क्या अब एनडीए भी नक्सलवाद के पक्ष में हैं?

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

पटना: बिहार चुनाव में एनडीए के घटक दल ‘हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी फिर एक बार चर्चा में हैं. इस बार उनकी चर्चा नक्सलवाद पर दिए बयान को लेकर चल रहा है.


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दरअसल, जीतनराम मांझी ने शनिवार को इमामगंज से नामांकन भरने पहुंचे. इससे पहले मांझी ने एक सभा को संबोधित किया. इस सभा में मांझी ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अगर बहू-बेटी की इज्ज़त के लिए, ज़मीन की रक्षा करने या फिर गरीबों के साथ ज्यादती के खिलाफ़ किसी को हथियार उठाना पड़ता है और दुनिया उसे नक्सली कहती है, तो फिर सबसे बड़ा नक्सली जीतनराम मांझी है. मांझी यहीं नहीं रूके. अपने इस बयान को आगे बढ़ाते हुए यह भी कह डाला, ‘बड़ा नहीं सबसे पहला नक्सली हूं.’


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अभी मांझी के बयान की विपक्ष ने शायद कोई निन्दा भी नहीं की थी कि उन्होंने इस मुद्दे पर दुबारा से पटना के एयरपोर्ट पर बयान दे डाला. मांझी ने कहा, ‘नक्सली और कोई नहीं बल्कि‍ अपने ही भाई हैं.’

इससे पहले जीतनराम मांझी इस साल22 जनवरी को भी एक बयान नक्सलवाद के पक्ष दे चुके हैं. जिसकी निन्दा भाजपा के तमाम सीनियर लीडरों ने की थी. मांझी ने उस समय स्पष्ट तौर पर कहा था कि नक्सली उनके भाई और बेटे जैसे हैं. उन्हें न्याय नहीं मिला, तो वे नक्सली बन गए. इनमें से कुछ बाहरी हैं, लेकिन अधिकतर स्थानीय लोग ही हैं.

मांझी ने उस समय बिहार के औरंगाबाद नक्सल प्रभावित मदनपुर प्रखंड में नक्सलियों को अपने भाई और बेटे जैसा बताते हुए अधिकारियों और ठेकेदारों पर ग़लत एस्टीमेट बनाने का आरोप भी लगाया था. बल्कि मांझी ने नक्सलियों का बचाव करते हुए यह भी कहा था कि ठेकेदारों से लेवी लेना रंगदारी नहीं है. जो काम 15 हजार रुपये में हो सकता हैं, उससे दोगुनी राशि सरकार से ली जाती है. अगर नक्सली ठेकेदारों से लेवी लेते हैं, तो इसमें हर्ज़ क्या है?

इतना ही नहीं, 5 जनवरी को जीतनराम मांझी ने मुंगेर ज़िला के तारापुर में भी एक ऐसा ही बयान दिया था. बल्कि एक सभा को संबोधित करते हुए मांझी ने यहां तक कह डाला कि वो मुख्यमंत्री बनने से पहले तीन नक्सलियों के साथ मुलाक़ात भी कर चुके हैं. उस बयान में मांझी ने पीएम नरेन्द्र मोदी को भी निशाने पर लिया था और लोगों को भाजपा से सावधान रहने की अपील भी की थी.

मांझी ने कहा था, ‘केंद्र में जब यूपीए की सरकार थी, उस समय बिहार को छह लाख इंदिरा आवास का आवंटन मिला था, लेकिन भाजपा की सरकार ने इसे घटाकर 2 लाख 40 हजार कर दिया. जबकि नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में विकास के नाम पर वोट मांगा था. इनकी कथनी करनी में फ़र्क़ है, इसलिए आप लोग भाजपा से सावधान रहें.’

लेकिन जीतनराम मांझी अब केन्द्र के उसी भाजपा सरकार के साथ हैं. नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ करते थकते नहीं हैं. पर सवाल यह है कि क्या केंद्र की मोदी सरकार को अपने नक्सल विरोधी अभियान को रोककर बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी से बात नहीं करना चाहिए? क्या एनडीए को नक्सलवाद पर अपने विचार को स्पष्ट नहीं करना चाहिए?

बहरहाल, केन्द्र सरकार का नक्सलवाद पर चाहे जो भी विचार हो. प्रधानमंत्री मोदी भले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को नक्सली बताकर निंदा करते रहे हों, लेकिन वो अपने सहयोगी जीतनराम मांझी के नक्सलवाद पर दिए गए बयान की निन्दा शायद ही कर सकें, क्योंकि यहां मामला सियासत की मलाई खाने का है. किसी हाल में हाल में सत्ता पर क़ाबिज़ होने का है.

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