अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (मजलिस) के नेता असदुद्दीन ओवैसी बिहार चुनाव को लेकर पत्ते खोलने के अभी मूड में नहीं हैं. बल्कि हर दांव को वो सोच-समझकर आज़माना चाहते हैं. उनकी कोशिश है कि बिहार के इन चुनावों में पार्टी की पहचान भी स्थापित हो जाए और कोई चुनावी रिस्क भी न लिया जाए, जिससे बिहार के मुस्लिम वोटों का महत्व ख़त्म हो जाए. शायद यही वजह है कि ओवैसी ने साफ़ तौर पर एक इंटरव्यू में कह दिया कि पार्टी अभी फिलहाल बिहार चुनाव के लिए तैयार नहीं हैं.
लेकिन पार्टी के विश्वसनीय सुत्र बताते हैं कि पार्टी पूरे बिहार में 25 सीटों के बजाए सिर्फ सीमांचल के उन सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जहां तथाकथित सेकूलर पार्टियां अपना कोई मुसलमान उम्मीदवार खड़ा नहीं करेगी. यानी अगर महा-गठबंधन सीमांचल में टिकट देने में मुस्लिम उम्मीदवारों को नज़रअंदाज़ करती हैं, तो मजलिस वहां अपना उम्मीदवार खड़ा कर चुनावी जंग में कूद सकती है.
इस संबंध में मजलिस के महाराष्ट्र विधायक इम्तियाज़ जलील से TwoCircles.net ने बात की तो उन्होंने बताया कि बिहार के लोगों की काफी ख्वाहिश है कि पार्टी बिहार में चुनाव लड़ें, लेकिन पार्टी अभी इसके लिए तैयार नहीं है, लेकिन हां! हम सीमांचल चुनाव ज़रूर लड़ सकते हैं. हालांकि अभी तक आधिकारिक तौर पर कोई फ़ैसला पार्टी ने नहीं लिया है.
स्पष्ट रहे कि असदुद्दीन ओवैसी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में एक ऐसे स्तंभ की तरह उभर रहे हैं, जिनके इर्द-गिर्द मुस्लिम वोटों की पूरी राजनीति केन्द्रित होती जा रही है. ऐसे में अगर बिहार में सीमांचल के चुनावी दंगल में ओवैसी की दस्तक कामयाब रहती है तो इसके बेहद ही गहरे मायने सामने आ सकते हैं और ये मायने मुस्लिम राजनीत को एक दिशा दे सकते हैं.