रमज़ान के महीने में फ़ाक़े को मजबूर एक इमाम

अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

दिल्ली: रमज़ान का मुबारक महीना अब अलविदा कहने को तैयार है. रमज़ान के आख़िरी जुमे के गुज़रने के साथ ही लोग ईद की तैयारियों में पूरी तरह से मशग़ूल हो गए हैं. लेकिन गोल मार्केट के कलाली बाग़ मस्जिद के इमाम को यह फ़िक्र सता रही है कि रमज़ान का पूरा महीना फ़ाक़े में तो गुज़र गया, लेकिन ईद की खुशियों का क्या होगा? बच्चों के नए कपड़े कहां से आएंगे?


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Imam Zahidul Islam

कहानी गोल मार्केट के कलाली बाग़ मस्जिद के इमाम ज़ाहिदुल इस्लाम की है. उनका कहना है कि वे दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के इमाम हैं. पिछले 16 सालों से काका नगर की मस्जिद में नमाज़ पढ़ा रहे थे. तब उन्होंने 800 रूपये मासिक आय से इमामत शुरू की थी, लेकिन अब वह कुछ सालों पहले ही बढ़कर 10 हज़ार मासिक तक पहुंच चुका है.

वे बताते हैं किस तरह से 2015 में वे मस्जिद की अंदरूनी राजनीति के शिकार हुए और उनका तबादला गोल मार्केट के कलाली बाग़ मस्जिद में कर दिया गया. तबादले के बाद शुरुआत के दो महीने तक पगार तो मिली, लेकिन उसके बाद बंद हो गई. अब पिछले 11 महीनों से उन्हें कोई पगार नहीं मिली है.

इमाम ज़ाहिदुल इस्लाम पिछले 11 महीनों से काफी परेशान हैं. दो बच्चे ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ते हैं. वहां भले ही उनकी फीस नहीं लगती लेकिन उनके दूसरे खर्च भी होते हैं. वे कहते हैं, ‘घर का किराया भी नहीं दे पा रहा हूं. कई बार मकान मालिक घर खाली करने को बोल चुका है.’

ज़ाहिदुल बताते हैं, ‘मेरे घर के हालात इतने बिगड़ गए हैं कि कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं? महंगाई इतनी बढ़ गई है कि आटा-चावल खरीदना मुश्किल हो गया है. तकरीबन पूरा रमज़ान फाके में गुज़र गया. ये अलग बात है कि कुछ लोगों ने थोड़ी आर्थिक मदद कर दी तो किसी तरह से ज़िन्दगी गुज़र रही है. इन 11 महीनों में कई बार घर से पैसे मंगाने पड़े हैं.’

ज़ाहिदुल इस्लाम दरअसल पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना के रहने वाले हैं, लेकिन पिछले 18 सालों से दिल्ली में रह रहे हैं. इन दिनों हज़रत निज़ामुद्दीन इलाक़े में चार हज़ार के किराए के कमरे में अपने पूरे परिवार समेत अपना गुज़र-बसर कर रहे हैं.

हालांकि ज़ाहिदुल इस्लाम अपने घर के हालात सुधारने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे हैं, जिससे कुछ पैसों की कमाई ज़रूर हो जाती है लेकिन इतने पैसों में पूरा घर चलाना काफी मुश्किल काम है. इसलिए ज़ाहिदुल इस्लाम अब किराये पर ऑटो लेकर चलाने की सोच रहे हैं ताकि घर का खर्च किसी तरह से उठाया जा सके.

ईद का ज़िक्र करते ही उनकी आंखें थोड़ी नम हो जाती हैं. कहते हैं, ‘काश! थोड़ी-बहुत ही सैलरी मिल जाती तो ईद में कम से कम बच्चों के लिए कपड़े खरीद देता. पता नहीं, आगे क्या होगा…’

वे बताते हैं कि अपनी पगार को लेकर दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड की पुरानी चेयरमैन राना सिद्दिक़ी साहिबा से भी कई बार मिल चुके हैं. और अब नए चेयरमैन अमानतुल्लाह खान से भी मिलकर अपनी शिकायत दर्ज करवा चुके हैं. कई दरख्वास्तें दे चुके हैं. लेकिन अभी तक किसी ने कोई सुनवाई नहीं की.

इस संबंध में TwoCircles.net ने दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के वर्तमान चेयरमैन व ओखला के विधायक अमानतुल्लाह खान से बातचीत की. लेकिन उन्होंने बताया कि इस संबंध में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा, ‘लेकिन यदि ऐसा है तो सोमवार को उनसे मिलकर उनके मसले का समाधान निकालूंगा ताकि ईद की खुशियों में वे भी शामिल हो सकें.’

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