आकिल हुसैन।Twocircles.net
अमेरिका के सबसे बड़े पुलित्जर पुरस्कार 2022 के विजेताओं की घोषणा सोमवार को कर दी गई। इस वर्ष चार भारतीय पत्रकारों को पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा हुई है जिसमें रॉयटर्स के दिवंगत पत्रकार दानिश सिद्दीकी का नाम भी शामिल हैं। दिवंगत दानिश सिद्दीकी के अलावा भारतीय पत्रकारों मेंअदनान आबिदी, सना इरशाद मट्टू और अमित दवे का नाम शामिल हैं। भारत में कोविड से हुई मौतों की तस्वीरों के लिए पुलित्जर से सम्मानित किया गया हैं। दानिश सिद्दीकी की पिछले साल अफगानिस्तान और तालिबान के बीच संघर्ष को कवर करते हुए मौत हो गई थी।
पत्रकारिता के क्षेत्र में पुलित्जर पुरस्कार को पत्रकारिता का सर्वोच्च पुरस्कार माना जाता है। यह पुरस्कार मूल रूप से हंगरी के रहने वाले न्यूज़ पेपर पब्लिशर जोसेफ पुलित्जर के नाम पर दिया जाता है। सोमवार को पुलित्जर पुरस्कार 2022 की घोषणा हुई। रॉयटर्स के दिवंगत पत्रकार दानिश सिद्दीकी को भी ‘फीचर फोटोग्राफी श्रेणी’ में प्रतिष्ठित पुलित्ज़र पुरस्कार 2022 मरणोपरांत सम्मानित किया जाएगा। दिवंगत दानिश को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत में कोविड के समय ली गई फोटोज के लिए और बहादुरी के लिए सम्मानित किया गया है।
दिवंगत दानिश ने यह प्रतिष्ठित पुरस्कार दूसरी बार जीता है। इससे पहले 2018 में रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या पर कवरेज के लिए रॉयटर्स टीम के हिस्से के रूप में उन्हें इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अपनी तस्वीरों के माध्यम से दानिश ने म्यामांर के रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या को दिखाया था। उस समय भी दानिश मुश्किल हालातों में कवरेज करने गए थे।
दिवंगत दानिश ने अफगानिस्तान संघर्ष, हांगकांग विरोध और एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप की अन्य प्रमुख घटनाओं को व्यापक रूप से कवर किया था। कोरोना महामारी के दौरान खींची गई दानिश की तस्वीरें दिल्ली के अस्पतालों और ऑक्सीज़न बेड व इलाज के अभाव में भटकते लोगों के दर्द बयां करती हैं।
दिल्ली में दानिश के द्वारा खींची गई तस्वीरों की खूब चर्चा हुई थी जिसमें लॉकडाउन के वक्त पैदल जाते मज़दूरों की तस्वीरें, दिल्ली दंगें के दौरान धार्मिक आधार पर दो पक्षों के बीच हुई हिंसा की तस्वीर, जामिया के छात्रों पर एक युवक द्वारा पिस्तौल से फायरिंग करने की तस्वीर, सीमापुरी के श्मशानघाट पर दानिश के द्वारा लिया गया एरियल शॉट लोगों के बीच खास चर्चा का विषय बना था।
पिछले वर्ष 16 जुलाई को अफगानिस्तान के कंधार में तालिबानियों और अफगानिस्तान की सेना की मुठभेड़ के दौरान फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की मौत हो गई थी। अफगान सेना स्पिन बोल्डक के मुख्य बाजार इलाके पर कब्जा करने के लिए लड़ रही थी, इसी दौरान दानिश गोली का शिकार हो गए थे। दानिश की मृत्यु के बाद तालिबान पर उनकी हत्या करने का आरोप लगा था था।
दानिश सिद्दीकी दिल्ली के रहने वाले थे। उनके पिता प्रोफेसर अख़्तर सिद्दीकी जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके हैं। दिवंगत दानिश को बचपन से ही फोटोग्राफी का शौक था। दानिश ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया था। 2007 में उन्होंने जामिया के मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर से मास कम्युनिकेशन की डिग्री ली थी। टेलीविजन में कुछ दिन पत्रकारिता करने के बाद दानिश 2011 से रॉयटर्स के साथ एक फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर काम कर रहे थे।
दानिश सिद्दीकी को मरणोपरांत पुलित्ज़र अवार्ड से सम्मानित करें जाने पर कई पत्रकारों और प्रेस क्लब ने उन्हें श्रद्धांजलि पेश की है। वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी लिखते हैं कि, ” मरहूम फ़ोटो-पत्रकार दानिश सिद्दीक़ी को मरणोपरांत सही, एक और पुलित्ज़र अवार्ड से नवाज़ा गया। कोरोना की मार में शासन की काहिली और लाशों के अम्बार के बीच उन्होंने हक़ीक़त को अपनी तसवीरों में कितना बख़ूबी बयान किया था। एक जाँबाज़ और माहिर छविकार को स्मृतिनमन।”