By TCN News,
लखनऊ/कानपुर: बीते दिनों कानपुर के भीतरगांव में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाबत एक मुक्त जांच दल ने पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है. इंडियन नेशनल लीग, आमजन मोर्चा, ऑल इंडिया मुस्लिम मशावरत और रिहाई मंच के सदस्यों द्वारा गठित इस संयुक्त व मुक्त जाँच दल का मानना है कि यह घटना साम्प्रदायिक ताक़तों और प्रशासनिक तबके की मिलीभगत का नतीजा है. उन्होंने यह भी कहा कि घटना के एक हफ्ते बाद भी पीड़ितों का एफआईआर दर्ज न होना साबित करता है कि प्रशासन पूरे मामले को दबाने की फ़िराक़ में है.
जांच दल में शामिल सदस्यों ने कहा कि जिस तरह चोरी के एक छोटे से विवाद को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया और गांव में रह रहे 30-32 मुस्लिम परिवारों में से अधिकांश घरों को जिस तरह हजारों की भीड़ द्वारा मुस्लिम विरोधी नारे लगाते हुए आग के हवाले कर दिया गया, इससे यह साबित हो जाता है कि घटना तात्कालिकता के बजाय सोची-समझी साज़िश का नतीजा है. जांच दल के प्रमुख सदस्यों में इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पीसी कुरील, आम जन मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा० बीके सिंह यादव, ऑल इंडिया मुस्लिम मशावरत के इखलाक़ चिश्ती, आईएनएल के कानपुर अध्यक्ष एडवोकेट अशफाक़ गनी खां और रिहाई मंच के सदस्य शाहनवाज आलम व राजीव यादव शामिल थे.
इस संयुक्त जांच दल ने कहा है कि ‘गुड्डू तिवारी और गुड्डू पासी नाम के युवकों द्वारा गाँव के ही एक मुस्लिम परिवार के घर में चोरी करने से घटना की शुरूआत हुई. इस घटना में पुलिस द्वारा आरोपितों के घर से चोरी का सामान भी बरामद कर लिया गया लेकिन बिना किसी कानूनी कार्यवाही के पुलिस ने आरोपितों को छोड़ दिया. इस घटना के ठीक अगले दिन साजिशन यह अफ़वाह फैला दी गयी मुस्लिम समुदाय ने उक्त दोनों युवकों की हत्या कर दी है. इसके साथ ही हज़ारों की भीड़ ने मुस्लिम घरों को आग और ईंट-पत्थर द्वारा क्षति पहुंचाना शुरू कर दिया, जिसमें 20 वर्षीय मुहम्मद एजाज पुत्र मोहम्मद मजीद की जलने से मौके पर ही मौत हो गया. हिंसा की भयावहता को देखते हुए मेहंदी हसन के घर के एक छोटे-से कमरे में 14 लोगों ने पनाह ली, जिसे बाहर से तेल छिड़ककर भीड़ ने आग के हवाले कर दिया और दीवार तोड़कर भाग लोगों ने अपनी जान बचाई. इस हमले में बुरी तरह जल चुकीं ज़ाकरा पत्नी साजिद की बाद में मौत हो गई. अन्य जख्मी कानपुर के हैलेट अस्पताल में भर्ती हैं.’
इस दल ने अपनी जांच में सवाल उठाया है कि सांप्रदायिक हिंसा की पृष्ठभूमि तैयार किये जाने के बाद सुबह मुस्लिम परिवारों पर हमले शुरु हो गए तब खुफिया एजेंसियां क्या कर रही थीं? उन्होंने आगे कहा कि ‘मिश्रित बाजार वाले इलाके में भी सिर्फ मुसलमानों के ही व्यावसायिक प्रतिष्ठान जलाए गए, जिससे साबित होता है कि इन प्रतिष्ठानों को पहले ही चिन्हित कर लिया गया था.’ ज्ञात हो कि इस मामले में हिंदूवादी ताकतों द्वारा लगातार यह मांग की जा रही है कि मुस्लिमों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज हो, जबकि इस पूरी घटना में हिंदू समुदाय से जुड़े लोगों पर कोई हमला या उनकी किसी भी किस्म की क्षति नहीं हुई है. प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए बाज़ार को बंद रखा जा रहा है. जांच दल ने दावा किया है कि यह एक राजनीतिक रणनीति है क्योंकि अभी तक मुस्लिम पीड़ितों की तरफ से एफआईआर दर्ज नहीं कराई गयी है और ऐसा दबाव बनाकर हिंदूवादी संगठन अपने ऊपर दर्ज होने वाले मुकदमों को रोकना चाहते हैं.
सूबे की राजधानी से सटे इस इलाके में किसी भी राज्य मंत्री या बड़े प्रशासनिक अधिकारी का न आना यह ज़ाहिर करता है कि राज्य प्रशासन साम्प्रदायिक सौहार्द्र और कानून व्यवस्था को लेकर कितने आलस्य से भरा हुआ है. जांच दल ने संस्तुति की है कि भय और तमाम आशंकाओं के साये में जी रहे सभी पीड़ितों द्वारा एफआईआर उनके निवास स्थान जाकर पुलिस द्वारा दर्ज कराई जाए. मृतकों के परिजनों को मुआवज़े और किसी एक पारिवारिक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग भी जांच दल ने की है. झूठी अफवाह फैलाकर मामले को इस हद तक पहुंचा देने वाले तत्त्वों पर यथाशीघ्र कानूनी कार्यवाही की जाए, ऐसी मांग जांच दल ने की है. साथ ही साथ जिन हिन्दू परिवारों ने मुस्लिम समुदायों की जान और संपत्ति की रक्षा की, उन्हें पुरस्कृत करने की संस्तुति भी इस जांच दल ने की है.