क्या इल्ज़ाम लगने भर से कोई मुजरिम हो जाता है? : सम्भल के ‘अलक़ायदा चीफ़’ का भाई

By अफ़रोज़ आलम साहिल, TwoCircles.net

सम्भल:16 दिसम्बर को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल को एक बड़ी ‘कामयाबी’ हाथ लगी. अलक़ायदा के भारतीय उपमहाद्वीप के कथित ‘संस्थापक’ व ‘इंडिया चीफ़’ मो. आसिफ़ को दिल्ली में गिरफ़्तार किया गया. आसिफ़ उत्तर प्रदेश के सम्भल के दीपासराय मोहल्ले का रहने वाला है.


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स्थानीय अख़बारों के मुताबिक़ आसिफ़ की गिरफ़्तारी की ख़बर मिलते ही परिवार वाले मकान पर ताला लगाकर कहीं चले गए. मोहल्ले वाले कुछ भी बोलने से बचते रहे. कोई पड़ोसी भी कुछ बताने को तैयार नहीं हैं.


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मो. आसिफ़ के भाई सादिक़

किसी अख़बार ने आसिफ़ को 20 सालों से गायब बताया तो किसी ने बताया कि वह पिछले तीन साल दिल्ली में नेटवर्क तैयार कर रहा था. लेकिन 22 दिसम्बर को जब TwoCircles.net की टीम सम्भल के दीपासराय में पहुंची तो स्थानीय लोगों व घर के सदस्यों की बातें बिलकुल इसके विपरित थीं.

पता चला कि पांचवी पास इस ‘अलक़ायदा चीफ़’ के पास फिलहाल रहने को अपना घर भी नहीं है. किराये के मकान के एक कमरे में उसका पूरा परिवार रहता है. इस मकान का 1500 रूपये का किराया भरने के लिए भी उसे कई बार सोचना पड़ता है. पैसे न होने के कारण उसके 10 साल के बच्चे की तालीम बीच में ही रूक गई. हर रविवार दिल्ली के लाल किला के पीछे लगने वाले चोर बाज़ार से पुरानी चीज़ें खरीद कर अपने मोहल्ले के लोगों से कुछ मुनाफ़े के साथ बचता है, उसी मुनाफ़े की रक़म से उसका परिवार चल पाता है.


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मो. आसिफ़ की बीवी आफ़िया परवीन

आसिफ़ के भाई सादिक़ दीपासराय में लेडीज़ कपड़ों के दर्जी हैं लेकिन उनकी दुकान अभी बंद है. सादिक़ बताते हैं, ‘इन दिनों मोहल्ले में शादियां खूब हैं. इसलिए काम भी बहुत था, लेकिन क्या करें? सारे काम लौटा दिए.’



सादिक़ मीडिया की रिपोर्टिंग से नाराज़ हैं, वे कहते हैं, ‘आख़िर आप लोग इतनी नफ़रत लाते कहां से हो? क्या इल्ज़ाम लगने भर से कोई मुजरिम हो जाता है? मुजरिम तो कोई तब होता है, जब हमारी अदालत साबित कर देती है. लेकिन आप उससे पहले ही उसे आंतकवादी और न जाने किन-किन शब्दों से नवाज़ना शुरू कर देते हो. आप ही बताओं ये कहां की इंसानियत है? आख़िर मीडिया भी तो इंसान ही चलाता है, कोई एलियन आकर चला नहीं रहा है. कम से कम थोड़ी तो इंसानियत रखो. मीडिया ने तो इस तरह से मेरे भाई को बनाकर खड़ा कर दिया है कि ओसामा शायद मरा नहीं है, संभल में ज़िन्दा है.’ यह बोलते-बोलते सादिक़ की आंखें नम हो जाती है और वह रो पड़ते हैं.

उदास लफ़्ज़ों में वे कहते हैं, ‘कोई भी मज़हब इसांनियत के ख़िलाफ़ नहीं होता. आप चाहे जिस मज़हब के हो, कम से कम इंसानियत तो रखो.’

सादिक़ का दर्द उनकी बातों में साफ़ झलकता है. सादिक़ चिंतित हैं कि उनके वालिद का अब क्या होगा? वे कहते हैं, ‘वालिद की हालत ख़राब हो गई है. बुढ़ापे में इस सदमे को वे कैसे बर्दाश्त कर पा रहे होंगे. नींद की गोली देकर उन्हें सुलाया है.’



बकौल सादिक़, मीडिया की ख़बरें बता रही हैं कि हम घर छोड़कर भाग गए हैं. अरे हम कहां भागे हैं. हम तो यहीं हैं. आसिफ़ तो यहीं रहता है. सिर्फ़ रविवार को दिल्ली जाता था पुराने सामान लाने, जिसे बेचकर वो अपना परिवार चला रहा था. 23 जून 2013 को वो सऊदी गया था, पर अक्टूबर 2014 में ही लौट आया. वहां पैसे कम मिल रहे थे. यहां ज़्यादातर लोग अब बाहर जाना पसंद नहीं करते क्योंकि वो यहीं मेहनत करके उतना कमा लेते हैं.

सादिक़ बताते हैं, ‘डॉक्टर कहते है कि एड्स छूने या साथ बैठने से नहीं फैलता है, लेकिन जैसे ही पता चलता है कि अमूल इंसान एड्स का मरीज़ है तो लोग मिलने से भी घबराते हैं. हमारा मामला तो एड्स से भी ज़्यादा खतरनाक है. हम जिसके पास भी जाते हैं, वह अजीब-सी नज़रों से देखता है. अब आप ही बताईए कि हम क्या करें? हमारे पास तो केस लड़ने के भी पैसे नहीं हैं. हम तो रोज़ कुआं खोदते हैं और पानी पीते हैं. हमारे पास तो दिल्ली जाने के भी पैसे नहीं हैं.’



आसिफ़ की बीवी आफ़िया परवीन का भी कहना है, ‘पता नहीं, यह सब हमारे साथ ही क्यों हो रहा है. मेरे पति आतंकी हो ही नहीं सकते.’

आफ़िया परवीन बताती हैं, ‘रविवार को वे सुबह ही उठकर दिल्ली गए थे. जब दिन में मैंने फोन किया तो वो बंद आ रहा था. शाम में उनका फोन आया. बता रहे थे कि फोन बंद हो गया था. घर पर उनका एक टच स्क्रीन वाला मोबाइल रखा हुआ था. मुझसे बोले कि अभी एक आदमी घर जाएगा, वो मोबाइल उसे दे देना. तुरंत ही एक आदमी आया, जिसे मेरे बच्चे ने मोबाइल दे दिया. उसके बाद से उनसे कोई बात नहीं हुई. टीवी के ख़बरों से मालूम हुआ कि उन्हें पुलिस ने पकड़ा है.’

आफ़िया परवीन कहती हैं, ‘मेरा बच्चा बता रहा है कि जो आदमी मोबाइल लेने आया था, वही आदमी अखबार में छपी फोटो में आसिफ़ के बगल में खड़ा है.’

आफ़िया के मुताबिक़ इन दिनों पैसे की काफी तंगी चल रही है. अपनी परेशानियों के बारे में बताते हुए वे कहती हैं, ‘आज तक हमारा घर नहीं बन पाया. हम किराए के घर में रह रहे हैं. 1500 रूपये हर महीने किराया देना पड़ता है. बच्चों के स्कूल की फीस भी नहीं हो पा रही थी इसलिए लड़के की पढ़ाई छुड़वा दी. 7 साल की लड़की अभी भी पढ़ रही है. लड़का अभी दस साल का है. दोनों बच्चों को अपने अब्बू का इंतज़ार है.’

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