आकिल हुसैन। Two circles.net
मुस्लिम समाज में उलेमाओं की पहल धीरे धीरे रंग लाने लगी है। उलेमाओं और मुस्लिम समाज के जिम्मेदारों द्वारा चलाई गई सादगी से निकाह मुहिम का बड़ा असर पड़ा है। शादी में दिखावे और तामझाम पर अंकुश लगाने के उलेमाओं के फैसले के मद्देनजर अब लोग निकाह के इंतजाम मस्जिदों में करने लगे है। हिंदी दैनिक समाचार पत्र हिंदुस्तान में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य संगठनों द्वारा चलाये गए अभियान के परिणामस्वरूप कानपुर में इस वर्ष 45 प्रतिशत निकाह़ मस्जिदों में हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष लगभग हज़ार से 7 हज़ार निकाह़ मस्जिदों में हुए और साथ ही दहेज के लेन-देन में भी कमी आई है।
देशभर में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई मुस्लिम संगठन मुस्लिम शादियों को कम खर्चीला और सादगी भरा बनाने के लिए बड़े स्तर पर ‘आसान निकाह़ मुहिम’ अभियान चला रहे हैं। इसी क्रम में यूपी के कानपुर में भी स्थानीय स्तर पर सुन्नी उलमा काउंसिल ने बड़े स्तर पर अभियान चलाया था और मुस्लिम समाज को जागरूक किया था कि शादियों को आसान बनाएं, शादियों में फिजूलखर्ची से परहेज़ करें और दहेज के लेन-देन पर भी रोक लगाएं।
इस अभियान का कानपुर में सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हिंदी दैनिक अखबार हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार कानपुर में इस वर्ष 45 फीसदी निकाह मस्ज़िद में हुए हैं और निकाह से जुड़ी रस्मों में भी भारी गिरावट आई हैं। इसके साथ ही दहेज के लेन-देन में भी कमी है। रिपोर्ट के अनुसार सितंबर माह के बाद मस्जिद में निकाह करने में तेज़ी आई हैं। ‘आसान निकाह़ मुहिम’ अभियान से हो रहें सकारात्मक बदलाव से उलेमाओं ने खुशी जताई है।
रिपोर्ट के अनुसार मस्जिदों में दो तरह के निकाह हो रहे हैं। एक तो वह जो सादगी से शादी की तहरीक में शामिल हैं और दूसरे वह जिनके यहां शाम को समारोह का आयोजन हो रहा है लेकिन निकाह दिन में ही मस्जिद में कुछ लोगों की मौजूदगी में पढ़वा लिए जाते हैं। दोनों ही तरह के निकाह की संख्या वर्ष 2019 के मुकाबले 2021 में तेजी से बढ़ी है। इस्लामिक माह रबी उल अव्वल या ईद में शहर में औसतन 13-15 हजार निकाह होते हैं। इस आधार पर सहालग में छह से सात हजार निकाह मस्जिदों में पढ़ाए गए हैं।
कानपुर जाजमऊ के शहरकाजी मौलाना मुश्ताक मुशाहिदी का कहना है कि कानपुर में एक शादी में जब से फिजूल खर्ची पर निकाह पढ़ाने से इनकार किया तब से काफी बदलाव आया है। बैंड, आतिशबाजी में कुछ कमी आई है। बेतहाशा दहेज, दहेज का दिखावा करना जैसी बातें भी कम हुई हैं। पूरे समाज में एक साथ बदलाव नहीं आ सकता। कोशिश जारी है। उन्होंने कहा कि पूरी तरह कामयाबी तब मिलेंगी जब हर निकाह मस्जिद और सादगी के साथ होगा।
सुन्नी उलमा काउंसिल के महामंत्री हाजी मोहम्मद सलीम का कहना है कि अच्छी बात यह है कि सभी शहर काजी इस मुहिम को अपने-अपने स्तर पर महत्व दे रहे हैं। अब बिरादरियों के बीच जाकर सादगी से निकाह का पैगाम देना है। बिरादरियों में इसकी शुरुआत हुई तो वर्ष 2022 के आखिर तक सभी निकाह मस्जिदों में होना मुमकिन हो सकता है।
फतेहपुर के शहर क़ाज़ी कारी फरीद्उद्दीन बताते हैं कि कुछ दिन पहले एक शादी में डीजे चल रहें थे वहां पर इमाम ने निकाह पढ़ाने से मना कर दिया था क्योंकि शादी में नाच-गाना शरियत में मना हैं। उन्होंने कहा कि फिजूलखर्ची और निकाह को आसान बनाने की कवायद अब धीरे धीरे मुस्लिम समाज में देखने को मिल रही है।
उन्होंने कहा कि निकाह मस्जिदों में करें ताकि लड़की पक्ष पर बोझ न पड़े। उन्होंने कहा कि अच्छा निकाह वही है, जिसमें खर्च कम हो। कारी फरीद्उद्दीन ने कहा कि हमें अपने घर से ही बदलाव की शुरुआत करनी चाहिए जिससे गैर शरई रस्मों का खात्मा किया जा सके। उन्होंने कहा कि हमें किसी की परवाह किए बिना ही हक व सच के रास्ते पर चलना चाहिए।
इसी वर्ष गुजरात में दहेज के चलते ससुराल पक्ष के परेशान करने के बाद आयशा नामक लड़की ने साबरमती नदी में कूदकर खुदकुशी कर ली थी। आयशा की खुदकुशी का वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुआ था। इसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने निकाह को आसान बनाने के लिए मुसलमानों को कई हिदायतें दी थी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने निकाह को लेकर मुसलमानों के लिए नसीहतें जारी की थी। जिनमें शादियों को सादगी से करने पर जोर दिया गया था, इसके अलावा बोर्ड ने दहेज, बैंड बाजा, फिजूलखर्ची जैसी चीजों से परहेज करने के लिए कहा था।