By TCN News,
वाराणसी : 16 वीं लोकसभा का चुनाव का सबसे रोचक मुकाबला बनारस में ही था, यहां की जनता ने नरेंद्र मोदी को न सिर्फ सांसद बनाया बल्कि उन्हें देश के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचाया. बनारस का चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल के साथ साथ एक बड़े बदलाव के नाम भी रहा था. मोदी ने इलेक्शन कैम्पेन के दौरान बड़े बड़े वायदे किये थे.
गंगा सफाई, स्मार्ट-सिटी, बड़े बदलाव का वायदा करके विराट जीत तो हासिल की, लेकिन बनारस की जनता आज भी अपने सांसद और उसके किये गए वायदों के पूरे होने के इंतज़ार में निराश बैठी है. एक साल बीत जाने के बाद भी यहां से चुने गए सांसद नरेंद्र मोदी लोगों की मूलभूत समस्याओं को समझने में नाकाम रहे हैं. सांसद के तौर पर उनसे बनारसवासी काफी उम्मीदें पाले हुए थे, लेकिन एक साल गुज़र जाने के बाद भी लोग काफी निराश हैं.
बनारस मोक्षस्थली, भूतों, औघड़ों, अवधूतों पर मग्न रहने वाला शहर है, जो हमेशा मस्ती और भक्ति में लीन रहता है. हर गुज़रे हुए पल को भूलकर गंगा के किनारे घाटों में नई सूर्य के उदय के इंतज़ार में रहता है. इस एक साल में बनारस के लोग इस इंतज़ार में रहे कि काश हमारी ‘काशी’ क्योटो और शांघाई जैसी चकाचक अगर नहीं बन सकती, (जिसका वायदा चुनाव अभियान में मोदी जी ने किया था) तो कम से कम मैली होती गंगा की सफाई, घाटों का पुनर्रोद्धार, मरती हुई पुरानी मिलों और बनारसी साड़ियों के कारोबार, सड़क, बिजली, पानी, आदि में ही तो कुछ सुधार हो जाए.
स्वच्छ्ता अभियान के नाम पर थोड़ी-मोड़ी सफाई और ढेर सारी फोटो खिंचाई भी हुई और ट्विटर फेसबुक में डाल कर चेहरा चमकाने की कोशिश की गयी, लेकिन वास्तविक तौर पर यहां की मूल समस्याओं पर अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गयी है.
मंदिरों की बजती घंटियां, मस्जिदों से आती हुई अज़ान की आवाज़, भभूत में लिपटा साधु, गंगा की घाट की हलचल के बीच आज भी ये शहर अपनी बेबसी और लाचारी का दंश झेल रहा है. इस बारे में पूछने पर छात्र नेता, नज्मुस साकिब खान कहते हैं, ‘एक साल पहले नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में वायदों की झड़ी लगाई थी, गंगा मैया की क़सम खाई थी, अध्यात्म की इस नगरी से अपना नाता जोड़ा था,बदलाव की बड़ी बड़ी बातें किये थे. अब नगर पूछता है कि तुमने तो पूरा विश्व भ्रमण किया लेकिन हमारे संसदीय क्षेत्र को भूल गये. आज हम अपनी समस्याओं से जूझते हुए खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.’
बनारस शहर का बुनकर आज भी अपने हालत पर रो रहा है, मोदी ने अपने चुनावी सभाओं में बुनकरों की समस्याओं पर काफी ज़ोर दिया था, यहां की बनारसी साड़ियों को अन्तराष्ट्रीय मार्केटिंग और पहचान दिलाने का वायदा किया था. लेकिन महंगी बिजली, नवीन टेक्नोलॉजी का अभाव, मार्केट की प्रतिस्पर्द्धा आदि जैसी समस्याओं के कारण ये उद्योग अपने बुरे दौर से गुज़र रहा है. ‘मेक इन इंडिया’ जैसी हाईटैक स्कीम के ज़रिए ग्लोबल इन्वेस्टर्स को लुभाने की कोशिश हो रही है, लेकिन वर्षों पुराना परंपरागत उद्योग अब तक अपने अच्छे दिन की आस लगाये बैठा है.
बनारसी सिल्क साड़ियों का कारोबार करने वाले वज़ीर अहमद बताते हैं कि 70 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के लोग यहां इस कारोबार से बरसों से जुड़े हैं, तमाम मेहनत के बावजूद हमें अपने काम का सही दाम नहीं मिल पाता.
वाराणसी वेलफेयर फाउंडेशन से जुड़ी निधि कुमारी कहती हैं कि घाटों की सफाई, सड़कें आदि पर तो काम हुआ है, लेकिन शहर अब भी ट्रैफिक और सीवर जैसी समस्याओं से अब भी जूझ रहा है, स्वास्थ और शिक्षा की स्थिति भी काफी ख़राब है, जिसमे अब भी काफी सुधार की ज़रूरत है.
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय भी अपने पुराने गौरव को वापस पाने की जद्दोजहद में है. नयी सरकार बनने के बाद से अब तक विश्वविद्यालय को कोई खास पैकेज नहीं मिला पाया है. बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, फैकल्टी और अन्य समस्याओं से जूझ रहा ये कैंपस भी अपने शैक्षणिक गुणवत्ता आदि को बेहतर करने के लिए उम्मीद लगाये बैठा है, लेकिन मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न मिल जाने से लोग काफी खुश हैं.
बहरहाल मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल के बाद लोग अब भी अच्छी दिनों की आस लगाये बैठे हैं. यही इंतज़ार इस शहर को अब तक है.