By सिद्धान्त मोहन, TwoCircles.net,
किस तरह हर नियम की अनदेखी करने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार आदिवासियों के जीवन के साथ खेल रही है?
सोनभद्र: जब समाजवादी पार्टी ने जनता परिवार में विलय स्वीकार कर कमान खुद के हाथ में ले ली, तो वे यह भूल गए कि उन्हें अपने उन एजेंडों पर टिके रहना है जिनकी बिना पर वे किसानों, दलितों और आदिवासियों के करीब हैं. विकास की परिभाषा ने उन सभी एजेंडों को मटियामेट कर दिया और विकास की दौड़ में उत्तर प्रदेश की सपा सरकार द्वारा उठाये गए कदम गुजरात या मध्य प्रदेश की सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों से किसी हाल में भिन्न नहीं हैं. कनहर नदी से जुड़ी हुई कनहर सिंचाई परियोजना के तहत बाँध निर्माण की सचाई आप सभी जान चुके हैं. [पढ़िए पिछली स्टोरी – अकथ कहानी कनहर की ] अब ज़रूरी यह है कि मौजूदा हालातों के साथ-साथ मामले के असल प्रशासनिक रवैया भी जाना जाए और दर्ज किया जाए.
बाँध के डूब क्षेत्र में आने वाले गाँवों में रहने वाले आदिवासियों ने 23 दिसम्बर 2014 से अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन धरना देना शुरू किया. अब तक जो हुआ वह ऊपर के लिंक में दर्ज़ है. उसके बाद बीते 14 अप्रैल यानी अम्बेडकर जयन्ती के दिन गांववालों ने प्रदर्शन स्थल से लेकर कार्यस्थल तक एक जुलूस निकाला. इस जुलूस में गाँव के लगभग 150-200 लोग शामिल थे. बाँध के निर्माण का कार्य बिना किसी बाधा के चलता रहे, इसके लिए पीएसी की एक टुकड़ी चौबीस घण्टे कार्यस्थल के आसपास मौजूद रहती है. हालांकि यह तथ्य भी दर्ज कर देना आवश्यक है कि निर्माण का कार्य चौबीस घण्टे नहीं होता है. खुद जिला मजिस्ट्रेट की बाद को सच मानें तो सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक काम बंद रहता है. बहरहाल, आधिकारिक तौर पर बात करें तो अम्बेडकर जयंती के दिन आदिवासी भोर में पांच बजे कार्य बंद कराने की नीयत से निर्माण-स्थल पर पहुंचे. मार्च के दौरान पुलिस और गाँव वालों में एक झड़प हुई. इस दौरान सुन्दरी गाँव के एक व्यक्ति अकलू चेरो ने पुलिस अधिकारी कपिल यादव के आदेश की अवमानना की. इस अवमानना का रिज़ल्ट यह आया कि अकलू चेरो और कोतवाल कपिल यादव के बीच बहस तेज़ हो गयी. बकौल एसपी सोनभद्र शिवशंकर यादव, अकलू चेरो ने कपिल यादव पर लकड़ी के पटरे से वार कर दिया. इसके साथ अकलू के भाई रमेशा ने भी कपिल यादव के बाएं हाथ पर कुल्हाड़ी से भी वार किया. इसके बाद कपिल यादव ने अपनी ‘आत्मरक्षा’ में एक-दो राउंड गोलियां चलाईं, जो सीधे अकलू चेरो को सीने को आर-पार कर गयी. एसपी यादव बताते हैं, ‘अकलू को अस्पताल पहुँचाने का इन्तिजाम पुलिस ने ही किया, जिसके कारण सही समय पर इलाज हो सका और उसकी जान बचाई जा सकी.’
मौके पर मौजूद अधिकारी नाम न छापने के शर्त पर बताते हैं कि इस समय जो भी पुलिस दल की मौजूदगी है, भविष्य में वह कई गुना बढ़ाए जाने की योजना है. छः और जिलों से मजिस्ट्रेट लगाए जा रहे हैं. लेकिन ध्यान देने की बात है कि डीएम संजय कुमार और एसपी शिवशंकर यादव इस बात से साफ़ इनकार कर देते हैं. 14 अप्रैल की घटना के बारे में एसपी शिवशंकर यादव बताते हैं, ‘घटना के एक दिन पहले यानी 13 अप्रैल को रात दस बजे इन केसों में मुख्य अभियुक्त गंभीरा और शिवप्रसाद ने लोगों के साथ मीटिंग की और तय किया कि रात में काम बंद करा दिया जाए. रात में सफल न होने पर अगले दिन सुबह पांच बजे काम बंद कराने पर विचार हुआ. इसके बाद भोर में दल के साथ पहुंचे और कपिल देव यादव की रोकाटाकी के बाद झड़प हुई जिसमें कपिल देव यादव ने आत्मरक्षा में गोली चल गयी.’ एसपी शिवशंकर यादव दावा करते हैं, ‘हमारे पास पक्की खबर थी. गांववालों ने पूरी प्लानिंग कर रखी थी कि एक दो पुलिसवालों को उकसाने पर वे गोली चला देंगे, फ़िर खुद ही मामला बन जाएगा.’ इन दावों पर कोई ध्यान न दें तो यहां दो बयानों के बीच विरोधाभास पैदा होता है, जो कई लूपहोल्स खोल देता है. डीएम संजय कुमार ने जानकारी दी कि कार्यस्थल पर अन्धेरा ढलने और सूरज उगने के बीच कोई कार्य नहीं होता है. ऐसे में यह दावा ही झूठा साबित होने लगता है कि आदिवासियों ने रात में या भोर में पांच बजे काम बंद कराने का कोई प्रयास किया हो.
सोनभद्र जिले के एसपी शिवशंकर यादव (बाएं) और जिलाधिकारी संजय कुमार
इस घटना के बारे में जब गाँव के लोगों और खुद घायल अकलू चेरो से बात हुई तो मामले का एक अलग ही पहलू सामने आता है. गांव वाले बताते हैं कि अम्बेडकर जयंती के दिन आदिवासियों के एक समूह ने कार्यस्थल तक एक रैली निकाली. पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के सभी लोगों पर डंडे बरसाना शुरू कर दिया. इन डंडे खाने वाले लोगों में महिलाएं और बुजुर्ग भी थे. उस वक्त आदिवासियों के बीच मुखर आवाज़ के रूप में मौजूद अकलू चेरो ने मौके पर मौजूद अधिकारी कपिल यादव से कहा कि महिलाओं को न मारा जाए. अकलू बताते हैं कि इसी बात पर कपिल यादव ने गालीगलौज शुरू कर दिया और बहस शान्त होने के बजाय और बिगड़ गयी. इसी में अधिक से अधिक 5-6 फीट की दूरी से कपिल यादव ने अकलू चेरो को सीने पर गोली मार दी. जो सीने को बेधते हुए पीठ से बाहर निकल गयी. इसके बाद कोतवाल कपिल यादव ने अपनी ही सर्विस रिवॉल्वर से अपने ही हाथ पर गोली मार ली, जिसके बारे में पुलिस कह रही है कि यह चोट अकलू के भाई रमेशा के कुल्हाड़ी के वार से लगी है. गोली चलने के बाद भगदड़ शुरू हुआ और प्रदर्शनकारी भी अफ़रा-तफ़री में फंस गए. कोतवाल कपिल यादव भी अपने साथियों के साथ भाग खड़े हुए.
अकलू चेरो और उनके शरीर पर मौजूद गोली के घाव
पुलिस अकलू के घायल शरीर को को कहीं भी ले जाने नहीं दे रही थी. इसके बाद कार्यस्थल पर बेहोश अकलू के खून से लथपथ शरीर को रखकर नारेबाजी करने लगे. इसके बाद गाँव के दो पुरुषों लक्ष्मण व अशर्फ़ी ने किसी तरह से अकलू को बनारस पहुंचाया, जहां अकलू चेरो अभी सरसुन्दर लाल चिकित्सालय में भर्ती हैं. अकलू बताते हैं कि अस्पताल में होश सम्हालने के बाद से लक्ष्मण व अशर्फ़ी का कोई पता नहीं है. उनका मोबाइल लगातार ऑफ़ बता रहा है. इसके बारे में कई बार बल देकर पूछने पर एसपी शिवशंकर यादव ने बताया कि लक्ष्मण व अशर्फ़ी इस समय मिर्जापुर जेल में बंद हैं. उन पर बलवा करने, सरकारी काम में बाधा पहुंचाने और जानलेवा हमला करने की धाराएं लगाई गयी हैं. अभी अकलू चेरो बनारस में लगभग पूरी तरह से अकेले हैं, वे कहते हैं कि एक-दो दिन पर पुलिस वाले आते हैं और राउंड लगाकर चले जाते हैं. अकलू बताते हैं कि उन्हें डर लग रहा है कि अस्पताल से छुट्टी मिलते ही पुलिस उन्हें गिरफ्तार न कर ले जाए.
मौके पर मौजूद आदिवासी बताते हैं कि पुलिस ने लाठीचार्ज या फायरिंग के पहले किसी भी किस्म की चेतावनी नहीं दी. इसके बारे में डीएम संजय कुमार से पूछने पर वे कहते हैं, ‘नहीं ऐसा एकदम नहीं हुआ. सारे प्रोटोकॉल फॉलो किये गए.’ दूसरी बातों के बारे में पूछने पर एसपी शिवशंकर यादव ने पूछा, ‘क्या आप लोगों से गाँववालों ने यह भी कहा कि पुलिस ने छः लोगों को मारकर दफ़ना दिया है?’ इस पर हमने कहा कि, ‘ऐसी कोई जानकारी हमारे पास नहीं है, लेकिन क्या आप इस पर कुछ बता सकते हैं..’ इस पर एसपी शिवशंकर यादव ने कोई जवाब नहीं दिया. बाँध को लेकर लोगों के रवैये के बारे में पूछने पर डीएम संजय कुमार ने कहा कि लोग बाँध के लिए राजी है, लेकिन बाहर के लोग अपने लाभ के लिए आदिवासियों को भड़का रहे हैं. पूछने पर कि किन इलाकों के लोग बाँध के पक्ष में हैं, तो डीएम संजय कुमार ने कहा कि दुद्धी शहर के लोगों को सहमति है. इस बात से अंदाज़ लग जाता है कि जिन लोगों के घर डूब रहे हैं, वे लोग किसी भी हाल में बाँध निर्माण से सहमत नहीं है. प्रशासनिक अमला लोगों उन लोगों की सहमति को अपना पक्ष मान रहा है, जिनका कुछ भी इस बांध के बनने से नहीं डूब रहा है. जिनके घर बाँध से बहुत दूरी पर स्थित हैं.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया स्टे ऑर्डर, जिसमें साफ़ लिखा है कि बिना किसी क्लियरेंस की स्थिति में तत्काल काम बंद किया जाए
बातचीत में डीएम और एसपी ने हमसे कहा कि उत्तर प्रदेश के 11, झारखंड और छत्तीसगढ़ के 4-4 गाँवों को मिलाने पर बाँध निर्माण से कुल 19 गाँव डूबेंगे. हमने पूछा कि उत्तर प्रदेश के 11 गाँवों के नाम बता दीजिए तो उन्होंने कहा कि अभी याद नहीं है. ज़ाहिरा तौर पर यह मालूम है कि कुल 80 गाँव इस बाँध के निर्माण के बाद डूब जाएंगे. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) के स्टे ऑर्डर के बारे में पूछने पर डीएम संजय कुमार ने कहा कि ‘दरअसल ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया स्टे ऑर्डर सशर्त है, यदि हम शर्त पूरी करते हैं तो हम निर्माण कर सकते हैं.’ लेकिन एनजीटी के ऑर्डर में साफ़-साफ़ लिखा है कि बिना वन और पर्यावरणीय अनुमति के सरकार को तत्काल निर्माण कार्य बंद करना होगा और एक भी पेड़ को गिरने से रोकना होगा [देखें ऑर्डर की प्रति]. इसके बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार की बदहवासी बंद नहीं होती है. एनजीटी में सुनवाई के बाद 24 मार्च 2015 को फ़ैसला सुरक्षित कर लिया गया, जिसे अप्रैल के आखिरी दिनों में आना है. लेकिन हर आदेश के खिलाफ़ जाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्माण-कार्य जारी रखा. पूछने पर डीएम संजय कुमार कहते हैं कि अदालत का आदेश आने तक काम चलता रहेगा.
[जारी…]