आकिल हुसैन। Two circles.net
आज एक उत्साही और जांबाज़ पत्रकार दानिश सिद्दीकी की जिंदगी का सफ़र पूरा हुए एक साल हो गया है। 16 जुलाई 2021 को पुलित्जर विजेता फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी अपने कर्तव्य के मोर्चे पर अफगानिस्तान में शहीद हुए थे। दानिश सिद्दीकी रॉयटर्स के लिए फ़ोटो पत्रकारिता करते थे। दानिश पिछले वर्ष अफगानिस्तान और तालिबान के बीच हुए युद्ध को कवर करने के लिए गए हुए थे। जहां कंधार में तालिबानियों और अफगानिस्तान की सेना की मुठभेड़ के बीच दानिश गोली का शिकार हो गए थे। दानिश की मृत्यु के बाद तालिबान पर उनकी हत्या करने का आरोप लगा था।
रॉयटर्स के दिवंगत पत्रकार दानिश सिद्दीकी का नाम दो बार पुलित्जर पुरस्कार पाने वालों में शामिल है। दानिश को इस वर्ष भी पुलित्ज़र पुरस्कार मरणोपरांत सम्मानित किया गया है। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत में कोविड के समय ली गई फोटोज के लिए और बहादुरी के लिए उन्हें दिया गया था। इससे पहले 2018 में रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या पर कवरेज के लिए रॉयटर्स टीम के हिस्से के रूप में उन्हें इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अपनी तस्वीरों के माध्यम से दानिश ने म्यामांर के रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या को दिखाया था। उस समय भी दानिश मुश्किल हालातों में कवरेज करने गए थे।
दानिश सिद्दीकी को मरणोपरांत रेड इंक ‘जर्नलिस्ट ऑफ द ईयर’ अवॉर्ड 2020 भी दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना ने अवॉर्ड देते हुए कहा था कि दानिश एक ‘जादुई आँखों’ वाले व्यक्ति थे और उन्हें इस युग के अग्रणी फोटो-पत्रकारों में से एक माना जाता था।
दिवंगत दानिश ने अफगानिस्तान संघर्ष, हांगकांग विरोध और एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप की अन्य प्रमुख घटनाओं को व्यापक रूप से कवर किया था। कोरोना महामारी के दौरान खींची गई दानिश की तस्वीरें दिल्ली के अस्पतालों और ऑक्सीज़न बेड व इलाज के अभाव में भटकते लोगों के दर्द बयां करती हैं।
दिल्ली में दानिश के द्वारा खींची गई तस्वीरों की खूब चर्चा हुई थी जिसमें लॉकडाउन के वक्त पैदल जाते मज़दूरों की तस्वीरें, दिल्ली दंगें के दौरान धार्मिक आधार पर दो पक्षों के बीच हुई हिंसा की तस्वीर, जामिया के छात्रों पर एक युवक द्वारा पिस्तौल से फायरिंग करने की तस्वीर, सीमापुरी के श्मशानघाट पर दानिश के द्वारा लिया गया एरियल शॉट लोगों के बीच खास चर्चा का विषय बना था।
दानिश सिद्दीकी दिल्ली के रहने वाले थे। उनके पिता प्रोफेसर अख़्तर सिद्दीकी जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके हैं। दिवंगत दानिश को बचपन से ही फोटोग्राफी का शौक था। दानिश ने जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया था। 2007 में उन्होंने जामिया के मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर से मास कम्युनिकेशन की डिग्री ली थी। टेलीविजन में कुछ दिन पत्रकारिता करने के बाद दानिश 2011 से रॉयटर्स के साथ एक फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर काम कर रहे थे। दानिश रोहिंग्या शरणार्थियों की रिपोर्टिंग करके चर्चा में आए थे।
आज दानिश दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की कब्रिस्तान में दफ़न हैं। प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी अपने बेटे दानिश को याद करते हुए कहते हैं कि,” वो बहुत शांत और मृदु व्यवहार और साहसी था।”
अख्तर सिद्दीकी कहते हैं कि,”बचपन से वो बहुत जुनूनी और ऊर्जावान था, वो अगर किसी बात पर एक बार अपना मन बना लेता था तो उसे जरूर पूरा करता था।”
दानिश के काम के बारे में अख्तर सिद्दीकी कहते हैं कि, “शुरुआत में वो उससे कहते थे कि ऐसी नौकरी का क्या फायदा जहां ख़तरा बना रहें, लेकिन वो कहता था कि वो सुरक्षित हैं।” अख्तर सिद्दीकी कहते हैं कि धीरे धीरे परिवार को उसके काम की आदत पड़ गई थी।
दानिश सिद्दीकी ने 2015 में रॉयटर्स के लिए मुख्य फोटोग्राफर के रूप में नेपाल भूकंप को कवर किया था। फिर 2016 में रोहिंग्या नरसंहार और म्यांमार सेना द्वारा रोहिंग्या के शरणार्थी संकट को कवर किया था। 2019 में दानिश हांगकांग गए और वहां के विरोध प्रदर्शन को तस्वीरों में कैद किया था। फिर 2020 में दिल्ली दंगों को भी कवर किया, दानिश द्वारा दिल्ली दंगों के दौरान कैद की गईं कई तस्वीरें चर्चा का विषय बनी थी।
दानिश की मृत्यु के एक साल पर पत्रकार आरज़ू सिद्दीकी उन्हें याद करते हुए कहते हैं कि,’ वो बहुत प्रतिभाशाली था और अपने काम के प्रति समर्पित था, उसको चुनौतियों का सामना करना अच्छा लगता था। कोरोना, दिल्ली दंगों के दौरान चुनौतियों और ख़तरे के बावजूद उसने तस्वीरें ली थी।’
जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही फौजिया ख़ान कहती हैं कि,’ दानिश एक पत्रकार के तौर पर हर पत्रकारिता के छात्र को पसन्द होंगे। उनके जोख़िम भरें काम हर पत्रकार के लिए एक प्रेरणा के तौर पर हैं।’