By TwoCircles.net staff reporter,
आज के पांच…चीनी प्रतिबंधित करवाने पर तुले भाजपा सांसद, क्या सरकार को अपने चुनावी वादों का पुनर्मूल्यांकन करने की ज़रूरत है? भाजपा का सबसे वरिष्ठ नेता बैकफुट पर और आदित्यनाथ क्यों नहीं सम्हाले बनते……यानी भाजपा की मौजूदा कार्यप्रणाली की पड़ताल
1. गिरिराज सिंह बलात्कारी?
केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सोनिया गांधी पर नस्लभेदी बयान देने के साथ उठे बवाल के बाद अपनी गलती के लिए माफ़ी मांग ली थी. लेकिन ‘ज़ुबान से निकली बात और कमान से निकले तीर’ के लिए जो बातें कहावतों में कही गयीं हैं, वे भाजपा के बड़बोले नेताओं पर सही जाकर बैठ रही हैं. ज्ञात हो कि गिरिराज सिंह ने कहा था कि यदि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी किसी नाइजीरियन महिला से शादी करते, तब भी क्या कांग्रेस उस महिला का नेतृत्व स्वीकार करती. कांग्रेस को विरोध करना ही था, तो उसने किया. साथ में नाइजीरिया और उसके करीबी देशों ने भी आपत्ति जताई तो भाजपा की अंतर्राष्ट्रीय किरकिरी हुई. अब ‘इंडियाज़ डॉटर’ नाम की डाक्यूमेंट्री बनाने के बाद भारत सरकार के निशाने पर आ जाने वाली फ़िल्मकार लेज़ली उडविन ने भी गिरिराज सिंह को बलात्कारी करार दे दिया है. ब्रिटिश फ़िल्मकार लेज़ली उडविन ने कहा कि उन्हें गिरिराज सिंह किसी बलात्कारी से कम नहीं लगते. उन्होंने आगे कहा, ‘भारत सरकार ने मुझ पर आरोप लगाया कि मेरी फ़िल्म बलात्कारियों को प्लेटफॉर्म मुहैया करा रही है, लेकिन असल में संसद ऐसे स्त्री-विरोधी बयान देने वालों को प्लेटफॉर्म मुहैया करा रही है. मुझे गिरिराज सिंह के बयान का स्तर निर्भया कांड के मुख्य आरोपी मुकेश सिंह के बयान से ज़रा भी कमतर नहीं लग रहा है.’ ज़रूरी है कि सिर्फ़ बयानों से सुर्खियां बटोरने वाले नेताओं से भाजपा जल्द से जल्द छुटकारा पाए, नहीं तो पार्टी के स्तर पर भाजपा की जो भद्द पिट रही है वह तो होगा ही, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में सरकार की साख भी गिरेगी.
(साभार – नवभारत टाइम्स)
2. क्या भाजपा अभी भी चुनावी मूड में है?
पिछले दस सालों तक शासन कर रही कांग्रेस के हाथों से सत्ता छीनने के बाद भाजपा अभी भी चुनावी मूड में दिख रही है. चुनावी भाषणों और मीडिया में बयानों के दौरान प्रधानमंत्री हरेक खामी और धीमेपन के लिए पिछली कांग्रेस सरकार को दोष दे रहे थे. लेकिन यह परिस्थिति और भी भयानक हो गयी जब अपनी ही पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी फ़िर से उसी चुनावी रंग में दिखे. प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए कांग्रेस के खिलाफ़ मोर्चा खोल लिया और सबकुछ का ठीकरा कांग्रेस के सिरमाथे फोड़ा गया. नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘कांग्रेस ने कालेधन के खिलाफ़ देश में झूठ का प्रचार किया है. हमने कानून बनाया और एसआईटी का गठन किया है. हम कालेधन को लेकर सख्त हैं.’ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भूमि अधिग्रहण बिल के बाबत कहा, ‘कांग्रेस लोगों को गुमराह कर रही है.’ मोदी ने भी कहा था कि वे गरीब परिवार से हैं, इसलिए किसानों के दुःख दर्द का उन्हें अंदाज़ है. इस पूरे झमेले में मोदी और शाह यह बात भूल गए कि वित्तमंत्री अरुण जेटली ने टीवी चैनल पर साफ़-साफ़ कहा था कि काले धन वालों के नाम उजागर करने से अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध ख़राब हो सकते हैं और अमित शाह ने यह भी कहा था कि काला धन आमजन के खातों में वापिस लाने वाली बात चुनावी जुमला थी. यह भी बात ध्यान देने की है कि कालेधन को लेकर उठे बवाल के बाद कांग्रेस की यूपीए सरकार ने ही कानून का ड्राफ्ट तैयार किया था, जिसकी अभी कहीं कोई चर्चा नहीं है.
3. तम्बाकू-बीड़ी से लगाव और अवैज्ञानिक संसदीय समिति
भाजपा के सांसद अब पूरी तरह से तम्बाकू उत्पादों के बीच-बचाव पर उतर आए हैं. लगता है कि वे इसके लिए भारतवर्ष के देशज ज्ञान का सहारा ले रहे हैं. पहले तो संसदीय मंडल के दिलीप कुमार गांधी ने कहा था कि चूंकि भारत में तम्बाकू और कैंसर के आपसी सम्बन्धों पर कोई शोध नहीं हुआ है, इसलिए तम्बाकू खतरनाक नहीं है. अब उनके ज्ञान की ‘वाहवाही’ हो ही रही थी कि एक और भाजपा सांसद ने कह दिया कि तम्बाकू से कैंसर नहीं होता है. श्याम चरण गुप्ता ने कहा कि तम्बाकू से कैंसर नहीं होता है. उन्होंने कहा कि चेन स्मोकिंग करने वालों को कैंसर क्यों नहीं होता, डॉक्टर इस बात का जवाब क्यों नहीं दे पाते हैं. यदि तम्बाकू से कैंसर के खतरे के चलते प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है तो डायबिटीज़ के लिए चीनी पर भी प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए. दरअस्ल श्याम चरण गुप्ता खुद उस संसदीय समिति के सदस्य हैं जो सिगरेट के पैकेटों पर चेतवानी की समीक्षा करने के लिए गठित की गयी थी. इसके साथ-साथ वे लगभग 250 करोड़ के बीड़ी उद्योग के मालिक भी हैं. आम लोगों को यह बात समझ में नहीं आ रही है कि सरकार ने अवैज्ञानिक और नाक़ाबिल संसदीय समिति गठन किस आधार पर किया?
4. योगी आदित्यनाथ का नया शिगूफ़ा
हिंदूवादी संगठनों का ‘घर-वापसी’ अभियान इक्का-दुक्का स्तर पर कहीं किसी घटना की तरह संपन्न हो ही जा रहा है. इससे भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ भी जुड़े हुए थे. आदित्यनाथ ने कई जगह इन कार्यक्रमों का नेतृत्व करने के लिए भी सहमति जताई थी. लेकिन अब मामला भाजपा के अभी के सबसे बड़े मुद्दे ‘गाय’ को लेकर है. हिन्दू युवा वाहिनी के अध्यक्ष आदित्यनाथ ने कहा है कि गाय को ‘राष्ट्र माता’ का दर्जा मिलना चाहिए. इसके लिए उन्होंने सर्वे और मतदान की प्रक्रिया को शुरू करा दिया है. हालांकि अपने बयानों से प्रसिद्धि बटोरने वाले आदित्यनाथ का यह बयान उनके अन्य बयानों की तरह छिछला नहीं है. जिस तरह से केन्द्र की भाजपा सरकार गांधीवादी मूल्यों को किनारे हटाकर नए हिंदूवादी सामाजिक मानक और मूल्य गढ़ने की तैयारी कर रही है, यह बयान उस दिशा में एक कदम की तरह देखा जा रहा है. गांधी जयंती ‘स्वच्छता अभियान’ के काम आई और बाल दिवस शिक्षक दिवस की ओर खिसकता जा रहा है, उस लिहाज़ से ‘राष्ट्रपिता’ महात्मा गांधी की पदवी को और छांटने के लिए गाय को राष्ट्रमाता घोषित किया जाएगा तो भाजपा के हिंदूवादी एजेंडे को ही लाभ मिलेगा.
5. आडवाणी ऑन बैकफुट
भाजपा के अच्छे दिन आए, अमित शाह के अच्छे दिन आए और सरकार से जुड़े सभी लोगों के भी…लेकिन लगता है कि लालकृष्ण आडवाणी ही बुरे दिनों का मुस्तकबिल लेकर चल रहे हैं. भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आडवाणी जैसे ही मंच पर आए उन्हें मंच के सबसे दाहिने कोने में बिठा दिया गया. मंच पर भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता के रूप में मौजूद लालकृष्ण आडवाणी ने कार्यकारिणी को संबोधित भी नहीं किया और उनके सामने ही मोदी ने अमित शाह को गांधी और लोहिया के कद का इंसान बना दिया. लोकसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर लालकृष्ण आडवाणी ने एक बवाल खड़ा ही कर दिया था, उन्होंने नरेन्द्र मोदी को उम्मीदवार घोषित किये जाने से नाराज़ होकर पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. अभी कुछेक रोज़ पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर आडवाणी को भी नोटिस जारी कर दिया है. दरअस्ल भाजपा चाहती है कि आडवाणी कोई ऐसा-वैसा बयान सार्वजनिक मंच से न दे दें ताकि उनकी उपद्रवी और धूमिल छवि से सरकार पर भी आंच आ जाए. इस बैठक के वक्ताओं की सूची में आडवाणी का नाम नहीं है, और सूत्र बताते हैं कि आगे भी नहीं ही होगा.