलोनी में आग लगने की कॉल रात 12.35 बजे के आसपास मिली जिसके बाद 15 फायर टेंडरों को घटनास्थल पर ले जाया गया।

बताया गया कि इलाके में खड़ी एक ऑटोरिक्शा और बाइक में भी आग लग गई थी। दोपहर 2 बजे तक आग की लपटें बहुत ज्यादा भड़की थीं। अधिकारियों ने आगे कहा कि आग के कारणों का पता लगाया जा रहा है। मगर इसके बाद इस घटना की कोई जानकारी प्रकासित नहीं हुई। 

स्थानीय लोगो के मुताबिक बाहरी दिल्ली के बवाना में आग लगने से लगभग 100 झुग्गियाँ झुलस गईं। दमकल विभाग ने कहा कि उन्हें रविवार को लगभग 12: 46 बजे एक कॉल आया, जिसके बाद 15 फायर टेंडरों को घटनास्थल पर भेजा गया। कोई भी व्यक्ति इस घटना में घायल नहीं हुआ। बाद में शाम को बवाना से एक और आग लगने की सूचना मिली, जहां एक ट्रांसफार्मर में आग लग गई।

कुछ इसी तरह से पिछले साल दिल्ली के तुगलकाबाद में भयानक आग लगी थी जिसकी वजह से 1500 झुग्गियाँ जल कर राख हो गईं। द पॉलिसी टाइम्स पोर्टल के अनुसार पिछले साल 26 मई, 2020 को दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के तुगलकाबाद इलाके की झुग्गियों में सोमवार और मंगलवार के  दरमियानी रात करीब 12:50 बजे आग लगने से लगभग 1500 झुग्गियाँ  झुलस गए और सैकड़ों लोग बेघर हो गए। उस वक़्त भी अधिकारियों के अनुसार बड़े पैमाने पर आग के पीछे का कारण स्पष्ट नहीं हुआ था, लेकिन एक आग अधिकारी ने इस बात पर संदेह जताया था कि यह आग गैस सिलेंडर विस्फोट की घटना हो सकती है। दक्षिणी दिल्ली जोन के उप मुख्य अग्निशमन अधिकारी एसएस तुली ने तब कहा था कि, “स्थिति अब नियंत्रण में है और आग के पीछे का कारण जांच का विषय है, हालांकि यह गैस सिलेंडर विस्फोट की कुछ घटनाएं हैं।”

दिल्ली हाउज़िंग एण्ड अर्बन डेवलपमेंट के प्लानिंग डिपार्ट्मन्ट की डेटा के आंकड़ों के अनुसार-  

लगभग 74.46% स्लम आवासीय क्षेत्रों से घिरा हुआ है, 3.36% औद्योगिक क्षेत्रों से, 0.66% वाणिज्यिक क्षेत्रों द्वारा और बाकी अन्य प्रकार के क्षेत्रों से घिरा हुआ है। 54.91% मलिन बस्तियाँ पक्की संरचना से बनी हैं, 29.47% अर्ध पक्की और केवल 15.62% मलिन बस्तियों में कच्ची संरचना थी।

अर्बन स्लम के 2015 के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में –

लगभग 10.20 लाख घरों के साथ 6343 झुग्गियों का शहरी दिल्ली में होने का अनुमान है। इन मलिन बस्तियों में प्रति व्यक्ति औसतन 161 घर पाए गए।

लगभग 90% झुग्गियों को सार्वजनिक भूमि पर बनाया गया था, जिनके स्वामित्व में ज्यादातर  स्थानीय निकाय (46%), रेलवे (28%) और राज्य सरकार (16%) थे।

16.19% मलिन बस्तियां नाले/नाले के चारों ओर खड़ी हो गई हैं तथा रेलवे लाइनों के साथ 27.64% बस्तियां हैं, खुले में लगभग 27.73% तथा अन्य स्थानों जैसे की पार्क के किनारे 28% मलिन बस्तियाँ बसी हुई हैं।

लगभग 74.46% झुग्गियां आवासीय क्षेत्रों से घिरी हुई हैं, 3.36% औद्योगिक क्षेत्र, 0.66% वाणिज्यिक क्षेत्रों से घिरी हुई हैं।

86.50% मलिन बस्तियों में  पीने के पानी का प्रमुख स्रोत या तो नल है या फिर हैंडपंप।

22% मलिन बस्तियों में सेप्टिक टैंक/फ्लश प्रकार के शौचालय की कोई सुविधा शौचालय की कोई सुविधा नहीं है।

भूमिगत सीवरेज केवल 16.30% मलिन बस्तियों में मौजूद है।

लगभग 9.30% झुग्गियां आमतौर पर जल जमाव से प्रभावित होती हैं (मानसून के दौरान स्लम के साथ-साथ अप्रोच रोड भी)।

अब सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार झुग्गी झोपड़ी में अपनी ज़िंदगी बसर कर रहे लोगों की तरफ किसी का ध्यान क्यूँ नहीं जाता है। क्यूँ झुग्गी झोपड़ी वाली उसी वक़्त खबरों में आते हैं जब कभी सरकार इसे गिराने का आदेश देती है या फिर जब कभी इन झुग्गियों में आग लग जाती है। बेघर हुए लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। गरीबी की मार झेल रहे इन लोगों के पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिसके जरिए इनकी आवाज़ लोगों तक पहुंचाई जा सके। 

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