By TCN News,
लखनऊ: गोधरा कांड की तेरहवीं बरसी पर रिहाई मंच ने गुजरात के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार का एक पत्र मीडिया में जारी करते हुए सपा सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने जानबूझकर गोधरा कांड के चश्मदीद यूपी पुलिस अधिकारियों के बयान इस कांड के जाँच में जुटी एसआईटी के सामने नहीं होने दिया. रिहाई मंच ने कहा, ‘गोधरा कांड के चश्मदीदों को छुपाना व 2007 में सपा सरकार के दौरान गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर भड़काऊ भाषण देकर पडरौना, कसया, गोरखपुर, मऊ समेत पूरे पूर्वांचल को दंगे की आग में झोंकने वाले भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के भाषण के पुष्टि होने के बावजूद उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होने का परिणाम माधवपुर-कुशीनगर की घटना है, जहां डेढ़ सौ मुसलमानों को जान बचा कर गांव से भागना पड़ा है.’
रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने गुजरात के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार के पत्र के हवाले से सपा सरकार और मुलायम सिंह यादव पर भाजपा और संघ परिवार की सांप्रदायिक गतिविधियों का संरक्षण देने का लगाते हुए कहा कि सपा सरकार के इसी रवैये के कारण गोधरा कांड की एक महत्वपूर्ण असलियत सामने नहीं आ पाई. इसके सन्दर्भ में गुजरात पुलिस के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार ने 27 मार्च 2012 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और 30 जुलाई 2012 को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को पत्र लिखकर तथ्यों को बताने की मांग की थी. श्रीकुमार ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में बताया था कि अप्रैल/मई 2010 में उन्हें यह पुख्ता जानकारी मिली थी कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए प्रदेश के कुछ पुलिस अधिकारियों को उसी ट्रेन में भेजा था. इन पुलिस अधिकारियों ने साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 बोगी में आग लगने की पूरी घटना को अपनी आँखों से देखा था. लेकिन बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त आरके राघवन के नेतृत्व वाली एसआईटी ने उत्तर प्रदेश के इन पुलिस अधिकारियों से कभी कोई पूछताछ नहीं की.
इसके मुताल्लिक श्रीकुमार ने जस्टिस नानावटी कमीशन को भी मई 2010 में ही बता दिया था, जिसकी कॉपी उन्होंने अखिलेश यादव को भेजी थी. श्रीकुमार ने पत्र में आशंका व्यक्त की है कि यूपी पुलिस के अधिकारियों से इसलिए पूछताछ नहीं की गई क्योंकि मोदी और तत्कालीन गृहमंत्री आडवाणी द्वारा ट्रेन को जलाने के पीछे मुसलमानों का हाथ बताने के झूठे प्रचार की पोल खुल सकती थी. उन्होंने पत्र में यह भी कहा है कि पुलिस अधिकारियों के बयान एसआईटी के आग लगने के निष्कर्षों के विपरीत जा सकते थे. यदि बयान दर्ज किये जाते तो संघ परिवार और भाजपा का मुस्लिम विरोधी अभियान नहीं चल पाता. यह पत्र उन्होंने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर बीएल जोशी को भी प्रेषित किया था.
रिहाई मंच नेताओं ने आरोप लगाया कि इतने महत्वपूर्ण सवाल पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा गोधरा कांड के चश्मदीद पुलिस अधिकारियों का ब्यौरा छिपाना सपा के सांप्रदायिक चरित्र को उजागर करता है. भाजपा सांसद आदित्यनाथ के भड़काऊ भाषणों की पुष्टि राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा हो जाने के बाद या फिर रिहाई मंच द्वारा भाजपा विधायकों संगीत सोम, सुरेश राणा द्वारा सांप्रदायिकता भड़काने की घटना के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराने के बावजूद कार्रवाई का न होना सपा और भाजपा के गुप्त गठजोड़ को उजागर कर देता.
रिहाई मंच के नेता अनिल यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के कुशीनगर इलाके के माधोपुर गांव में हिंदू युवा वाहिनी के गुंडों – जिनके सरगना भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ हैं – के हमले से घबराए डेढ़ सौ मुसलमान अपने गांवों से भागने को मजबूर हो गए हैं लेकिन मुलायम सिंह और अखिलेश शादी-व्याह में मोदी से गले मिलने में ही मशगूल हैं. वहीं एमनेस्टी इंटरनेशल जैसी संस्था की रिपोर्ट ने मोदी के शासन में बढ़ती सांप्रदायिक घटनाओं में उत्तर प्रदेश को साम्प्रदयिक घटनाओं के लिहाज से सबसे प्रमुख रूप से चिन्हित किया जाना भी प्रदेश सरकार की साम्प्रदायिक राजनीति के संरक्षण को प्रमाणित करता है. उन्होंने कहा कि जब प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों और एजेसियों की रिर्पोटों तक में योगी आदित्यनाथ द्वारा साम्प्रदायिक और भड़काऊ भाषण देने की बात कही जाती रही है, फिर भी उनके खिलाफ कार्रवाई न किया जाना साबित करता है कि सपा सरकार उन्हें खुले तौर पर संरक्षण मुहैया करा रही है. उन्होंने कहा कि सपा-भाजपा के सांप्रदायिक गठजोड़ का ही नमूना था कि मुसलमानों की गर्दन काटने वाले विवादित बयान में वरुण गांधी की पेशी में सभी चश्मदीद गवाह अपने बयानों से मुकर गये.