आकिल हुसैन । Twocircles.net
मुरादाबाद के छजलैट थाना क्षेत्र का दूल्हेपुर गांव चर्चा में हैं। दूल्हेपुर गांव की आबादी लगभग 500 की हैं जिसमें से मुस्लिमों की आबादी दो सौ के लगभग है और उतनी ही आबादी हिंदूओं की भी हैं। गांव में न ही कोई मंदिर है न ही मस्जिद। गांव में मस्ज़िद न होने के चलते कुछ मुस्लिमों ने इकट्ठा होकर एक घर में नमाज़ अदा कर ली जिसके बाद मुरादाबाद पुलिस ने उनपर मुकदमा दर्ज किया। जो मुरादाबाद पुलिस कल तक कह रहीं थी कि शत्रुता, घृणा, वैमनष्यता की भावना उत्पन्न करने के उद्देश्य से सामूहिक रूप से जगह बदल-बदलकर नमाज अदा की जा रही है, आज वहीं मुरादाबाद पुलिस इस पूरे मामले को गलत बता रही है। आखिर सवाल उठता है कि पुलिस ने जो कार्रवाई की वह किस आधार पर की या किसी दबाव में।
दूल्हेपुर गांव के ही चंद्रपाल सिंह छजलैट थाना में तहरीर दी कि गांव में कोई मस्जिद या मदरसा नहीं है। कभी सामूहिक नमाज भी नहीं पढ़ी गई है। मगर 24 अगस्त को अज्ञात मौलवी ने गांव में अनवार और मुस्तकीम के घरों में सामूहिक नमाज अदा कराई। इस तरह सामूहिक नमाज पढ़कर गांव में शत्रुता, घृणा और वैमनस्यता की भावनाएं पैदा करने का काम किया जा रहा है।
मुरादाबाद पुलिस ने एक नमाज़ अदा करते हुए लगभग तीन महीने पुरानी वीडियो के आधार पर दूल्हेपुर के रहने वाले वाहिद, अनवार, मुस्तकीम, सईद, जाकिर, अलीशेर, रमजानी, मुस्लिम, मोहम्मद अली, ईदा, हाकमअली, हनीफ, शौकीन, सलीम, नूरा और 11 अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 505(2) के तहत केस दर्ज किया। मुरादाबाद पुलिस ने आरोप लगाया कि समाज में घृणा और वैमनस्यता बढ़ाने के मकसद से यह नमाज पढ़ी गई थी। इसके अलावा पुलिस ने यह भी दावा किया कि प्रारंभिक जांच करने के बाद ही मुकदमा दर्ज किया गया है।
अब पुलिस का कहना है कि जांच में विवेचना में आरोप प्रमाणित नहीं होने पर केस को खारिज़ कर दिया गया। जो पुलिस कल तक दावा कर रहीं थी कि जांच के बाद ही मुकदमा दर्ज किया गया है आज वहीं पुलिस मुकदमे को गलत बता रहीं हैं।
आज मंगलवार को मुरादाबाद एसएसपी हेमंत कुटियाल ने मीडिया से बताया कि, ‘ग्राम दूल्हेपुर में वादी चन्द्रपाल आदि ने सामूहिक नमाज पढ़ने को लेकर पुलिस स्टेशन छजलैट पर मुकदमा पंजीकृत कराया था, विवेचनोपरान्त घटना का प्रमाणित होना नहीं पाया गया।अतः विवेचना को मय जुर्म खारिजा रिपोर्ट समाप्त किया गया, शेष विधिक कार्यवाही तद्नुसार सम्पन्न की जायेगी।’
दूल्हेपुर गांव के मुस्तकीम के मुताबिक गांव में मस्ज़िद न होने के चलते घर में सामूहिक नमाज़ काफ़ी पहले से होती आ रही है। तीन जून को गांव के हिंदू वर्ग के कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति जताई थी, नमाज़ अदा करते हुए वीडियो भी बना ली थी और तब भी थाने में शिकायत की थी। उसके बाद पुलिस और अधिकारियों ने गांव में नमाज़ बंद करवा दी थी। इसके बाद सामूहिक नमाज़ अदा करना बंद कर दिया था। पुरानी वीडियो को 24 अगस्त का बताकर रिपोर्ट दर्ज की गई।
मुस्तकीम के अनुसार उनके घर में 6-7 मर्द हैं, क्या वे अब एक साथ घर में नमाज़ भी अदा नहीं कर सकते, यह भी जुर्म हैं अब।
दूल्हेपुर गांव में जिस नमाज़ जगह नमाज़ अदा की गई थी वो जगह वाहिद सैफी की है। वाहिद सैफी कहते हैं कि कई सालों से उस जगह पर नमाज़ होती आई है। कभी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की, लेकिन कुछ महीने पहले कुछ लोगों ने गांव में नमाज़ अदा करने को एक नई परंपरा की शुरुआत बताते हुए विरोध किया था। तबसे नमाज़ बंद कर दी थी।
गांव के मुस्लिम वर्ग के लोगों के अनुसार दूसरे वर्ग के लोगों ने तीन जून की नमाज़ का वीडियो 24 अगस्त का बताकर भ्रमित किया है।
मुस्लिम वर्ग का सवाल है कि तीन जून 2022 के बाद कोई सामूहिक नमाज़ नहीं पढ़ी तो फिर उन पर अब एफ़आईआर क्यों दर्ज की गई वहीं गांव के हिन्दू वर्ग का कहना है कि गांव के मुस्लिम लोग इकट्ठा होकर नई परंपरा के तहत घरों में सामूहिक नमाज पढ़ रहे हैं, जो सही नहीं है। हमारा भी गांव में कोई मंदिर नहीं है लिहाजा हम पास के गांव में पूजा करने और जल चढ़ाने जाते हैं। हम कोई नई परंपरा डालना नहीं चाहते।
गांव के लोगों का कहना है कि गांव में कभी कोई विवाद और झगड़ा नहीं रहा। ऐसा पहली बार हुआ है जब गांव के कुछ लोगों ने नमाज़ पर आपत्ति जताई है। दबी ज़बान में गांव वालों का कहना है कि जिन लोगों ने सामूहिक नमाज़ अदा करने पर आपत्ति जताई है वो किसी हिंदूवादी संगठन से जुड़े हुए हैं।नमाज़ियो पर एफआईआर वापस होने पर असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट करते हुए कहा कि, ‘उत्तर प्रदेश पुलिस भीड़ के दबाव में आकर ग़ैर-क़ानूनी FIR दर्ज करना बंद करेगी। उम्मीद है कि लोग अब अपने घरों में बिना किसी परेशानी के नमाज़ अदा कर पाएँगे।’
इससे पहले मुरादाबाद पुलिस की कार्रवाई पर जमकर आलोचना हुईं। इसको अलावा मुरादाबाद पुलिस को फजीहत भी उठानी पड़ी। असदुद्दीन ओवैसी, उमर अब्दुल्ला समेत कई अन्य मुस्लिम नेताओं ने पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल खड़े करें थे। असदुद्दीन ओवैसी के ट्वीट के बाद इस मामले ने तूल पकड़ा था। असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर सरकार और पुलिस पर निशाना साधते हुए कहा था कि, ”क्या अब घरों में भी नमाज पढ़ने के लिए सरकार और पुलिस से इजाजत लेनी पड़ेगी। कब तक मुस्लिमों के साथ देश में दूसरे दर्जे के नागरिकों वाला सलूक किया जाएगा?
असदुद्दीन ओवैसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाते हुए कहा कि, ‘भारत में मुसलमान अब घरों में भी नमाज नहीं पढ़ सकते? क्या अब नमाज पढ़ने के लिए भी हुकूमत/पुलिस से इजाजत लेनी होगी? नरेंद्र मोदी को इसका जवाब देना चाहिए, कब तक मुल्क में मुसलमानों के साथ दूसरे दर्जे के शहरी का सुलूक किया जाएगा।’
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने तंज कसते हुए कहा था कि ,’मुझे यकीन है कि अगर किसी पड़ोसी के यहां 26 दोस्त और रिश्तेदार एक साथ बैठकर हवन करेंगे तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी, दिक्कत सामूहिक रूप से इकट्ठा होने से नहीं है, बल्कि नमाज पढ़ने से है।’
इस पूरे मामले में AIMIM के मुरादाबाद अध्यक्ष एडवोकेट मोहिद फरगानी TwoCircles.net से बताते हैं कि गांव में मस्ज़िद न होने की वजह से उस जगह पर 1980 से नमाज़ हो रहीं हैं। कोरोनावायरस के समय जब सामूहिक नमाज़ पर रोक लगी थी तो यहां पर भी सामूहिक नमाज़ पर रोक लगा दी गई थी। कोरोनावायरस के बाद जब सामूहिक नमाज़ दोबारा शुरू की गई तो इसी वर्ष जून के महीने में गांव के ही कुछ लोगों ने एहतराज़ जताते हुए इसकी शिकायत पुलिस और प्रशासन से की। जिसके बाद लोगों ने यहां पर खुद से नमाज़ अदा करना बंद कर दिया था।
मोहिद फरगानी बताते हैं कि तीन महीने पहले जून में किसी ने नमाज़ अदा करते हुए वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया था। अब फिर उसी पुरानी वीडियो को अभी का बताकर भ्रम फैलाया गया। लेकिन पुलिस की निष्पक्ष जांच में सारे आरोप ग़लत साबित हुए।
मोहिद फरगानी कहते हैं कि देश का संविधान हमें अपने धार्मिक गतिविधियों को पूरा करने की इजाज़त देता है। कुछ लोग समाज में नफ़रत की राजनीति करके देश के समाजिक ताने बाने को तोड़ना चाहता हैं। वे कहते हैं कि मुरादाबाद के कांठ क्षेत्र में अक्सर धार्मिक आधार पर विवाद होता रहता हैं। पुलिस को इस बात की जांच करनी चाहिए कि जब यह विवाद जून में खत्म हो गया था तो अब दोबारा आखिर किस मंशा के तहत उठाया गया और पुराना वीडियो वायरल किया गया।
मुरादाबाद में समाजवादी पार्टी के नेता मसूद उल हसन कहते हैं कि हम अपने घरों में भी नमाज़ अदा नहीं कर सकते मैं पूछना चाहता हूँ की किस क़ानून के तहत पुलिस ने यह द्वेषपूर्ण कार्यवाही की थी। उन्होंने कहा कि ग़लत तहरीर देकर फर्जी मुकदमा दर्ज करवाने पर भी पुलिस को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि बिना जांच पड़ताल के रिपोर्ट दर्ज करने वाले पुलिस विभाग के अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। सच्चाई की हमेशा जीत होती है और यह जांच में साबित भी हों गया, फर्जी मुकदमे में फंसाए गए लोगों को न्याय मिला।